नई तकनीक आंख के कैंसर का लगाएगी पता, इस तरह करती है काम
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस नई तकनीक को परखने के लिए उन्होंने ओएसएसएन से पीड़ित 18 मरीजों के ऊतकों का परीक्षण किया और सफलतापूर्वक सभी मरीजों के रोग ग्रस्त ऊतकों की पहचान की।
मेलबर्न, प्रेट्र। वैज्ञानिक नित नए-नए आविष्कार कर हमारा जीवन सरल बनाते जा रहे हैं। चिकित्सा जगत में भी वैज्ञानिक लाइलाज बीमारियों का बेहतर उपचार खोज रहे हैं। अब शोधकर्ताओं ने एक स्वचालित तकनीक विकसित की है, जिसके माध्यम से आंखों के सतह के कैंसर का इलाज किया जा सकेगा। इससे बायोप्सी की जरूरत को कम किया जा सकता है। चिकित्सा में होने वाले विलंब को रोका जा सकता है और उपचार को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
द ओकुलर सरफेस जर्नल में विधि के बारे में बताया गया है। इसमें एडवांस इमेजिंग माइक्रोस्कोप, अत्याधुनिक कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस लैस है। इन सबके मिलने से एक ऐसा स्वचालित सिस्टम तैयार होता है, जो कि साधारण सी स्कैनिंग प्रक्रिया से रोग ग्रस्त आंख और गैर रोग ग्रस्त आंख के ऊतकों में सफलतापूर्वक पहचान कर लेता है।
आस्ट्रेलियाई अनुसंधान परिषद (एआरसी) के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर नैनोस्केल बायोफोटोनिक्स (सीएनबीपी) के शोधकर्ता अब्बास हबीबलाही ने बताया कि आंखों के सतह के कैंसर की बीमारी जिसे हम ओकुलर सरफेस स्क्वैमस नियोप्लासिया (ओएसएसएन) कहते हैं। इस बीमारी के लक्षणों का शुरुआती स्तर में पता लगाना काफी मुश्किल होता है, जिसकी वजह से मरीज को उपचार कराने में देरी होती है।
ओएसएसएन का जल्द ही पता चलने पर उपचार सरल होता है उसका निदान भी जल्द ही होता है। वरना देरी हो जाने पर आंखों को हटाने तक की नौबत आ जाती है और मौत का खतरा भी बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वह अब इस तकनीक को व्यवहारिक रूप से उपयोग में लाने लायक बनाना है। शोधकर्ता इस तकनीक को स्टैंडर्ड रेटिनल कैमरा में शामिल करना चाहते है।
इस तरह करती है काम
शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने एक स्वचालित तकनीक विकसित की है। जिससे वह उस प्राकृतिक प्रकाश को स्कैन करते हैं, जो आंखों की विशिष्ट कोशिकाओं से होकर लौटता है। उन्होंने बताया कि रोग ग्रस्त कोशिका कि अपनी एक अलग प्रकाश तरंग होती है। हाईटेक तकनीक उस तरंग का पता लगाकर बीमारी का पता लगाने में मदद करती है।
किया जा चुका है प्रयोग
शोधकर्ताओं ने बताया कि इस नई तकनीक को परखने के लिए उन्होंने ओएसएसएन से पीड़ित 18 मरीजों के ऊतकों का परीक्षण किया और सफलतापूर्वक सभी मरीजों के रोग ग्रस्त ऊतकों की पहचान की। इस तकनीक का एक और लाभ यह है कि यह बायोप्सी की आवश्यकता को भी कम करता है। यह मरीज और डॉक्टर दोनों के लिए लाभदायक है। आंखों की बायोप्सी बहुत ही दर्दनाक होती है। इसमें सैंपल को इकट्टा कर लेबोरेटरी में जांच के लिए भेजा जाता है, जिससे समय भी बेकार होता है।