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चीन के खिलाफ दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत बढ़ाएगा अमेरिका, यूएस समुद्री सेनाएं चीन को रोकने में सक्षम

दक्षिण चीन सागर के 90 फीसद हिस्से पर चीन अपना दावा जताता है। अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए नई रणनीति तैयार की है। अपनी समुद्री सेनाओं को एकीकृत कर चीन की बढ़ती ताकत को रोकेगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 11:33 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 12:08 AM (IST)
चीन के खिलाफ दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत बढ़ाएगा अमेरिका, यूएस समुद्री सेनाएं चीन को रोकने में सक्षम
अमेरिका नौसेना, मैरीन कोर और कोस्ट गार्ड को करेगा एकीकृत।

हांगकांग, एएनआइ। अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए नई रणनीति तैयार की है। इसके तहत अमेरिका अगले एक दशक में इस क्षेत्र में अपनी समुद्री सेनाओं-नौसेना, मैरीन कोर और कोस्ट गार्ड को एकीकृत करेगा। हांगकांग से प्रकाशित होने वाले प्रमुख अखबार साउथ चाइन मॉर्निग पोस्ट ने यह जानकारी दी है।

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अमेरिका अपनी समुद्री सेनाओं को एकीकृत कर चीन की बढ़ती ताकत को रोकेगा

चीन को अमेरिका अपने लिए सबसे दीर्घकालिक खतरा मानता है। उसका मानना है कि दक्षिण चीन सागर में वह अपनी समुद्री सेनाओं को एकीकृत कर चीन की बढ़ती ताकत को रोक सकता है।

अमेरिकी नौसेना के उद्देश्य: समुद्रों की स्वतंत्रता को संरक्षित करना, आक्रामकता को रोकना

'एडवांटेज एट सी' शीर्षक से पिछले महीने प्रकाशित अमेरिका इस रणनीति में अमेरिकी नौसेना के उद्देश्यों को 'समुद्रों की स्वतंत्रता को संरक्षित करना, आक्रामकता को रोकना और युद्धों को जीतना' के रूप में परिभाषित किया गया है।

दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना अपनी रणनीति में करेगा बदलाव

अमेरिका ने माना है कि चीन के व्यवहार और बढ़ती सैन्य ताकत को वह लंबे समय तक चुनौती देने में सक्षम नहीं होगा। इसके लिए जरूरी है कि दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना भी अपनी रणनीति में बदलाव करे और अपनी क्षमता बढ़ाए।

दक्षिण चीन सागर के 90 फीसद हिस्से पर चीन अपना दावा जताता

दक्षिण चीन सागर के 90 फीसद हिस्से पर चीन अपना दावा जताता है। चीन के इस दावे को उसके पड़ोसी वियतनाम, फिलीपींस, ब्रुनेई और मालदीव नहीं मानते और चुनौती देते हैं। 2016 में संयुक्त राष्ट्र के एक ट्रिब्यूनल ने भी चीन के इस दावे को खारिज कर दिया था, लेकिन चीन उसके फैसले को नहीं मानता।


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