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राष्‍ट्रपति v/s PM: आप तय करें कि श्रीलंका में कौन है श्रेष्‍ठ, कहां चूके राष्ट्रपति मैत्रीपाल

श्रीलंका के 19वें संविधान संशोधन में प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार राष्‍ट्रपति को नहीं है यानी राष्‍ट्रपति को पीएम को हटाने का अधिकार नहीं है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 12:49 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 08:31 AM (IST)
राष्‍ट्रपति v/s PM: आप तय करें कि श्रीलंका में कौन है श्रेष्‍ठ, कहां चूके राष्ट्रपति मैत्रीपाल
राष्‍ट्रपति v/s PM: आप तय करें कि श्रीलंका में कौन है श्रेष्‍ठ, कहां चूके राष्ट्रपति मैत्रीपाल

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। श्रीलंका में संवैधानिक संकट का दौर अभी खत्‍म नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद अब यह सियासी ड्रामा एक दिलचस्‍प मोड़ पर पहुंच चुका है। शीर्ष अदालत की दखल के बाद अब सवाल यह है कि राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन क्‍या करेंगे। बता दें कि राष्ट्रपति मैत्रीपाल ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को पद से हटा दिया था। इस मामले को शीर्ष अदालत ने असंवैधानिक करार दिया है। उधर, श्रीलंका की संसद में राजपक्षे सरकार के खिलाफ वोट होने से सिरिसेन को बड़ा झटका लगा है। आइए, हम आपको बतातें हैं कि आखिर इस बाबत संविधान में क्‍या व्‍यवस्‍था है। क्‍या सच में राष्‍ट्रपति ने संविधान के प्रावधानों का अतिक्रमण किया है। आदि-आदि। 

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क्‍या कहता है श्रीलंका का संविधान

इस संवैधानिक संकट में दोनों ही पक्ष संविधान का हवाला दे रहे हैं। दरअसल, श्रीलंका के 19वें संविधान संशोधन में प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार राष्‍ट्रपति को नहीं है यानी राष्‍ट्रपति को पीएम को हटाने का अधिकार नहीं है। स‍‍ंविधान संशोधन के बाद यह अधिकार संसद में निहित है। संसद संविधान के दायरे में रहते हुए प्रधानमंत्री को पद से हटा सकती है। खास बात यह है कि इस संशोधन की पहल मौजूदा राष्‍ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन और विक्रमासिंघे ने ही की थी। उधर, राष्‍ट्रपति सिरिसेन का तर्क है कि मौजूदा प्रधानमंत्री सदन में बहुमत खो चुके हैं, इसलिए उन्‍हें पद से हटाया गया। फ‍िलहाल इस गतिरोध में सुप्रीम कोर्ट ने तस्‍वीर साफ कर दी है। अदालत ने राष्‍ट्रपति के कदम को असंवैधानिक करार दिया है।

श्रीलंका में संविधान संधोधन की जरूरत क्‍यों

श्रीलंका में चले लंबे गृहयुद्ध के बाद मौजूदा संविधान में व्‍यापाक संशोधन की जरूरत महसूस की गई। उस वक्‍त सिरिसेना श्रीलंका में स्‍थापित राज्य प्रणाली के स्थान पर संसदीय प्रणाली को लागू करने की वकालत कर रहे थे। सिरिसेना का तर्क था कि देश में चल रहे गृहयुद्ध को रोकने के लिए श्रीलंकाई राजनीति में तमिलों की भागीदारी को बढ़ाना होगा। इसी क्रम में संविधान में व्‍यापक पैमाने पर संशोधन की पहल की गई। हालांक‍ि, यहां के सिंघली इस संशोधन का विरोध कर रहे थे। इसका मकसद था संविधान में इस गृहयुद्ध को रोकने का उपक्रम किया जाए।

भविष्‍य में फंसे यक्ष सवाल

सवाल यह है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद क्‍या श्रीलंका का सियासी ड्रामा बंद हो जाएगा। लेकिन अभी भी कुछ यक्ष सवाल है, जो इस सियासी ड्रामे को आगे बढ़ा सकते हैं। पहला, बदलते घटनाक्रम में राजपक्षे सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए ऐसे में सवाल यह है कि क्‍या राष्‍ट्रपति सिरिसेन अपदस्‍‍‍‍थ रानिल विक्रमासिंघे को सदन में बहुमत साबित करने का मौका दे सकते हैं। अगर बहुमत साबित नहीं हुआ तो क्‍या वह दोबारा कैबिनेट और संसद को भंग कर सकते हैं या फिर चुनाव करवा सकते हैं। 

सिंहला और अल्पसंख्यक तमिलों के बीच गृहयुद्ध

दरअसल, 1980 के दशक में श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहला और अल्पसंख्यक तमिलों के बीच गृहयुद्ध की शुरुआत हुई। मुख्यतः यह श्रीलंकाई सरकार और अलगाववादी गुट लिट्टे के बीच लड़ा जाने वाला युद्ध है। 30 महीनों के सैन्य अभियान के बाद मई 2009 में श्रीलंकाई सरकार ने लिट्टे को परास्त कर दिया। लेकिन इस युद्ध में श्रीलंका में बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान हुआ। उस वक्‍त श्रीलंका पर यह दवाब था कि वह देश में शांति कायम करे। इसी क्रम में यहां व्‍यापक पैमाने पर संविधान संशोधन की बात कही गई।

 

संवैधानिक फसाद की जड़

अक्‍टूबर के अंत में श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेन ने देश के मौजूदा प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को पद से हटा दिया था। उनका दावा था कि विक्रमासिंघे संसद में अपना बहुमत खो चुके हैं। इतना ही नहीं राष्‍ट्रपति ने कैबिनेट और संसद भी भंग कर दिए। इस संवैधानिक संकट का यही अंत नहीं होता राष्‍ट्रपति ने महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। यह वही राजपक्षे हैं, जिन्‍होंने वर्ष 2015 में मैत्रीपाल सिरिसेन के खिलाफ राष्‍ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़े थे।

सिरिसेन-विक्रमासिंघे की दोस्‍ती में आई दरार 

2015 के चुनाव में सिरिसेन और विक्रमासिंघे अलग दल और विचारधार के बावजूद को एक साथ रहे। उस वक्‍त सिरिसेन ने अपनी ही पार्टी के राजपक्षे पर धोखा देने का अारोप लगाया था। सिरिसेन ने राजपक्षे को हराने के लिए तब विक्रमासिंघे से हाथ मिलाया था। उस वक्‍त एक पार्टी में रहते हुए राजपक्षे उनके धुर विरोधी थे। लेकिन इन तीन वर्षों में तस्‍वीर बदल गई। अब सिरिसेना ने प्रधानमंत्री विक्रमासिंघे को हटाकर राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाया।

कौन है महिंदा राजपक्षे

श्रीलंका में महिंदा के कार्यकाल को लोग अभी भी भूले नहीं हैं। श्रीलंका में ये राजनीतिक परिवार काफी लोकप्रिय है। ख़ासकर श्रीलंका के ग्रामीण इलाकों में उनकी अच्‍छी पकड़ है। वर्ष 2005 से 2015 तक उनका कार्यकाल था। उनके शासनकाल में ही श्रीलंका में दशकों से चले आ रहे गृहयुद्ध का खात्‍मा हुआ। हालांकि, उनके परिवार और रिश्‍तेदारों पर भ्रष्‍टाचार का आरोप लगा। उनके कार्यकाल में ही श्रीलंका और चीन के मधुर संबंध स्‍थापित हुए। इसलिए यह भी आरोप लगाया जाता है कि महिंदा ने ही चीन के अरबों डॉलर के कर्ज़ में धकेल दिया। 


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