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Expert Views: तेल के कारोबार और अपना वर्चस्‍व बढ़ाने के लिए US ने खतरे में डाला पूरा मिडिल ईस्‍ट

मध्‍य पूर्व में हालात लगातार खराब हो रहे हैं। इराक ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। जानकारों का मानना है कि ये हालात बेकाबू हो सकते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 06 Jan 2020 12:33 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 12:18 AM (IST)
Expert Views: तेल के कारोबार और अपना वर्चस्‍व बढ़ाने के लिए US ने खतरे में डाला पूरा मिडिल ईस्‍ट
Expert Views: तेल के कारोबार और अपना वर्चस्‍व बढ़ाने के लिए US ने खतरे में डाला पूरा मिडिल ईस्‍ट

नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। ईरानी कुद्स फोर्स के चीफ मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद मिडिल ईस्‍ट के सभी देश डर के साए में जी रहे हैं। इराक ने भी इस कासिम पर हुए हमले को कड़ाई से लिया है और इसको राजनीतिक हत्‍या करार दिया है। इतना ही नहीं इराक की पार्लियामेंट में पीएम ने देश में मौजूद विदेशी सेनाओं को वापस चले जाने की भी अपील की है। उनका कहना है कि देश और क्षेत्र की शांति के लिए यही सबसे बेहतर विकल्‍प है। कासिम की मौत के बाद विभिन्‍न अमेरिकी ठिकानों पर हमले किए गए हैं।

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क्‍या कहते हैं जानकार 

मध्‍य पूर्व के लगातार खराब होते हालातों पर विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ये तो मानते हैं कि हालात काफी हद तक खराब हो रहे हैं, लेकिन उनका ये भी कहना है कि खाड़ी युद्ध या वर्ल्‍ड वार के हालात नहीं बनने वाले हैं। उनका मानना है कि अमेरिका के पास ऐसा करने के लिए न तो उतना पैसा है और न ही इतना समय। इसके अलावा यदि अमेरिका ऐसा कदम उठाता भी है तो भी उससे अमेरिका का मकसद पूरा नहीं हो सकेगा। उनके मुताबिक यदि हम ईरानी सरकार सरकार को हटाकर दूसरी सरकार के बारे में सोच भी लें तब भी यह तय है कि वह अमेरिकी हितों की रक्षा करने वाली नहीं होगी।  

अमेरिका मकसद में नहीं होगा पूरा

खाड़ी युद्ध की ही बात करें तो वहां पर अमेरिका का मकसद वहां की सत्‍ता से सद्दाम हुसैन को बेदखल करना था। लेकिन इसमें सफलता मिलने के बाद भी इराक में अमेरिका के मकसद को पूरा करने वाली सरकार नहीं बनी। ठीक वही हाल अफगानिस्‍तान में भी हुआ। वहां पर वर्षों से अमेरिका की मौजूदगी और तालिबान से लंबी लड़ाई के बाद अब अमेरिका उन्‍हीं से शांति वार्ता में जुटा है। वहीं तालिबान की बात करें तो उन्‍होंने अफगानिस्‍तान में किसी भी तरह से सीजफायर करने से साफ इनकार कर दिया है। ये इस बात का सुबूत है कि अमेरिका का मकसद पूरा नहीं होता है। इतना जरूर है कि वह अपनी कार्रवाई के जरिए मध्‍य पूर्व को अस्थिर करने की कोशिश जरूर कर सकता है। 

तीन बड़ी वजह

मध्‍य पूर्व में अमेरिका के हस्‍तक्षेप के पीछे आगा कुछ बड़ी वजहों को मानते हैं। इनमें पहली वजह अमेरिका इस पूरे क्षेत्र में अपना वर्चस्‍व बढ़ाना चाहता है। दूसरी वजह मध्‍य पूर्व के तेल कारोबार में अमेरिकी कंपनियों का बड़ा शेयर। लेकिन वर्तमान में जो हालात अमेरिका की बदौलत मध्‍य पूर्व में बनें हैं उसमें प्रो अमेरिकन गवर्नमेंट का आना संभव दिखाई नहीं देता है। वहीं दूसरी तरह अब लोगों की सोच अमेरिका को लेकर काफी कुछ बदल गई है। इतना ही नहीं सऊदी अरब, कतर और बहरीन जहां पर प्रो अमेरिकन गवर्नमेंट है वहां पर भी लोगों की सोच अमेरिका के खिलाफ हो रही है। तीसरी वजह ईरान की वो कोशिश है जिसमें वह इस क्षेत्र में अपने साथ रूस और चीन को लाने की कोशिश कर रहा है। इन दोनों का ही अमेरिका से छत्‍तीस का आंकड़ा है। 

नहीं बनने देगा जंग का मुहाना

वर्तमान हालातों में कोई भी देश मध्‍य पूर्व को जंग का मुहाना नहीं बनने देना चाहता है। यूरोपीय संघ की यदि बात करें तो उसके अपने हित भी जंग के न होने से ही जुड़ हैं। वहीं जब ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु डील हुई थी तब भी यूरोपीय देशों ने बड़ी अहम जिम्‍मेदारी उसमें निभाई थी। इस डील के बाद ईरान और ईयू के देशों के बीच संबंध काफी बेहतर हुए थे। इतना ही नहीं जब ये डील अमेरिका ने खत्‍म की थी तब भी इन देशों ने ईरान का ही साथ दिया था। वहीं ईयू की अर्थव्‍यवस्‍था काफी कमजोर है, इस लिहाज से ईयू इस क्षेत्र में तनाव नहीं चाहता है। यदि तनाव बढ़ता है तो तेल की कीमतों में इजाफा होगा और इससे कोई एक देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित होगी। आपको बता दें कि ईयू के कई देशों ने ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का भी विरोध किया था। 

अमेरिका में दो धड़े

ईरान और परमाणु डील को लेकर अमेरिका में भी दो धड़े बने हुए हैं। इनमें से एक का मानना था कि परमाणु डील को आगे चलना चाहिए था। ये सोच रखने वाले गुट का मानना था कि ईरान इतना कमजोर नहीं है जितना अमेरिका सोचता है। किसी बड़ी कार्रवाई के जवाब में ईरान अमेरिकी हितों को निशाना बना सकता है। यह अमेरिका के लिए घातक होगा। हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि ईरान को ही इस कार्रवाई की ज्‍यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। 

सीधे युद्ध में शामिल नहीं होगा कोई अन्‍य देश 

मध्‍य पूर्व के हालातों और बड़े युद्ध के खतरे पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में आगा ने कहा कि ईरान को सपोर्ट करने वाले रूस, सीरिया या दूसरी बड़ी ताकत कभी नहीं चाहेंगी कि यहां पर युद्ध हो और न ही वो इसमें सीधेतौर पर भागीदार बनेंगे। कोई भी देश ईरान के साथ आकर अमेरिका से जंग नहीं करना चाहेगा। ऐसे में हालात को काबू करने के लिए दुनिया के सभी बड़े देशों को संयुक्‍त राष्‍ट्र समेत डिप्‍लोमेसी का सहारा लेना होगा। अमेरिका पर भी पीछे हटने के लिए दबाव बनाना होगा। जंग होने की सूरत में अमेरिका भी जानता है कि उसको कुछ हाथ नहीं लगने वाला है। इराक युद्ध में वह इस बात को बखूबी देख चुका है। वर्तमान की यदि बात करें तो दुनिया के कई देशों की सहानुभूति ईरान की तरफ है। 

आईएस के सफाए में बड़ी भूमिका

आगा का कहना है कि ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी कोई आतंकी नहीं था। उसका इराक से आईएस के सफाए में बड़ा योगदान रहा है। उस वक्‍त अमेरिकी एयर फोर्स ने इसको कवर दिया था। वहीं कासिम का जिन इलाकों में प्रभुत्‍व था वो सुन्‍नी इलाके हैं। ये इस बात का सुबूत है कि इराक में भी कासिम को सपोर्ट हासिल था। इसके अलावा लिबिया, लेबनान, यमन में भी कासिम को समर्थन हासिल था।  

भारत की भूमिका

दूसरी तरफ अमेरिका में इस वर्ष राष्‍ट्रपति चुनाव होने हैं, लिहाजा ऐसा नहीं लगता है ट्रंप युद्ध का जोखिम उठाएंगे। वहीं ईरान भी ऐसा नहीं चाहेगा। लेकिन माहौल में नरमी लाने के लिए उन देशों को बड़ी भूमिका निभानी होगी जिनके ईरान और अमेरिका दोनों से ही बेहतर संबंध हैं। इनमें भारत भी शामिल है। मध्‍य एशिया के कुछ देशों से भारतीय पीएम को वहां का सर्वोच्‍च सम्‍मान भी दिया जा चुका है। ऐसे में भारत को यूरोपीय देशों के साथ मिलकर हालात को काबू करने की कोशिश करनी चाहिए। 

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