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इराक चुनाव में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी मोक्तादा की पार्टी

इराक में तय समय से कई महीनों पूर्व हुए संसदीय चुनावों में सिर्फ 41 फीसद लोगों ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। 2003 में इराक में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने के बाद से अभी तक हुए संसदीय चुनावों में इस बार सबसे कम मतदान हुआ है।

By Monika MinalEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 01:33 AM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 01:33 AM (IST)
इराक चुनाव में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी मोक्तादा की पार्टी
इराक चुनाव में सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरी मोक्तादा की पार्टी

बगदाद, रायटर। इराक (Iraq) में रविवार को हुए संसदीय चुनावों (Parliamentary Elections) में सोमवार को शिया मौलवी मोक्तादा अल सदर (Shi'ite Muslim cleric Moqtada al Sadr) की पार्टी सबसे बड़ी विजेता के रूप में भी उभरी है। शुरुआती परिणामों के मुताबिक 329 सदस्यीय संसद में उनकी पार्टी की सीटें बढ़ रही हैं। शिया पार्टियों में पूर्व प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी की पार्टी दूसरा स्थान हासिल करती दिखाई दे रही है। देश में तय समय से कई महीनों पूर्व हुए इन चुनावों में जनता में बहुत ज्यादा उत्साह दिखाई नहीं दिया और सिर्फ 41 फीसद लोगों ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

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वर्ष 2003 में अमेरिकी हमले के बाद इराक में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हुई थी। उसके बाद से अभी तक हुए संसदीय चुनावों में इस बार सबसे कम मतदान हुआ है। 2018 में हुए संसदीय चुनाव में 44 फीसद मतदान हुआ था। 2019 में हुए जबर्दस्त विरोध प्रदर्शनों की वजह से समयपूर्व कराए गए इन चुनावों में संभावना व्यक्त की जा रही थी कि लोगों का आक्रोश जमकर फूटेगा, लेकिन कम मतदान प्रतिशत से संकेत मिलता है कि 2003 से सत्ता का सुख उठा रहे धार्मिक राजनीतिक दलों को शायद ही नुकसान उठाना पड़ेगा।

बताया जा रहा है कि मोक्तादा की पार्टी ने 70 सीटें जीत ली हैं, अगर इसकी पुष्टि हुई तो अगली सरकार के गठन में उनका खासा दखल होगा। सरकारी टीवी पर अपने सजीव प्रसारण में उन्होंने जीत का दावा किया और विदेशी हस्तक्षेप से मुक्त राष्ट्रवादी सरकार देने का वादा किया।

उल्लेखनीय है कि इराक में मतदाताओं ने कड़ी सुरक्षा के बीच रविवार को संसदीय चुनाव के लिए मतदान किया। इसके चलते हवाई क्षेत्र और जमीनी सीमा को पूरी तरह से बंद रखा गया। इस चुनाव से आवश्यक सुधार होने की उम्मीद की जा रही है। चुनाव अगले वर्ष निर्धारित था, लेकिन 2019 में बगदाद और दक्षिणी प्रांतों में हुए व्यापक प्रदर्शनों के बाद इसे समय से पहले कराया गया है। हालांकि कुछ लोगों ने अपना विरोध दर्ज करते हुए चुनाव का बहिष्कार भी किया है।


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