चीन को मनमानी नहीं करने देंगे जापान और अमेरिका, मिलकर करेंगे विरोध
जापान और अमेरिका को उम्मीद है कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी उनका साथ साथ देगा।
टोक्यो, रायटर। दक्षिण व पूर्व चीन सागर (South China Seas) के अहम जलमार्गो की यथास्थिति को बदलने के किसी भी एकतरफा प्रयास का जापान और अमेरिका मिलकर विरोध करेंगे। दोनों देशों को उम्मीद है कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी उनका साथ साथ देगा।
जापानी रक्षा मंत्री तारो कोनो ने इस मुद्दे पर अपने अमेरिकी समकक्ष मार्क एस्पर से अपनी राय साझा की। यह बातचीत तब हुई है, जब अमेरिका और चीन कई मुद्दों पर आपस में भिड़े हुए हैं। जैसे कि अमेरिकी प्रौद्योगिकी की चोरी, चीन में मानवाधिकारों का दमन व विवादित दक्षिण चीन सागर में ड्रैगन की सैन्य गतिविधियां।
चीन और जापान के रिश्तों में तल्खी की बड़ी वजह पूर्वी चीन सागर में स्थित कुछ छोटे द्वीपों पर जापान का नियंत्रण होना है। चीन इन द्वीपों को अपना बताता है। बकौल कोनो, एस्पर ने कहा कि अमेरिका-जापान सुरक्षा संधि इन द्वीपों को भी कवर करता है। अमेरिका लंबे समय से इस क्षेत्र में चीन की दबंगई का विरोध कर है और नियमित रूप से अपने युद्धपोत भेजता रहता है।
इससे पहले अमेरिका के रक्षा विभाग पेंटागन ने गुरुवार को कहा कि चीन ने मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें दाग कर दक्षिण चीन सागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। इस क्षेत्र में मिसाइलों के परीक्षण समेत उसके सैन्य अभ्यास के फैसले से अमेरिका चिंतित है। चीन ने बुधवार को दक्षिणी हैनान प्रांत और पार्सल द्वीप समूह के बीच वाले इलाके में मिसाइलें दागी थीं। इनमें एक 'कैरियर किलर' मिसाइल भी बताई गई थी, जो विमानवाहक पोत को नष्ट करने में सक्षम है।
चीन ने हाल ही में यह एलान किया था कि वह 23 से 29 अगस्त के दौरान क्षेत्र में मिसाइल परीक्षण समेत सैन्य अभ्यास करेगा। ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में इस विवादित समुद्री क्षेत्र के ज्यादातर हिस्सों पर चीन के दावों को खारिज कर दिया था। चीन लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है। इसका अमेरिका और कई क्षेत्रीय देश विरोध करते हैं।