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India US Trade War: ट्रेड वार तो सिर्फ बहाना है, भारत का बाजार निशाना है

भारत ने पहले ही कह दिया कि वह किसी दबाव में आने वाला नहीं है। शुल्क वृद्धि पर ट्रंप के हालिया रुख और इसकी हकीकत पर पेश है एक नजर

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 29 Jun 2019 10:45 AM (IST)Updated: Sat, 29 Jun 2019 02:00 PM (IST)
India US Trade War: ट्रेड वार तो सिर्फ बहाना है, भारत का बाजार निशाना है
India US Trade War: ट्रेड वार तो सिर्फ बहाना है, भारत का बाजार निशाना है

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। जी-20 के शिखर सम्मेलन से ठीक पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी उत्पादों पर भारत के आयात शुल्क वृद्धि पर कड़ा ट्वीट किया। लिखा, ‘अमेरिकी उत्पादों पर भारत की आयात शुल्क में वृद्धि अस्वीकार्य है, भारत इसे वापस ले।’ ट्रंप का यह बयान तब आया, जब भारत ने 28 अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क में बढ़ोतरी का फैसला लिया। गत वर्ष अक्टूबर में अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों को दी गई छूट खत्म किए जाने का भारत का यह जबाव था। इस जवाबी कार्रवाई से बौखलाए ट्रंप ने भारत को ‘टैरिफ किंग’ तक की संज्ञा दे दी। हालांकि भारत ने पहले ही कह दिया कि वह किसी दबाव में आने वाला नहीं है। शुल्क वृद्धि पर ट्रंप के हालिया रुख और इसकी हकीकत पर पेश है एक नजर:

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जापान-कोरिया से बहुत कम है भारत का शुल्क

अमेरिका भले ही भारत पर आरोप लगा रहा है कि भारत शुल्क दरों में ज्यादा वृद्धि कर रहा है जबकि हकीकत कुछ और है। उदाहरण के तौर पर अगर अल्कोहल की ही बात करें तो भारत 150 फीसद आयात शुल्क लेता है जबकि जापान 736 फीसद, दक्षिण कोरिया 850 जबकि खुद अमेरिका 350 फीसद तक शुल्क वसूलता है।

भारत ने तो यह स्पष्ट भी किया है कि विश्व व्यापार संगठन के मानकों से भी कम आयात शुल्क वसूला जा रहा है है।

मात्रा के मामले में और कम है शुल्क

औसत शुल्क दरों के मामले में अमेरिका और चीन जैसी मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों की तुलना में भारत की दर 13.8 फीसद है, जो कि ज्यादा है। चीन की 9.8 फीसद जबकि अमेरिका की 3.4 फीसद है। लेकिन अगर व्यापार किए गए वस्तुओं की मात्रा को मानक मानकर देखा जाए तो भारत की शुल्क दर 7.6 फीसद तक गिर जाती है जो कि ब्राजील के 10.3 और दक्षिण कोरिया के 9 फीसद से काफी कम है।

तो असल बात यह है

जानकारों का मानना है कि बढ़े हुए आयात शुल्क से अमेरिका को ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है। उनके लिए इससे ज्यादा यह बात मायने रखती है कि भारत अमेरिका से जितना आयात करता है, निर्यात की हिस्सेदारी उससे ज्यादा है। 2018 में दोनों देशों के बीच 142.1 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार था जिसमें भारत की हिस्सेदारी 24.2 अरब डॉलर अधिक की थी। यानी अमेरिका भारत से व्यापारिक रिश्तों में अपने निर्यात की हिस्सेदारी को बढ़ाना चाहता है। हालांकि गत दो वर्षों में अमेरिका का निर्यात 33.5 फीसद जबकि भारत का निर्यात महज 9.4 फीसद ही बढ़ा है।

चीन से ज्यादा नुकसान

भारत की ओर से बढ़ाए गए शुल्क दरों से अमेरिका को 24 करोड़ डॉलर और खर्च करने होंगे लेकिन अगर चीन की बात करें तो उसने लगभग 110 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी सामानों के व्यापार को प्रभावित किया है। वैसे भी अमेरिकी कंपनियां भारत के बड़े बाजार को देखकर यहां प्रवेश पाना चाहती हैं। जानकारों का मानना है कि ऐसा कर ट्रंप दबाव बनाकर भारत से व्यापारिक संबंधों को और अधिक अमेरिका के पक्ष में लाने की कोशिश में हैं।

फसाद की जड़

भारत ने गत फरवरी में विदेशी निवेशकों के लिए ई-कॉमर्स की नीति में बदलाव किया है। इसके तहत विदेशी कंपनियों को उनके डाटा को देश के भीतर ही रखने का नियम है। यह बात अमेरिकी कंपनियों को हजम नहीं हो रही है। यह नियम उन्हें प्रभावित कर रहा है। यह भी दोनों देशों के बीच मतभेद का बड़ा कारण बना है।

ट्रंप के बयान के पीछे राजनीति

ट्रंप ने 1987 में एक पुस्तक लिखी थी। यह किताब इस विषय पर आधारित थी कि कोई कैसे विजयी वार्ताकार या सौदागर बन सकता है। ट्रंप के हालिया बयान को उनके इसी स्वभाव से जोड़कर देखा जा रहा है। वह पीएम मोदी से मुलाकात से पहले एक दबाव बनाना चाहते थे। वैसे शुल्क दरों में बदलाव को पिछले जून से आठ बार टालने के बाद भारत सरकार ने इस बार बढ़ाया है।


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