खतरा! हवाई, ग्वाटेमाला और इक्वाडोर के बाद अब बाली में ज्वालामुखी उगल रहा आग
इंडोनेशिया में फिर एक बार माउंट आगुंग ने आग बरसाना शुरू कर दिया है। इसकी वजह से यहां पर फिर जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। दुनिया के कई देश सक्रिय ज्वालामुखी की चपेट में हैं। इनकी वजह से पिछले एक माह में ही अमेरिका समेत कुछ दूसरे देशों में काफी जान-माल का नुकसान हुआ है। पिछले एक माह के दौरान हवाई, ग्वाटेमाला समेत इक्वाडोर में लोगों को इस त्रासदी का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा शुक्रवार को इंडोनेशिया में फिर एक बार माउंट आगुंग ने आग बरसाना शुरू कर दिया है। इसकी वजह से यहां पर फिर जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। आपको बता दें कि इंडोनेशिया दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से है जहां लगभग हर वर्ष लोगों को इस तरह की आपदा का सामना करना पड़ता है। वहां पर हर वर्ष सैकड़ों लोगों की जान ज्वालामुखी से निकली राख और लावे की वजह से चली जाती है।
इंडोनेशिया का आगुंग ज्वालामुखी
इंडोनेशिया में माउंट आगुंग ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण निकले राख के चलते रिसॉर्ट द्वीप बाली स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा एहतियातन बंद कर दिया गया है। इसके कारण 38 अंतरराष्ट्रीय उड़ानें और 10 घरेलू उड़ानों सहित कुल 48 उड़ानें रद्द कर दी गयी हैं जिससे 8,334 यात्री प्रभावित हुए हैं। ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण हवा में करीब 2,500 मीटर (8,200 फीट) राख का गुब्बारा (कॉलम) उठता हुआ देखा गया है। वहीं इस ज्वालामुखी से अब लावा निकलना भी शुरू हो गया है। यहां आपको बता दें कि पिछले कुछ माह से यह ज्वालामुखी शांत था।
इक्वाडोर का नेग्रा ज्वालामुखी
आगुंग ज्वालामुखी से दो दिन पहले दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर में गलपागोस द्वीपसमूह के इजाबेला द्वीप स्थित सिएरा नेग्रा ज्वालामुखी में भी एक धमाके के साथ लावा बाहर निकलना शुरू हो गया है। इससे वहां आस-पास में लावे की झील बह रही है। यहां पर्यटकों के आने पर रोक लगाने के साथ पचास से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। यह ज्वालामुखी दो तगड़े भूकंप के बाद फूटा है। गलपागोस को दुनिया के सबसे अधिक ज्वालामुखीय सक्रिय क्षेत्रों में शुमार किया जाता है। सिएरा नेग्रा पिछली बार वर्ष 2005 में फूटा था। अद्वितीय जैवविविधता और पर्यावरण के चलते गलपागोस में प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक आते हैं।
ग्वाटेमाला में ज्वालामुखी से तबाही
इसी वर्ष जून में ग्वाटेमाला में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के चलते 70 लोगों की मौत हो गई थी। फ्यूएगो ज्वालामुखी की चपेट में आने से दर्जनों लोग अभी तक लापता हैं। इस ज्वालामुखी विस्फोट के बाद यहां से करीब चार हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों में पहुचाया गया। ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति ने तीन दिन का राष्ट्रीय शोक भी घोषित किया था। इस ज्वालामुखी से निकलने वाले धुएं के गुबार को करीब 40 किमी दूर से देखा जा सकता था। सरकार की मानें तो इसकी वजह से करीब 17 लाख लोग इससे प्रभावित हुए। इसकी वजह से ग्वाटेमाला सिटी का एयरपोर्ट इस ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से बंद कर दिया गया। स्थानीय विशेषज्ञों ने इस ज्वालामुखी में हुए विस्फोट को साल 1974 के बाद सबसे बड़ा धमाका बताया था।
हवाई ज्वालामुखी
इसी वर्ष मई में अमेरिका के सुदूर हवाई के पास ज्वालामुखी फटने से निकल लावा बाहर निकल आया और वहां पर भी लावा की लंबी नदी बहने लगी थी। यह लावा प्रशांत महासागर में जाकर मिल रहा था। लावे की यह नदी लगभग दो सप्ताह तक बादस्तूर बहती रही। इसकी वजह से इस इलाके में काफी दूर तक जहरीली गैस फैल गई। आपको बता दें कि गर्म लावा समुद्र में मिलने से टॉक्सिक पदार्थ बन जाता है जिससे खतरा पैदा हो जाता है। इस ज्वालामुखी के मुख से लावा निकलने से पहले राख का करीब 4000 मीटर ऊंचा गुबार निकलता देखा गया था। इसकी वजह से यहां के आस-पास के इलाकों में करीब 5 की तीव्रता का भूकंप भी आया था। इसने करीब दो दर्जन से अधिक घरों को तबाह कर दिया था। ज्वालामुखी में धमाके बाद से यहां के करीब दो हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया था। इसके अलावा वहीं पुना एस्टेट्स इलाके से 10 हजार लोगों को खाली कर जाने को कहा गया था।
सटीक भविष्यवाणी मुश्किल
आपको बता दें कि अब तक धरती पर डेढ़ हजार सक्रिय ज्वालामुखियों की पहचान की जा चुकी है। ज्वालामुखियों पर नजर रखने वाले भूगर्भशास्त्री ब्रिगर लुअर का मानना है कि करीब सौ वर्षों तक शांत रहने के बाद कोई ज्वालामुखी सक्रिय होता है। इसके फटने के बाद इसके अंदर से लावे के साथ पानी और सल्फरडाईऑक्साइड भी बाहर आती है। उनके मुताबिक इस लावे से वैज्ञानिकों को जमीन के अंदर चल रही प्रक्रियाओं का पता चलता है। आमतौर पर इसमें होने वाले धमाके तीन प्रकार के होते हैं और इनसे बाहर आने वाली चीजों में भी भिन्नता पाई जाती है। इसके लावे में से निकले पदार्थों के जरिए ज्वालामुखी के अंदर के तापमान और भूगर्भीय हलचल आदि की जानकारी होती है। इनकी जांच से इसके बढ़ते खतरे को भी भांपा जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद इसकी सटीक भविष्यवाणी करना फिलहाल लगभग नामुमकिन है।
ज्वालामुखी से जुड़ी कुछ खास जानकारियां
ज्वालामुखी एक पहाड़ होता है जिसके नीचे पिघले लावा की तालाब होती है। पृथ्वी के नीचे ऊर्जा यानि जियोथर्मल एनर्जी से पत्थर पिघलते हैं। जब जमीन के नीचे से ऊपर की ओर दबाव बढ़ता है तो पहाड़ ऊपर से फटता है और ज्वालामुखी कहलाता है। ज्वालामुखी के नीचे पिघले हुए पत्थरों और गैसों को मैग्मा कहते हैं। ज्वालामुखी के फटने के बाद जब यह निकलता है तो इसे लावा कहते हैं। ज्वालामुखी के फटने से गैस और पत्थर ऊपर की ओर निकलते हैं। इसके फटने से लावा तो बहता है ही, साथ ही गर्म राख भी हवा के साथ बहने लगती है। जमीन के नीचे हलचल मचने से भूस्खलन और बाढ़ भी आती है। ज्वालामुखी से निकलने वाली राख में पत्थर के छोटे छोटे कण होते हैं। यह कांच जैसे होते हैं। उम्रदराज लोगों और बच्चों के फेंफड़ों को इनसे नुकसान पहुंच सकता है।
इनकी वजह से बना धरती का काफी हिस्सा
वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी की सतह का 80 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से का निर्माण ज्वालामुखियों के फटने से ही हुआ है। इनसे निकला लावा करोड़ों साल पहले जम गया जिससे जमीन की सतह बनी। इसके अलावा समुद्र तल और कई पहाड़ भी ज्वालामुखी के लावा की देन हैं। ज्वालामुखी से निकली गैसों से वायुमंडल की रचना हुई। दुनिया भर में 500 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इनमें से आधे से ज्यादा रिंग ऑफ फायर का हिस्सा हैं। यह प्रशांत महासागर के चारों ओर ज्वालामुखियों के हार जैसा है। इसलिए इसे रिंग ऑफ फायर कहते हैं।
कई देशों में ज्वालामुखी की होती है पूजा
कई देश ज्वालामुखियों की पूजा करते हैं। रोमन सभ्यता में वुलकान नाम के देवताओं के लोहार थे। यूनानी सभ्यता में हेफाइस्टोस अग्नि और हस्तकला के भगवान थे। अमेरिकी प्रांत हवाई के रहने वाले पेले को मानते हैं जो ज्वालामुखियों की देवी है। हवाई में दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी हैं। इनमें से सबसे खतरनाक हैं मौना किया और मौना लोआ।
कैसे होती है विस्फोट की पहचान
1982 में ज्वालामुखी की तीव्रता मापने के लिए शून्य से आठ के स्केल वाला वीईआई इंडेक्स बनाया गया। शून्य से दो के स्कोर वाले रोजाना फटने वाले ज्वालामुखी होते हैं। तीसरी श्रेणी के ज्वालामुखी का फटना घातक होता है और यह हर साल होते हैं। चार और पांच की श्रेणी के ज्वालामुखी दशक या एक सदी में एक बार फटते हैं। इस श्रेणी के ज्वालामुखी को काफी घातक माना जाता है। छह और सात की श्रेणी वाले ज्वालामुखियों से सुनामी या भूकंप होता है। आठवीं श्रेणी के कम ही ज्वालामुखी हैं। इस श्रेणी के ज्वालामुखी का पिछला विस्फोट ईसा से 24,000 बरस पहले हुआ था।
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