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नेपाल में प्रचंड धड़े ने पीएम केपी शर्मा ओली को पार्टी से निकाला, स्पष्टीकरण नहीं देने पर कार्रवाई

नेपाल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को कम्युनिस्ट पार्टी से हटा दिया गया है। एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक कम्युनिस्ट पार्टी के इस धड़े ने केपी शर्मा ओली की सदस्यता भी रद कर दी है। पार्टी के दूसरे धड़े के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ यह जानकारी दी है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 07:51 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jan 2021 06:43 AM (IST)
नेपाल में प्रचंड धड़े ने पीएम केपी शर्मा ओली को पार्टी से निकाला, स्पष्टीकरण नहीं देने पर कार्रवाई
नेपाल के कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को कम्युनिस्ट पार्टी से हटा दिया गया है।

काठमांडू, पीटीआइ/एएनआइ। नेपाल की राजनीति में कई दिनों से जारी उथल-पुथल के बीच सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी विभाजन की ओर बढ़ रही है। रविवार को प्रचंड धड़े ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त कर दिया। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं पुष्प कमल दहल प्रचंड और प्रधानमंत्री ओली के बीच हाल के दिनों में कई मुद्दों पर मतभेद रहे हैं। ओली द्वारा संसद भंग किए जाने के बाद से दोनों नेता खुलकर आमने-सामने आ गए हैं।

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मांगा था स्पष्टीकरण 

सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेतृत्व ने ओली से उनके हाल के कदमों के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था। इसका जवाब देने में असफल रहने के बाद स्थायी समिति की बैठक में ओली को पार्टी से निकालने का फैसला किया गया। इससे पहले दिसंबर में प्रचंड धड़े ने ओली को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया था। उनकी जगह माधव कुमार नेपाल को पार्टी का दूसरा अध्यक्ष बनाया गया। पार्टी के पहले अध्यक्ष प्रचंड खुद हैं।

जवाब नहीं देने पर निकाला 

15 जनवरी को प्रचंड धड़े ने ओली को पत्र लिखकर कहा कि उनकी गतिविधियां पार्टी की नीतियों के खिलाफ जा रही हैं। इसको लेकर उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया था। लेकिन, ओली द्वारा किसी तरह का जवाब नहीं दिए जाने के बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। ओली का विरोधी खेमा उन पर पार्टी संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है।

हमलावर है प्रचंड गुट 

उल्लेखनीय है कि दो दिन पहले ही प्रचंड धड़े ने काठमांडू में एक बड़ी सरकार विरोधी रैली की थी। रैली को संबोधित करते हुए प्रचंड ने संसद भंग करने को असंवैधानिक करार दिया था। उनका कहना था कि ओली के इस कदम से देश की संघीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। माधव कुमार नेपाल का कहना था कि संविधान ने प्रधानमंत्री को संसद भंग करने का अधिकार नहीं दिया है।

ओली ने दी थी यह दलील 

बताते चलें कि प्रचंड के साथ चल रहे सत्ता संघर्ष के बीच पिछले 20 दिसंबर को ओली ने संसद को भंग कर दिया था। इसके बाद से देश में राजनीतिक संकट और गहरा गया। ओली को चीन के प्रति रुझान रखने वाला नेता माना जाता है। उनके इस फैसले की देशभर में प्रतिक्रिया हुई और इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। दूसरी तरफ ओली का कहना था कि उन्हें जब पता चला कि प्रचंड धड़ा उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की योजना बना रहा है, तब वे संसद भंग करने के लिए मजबूर हुए। 

आम लोग भी कर रहे विरोध 

बता दें कि दोनों राजनीतिक दलों का विलय विगत 2018 में हुआ था। नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के अध्‍यक्ष ओली जबकि नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी (माओ) के प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड थे। नेपाल में गहराए सियासी संकट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आम लोग भी ओली की मुखालफत में उतर आए हैं। काठमांडू में आए दिन प्रदर्शन हो रहे हैं और लोग संसद भंग करने के ओली के फैसले की निंदा कर रहे हैं। यही नहीं कई प्रदर्शनों में तो राजशाही को भी बहाल करने तक की मांग की गई है। 


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