जानें किन वजहों से ग्वादर बन गया था पाकिस्तान का हिस्सा, अब यहां चीन कर रहा बंदरगाह का विकास
चीन पाकिस्तान के जिस बंदरगाह को विकसित कर रहा है वह कभी ओमान का हिस्सा हुआ करता था। भारत ने इस पोर्ट को ओमान से खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाते हुए इन दिनों चीन वहां ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहा है। इस पोर्ट को पाकिस्तान ने चीन को 40 साल के लिए किराए पर दे दिया है। इससे भारत को थोड़ा खतरा महसूस हुआ मगर इसकी काट निकालने के लिए भारत ने अब यहां से 170 किलोमीटर दूर ईरान में नया बंदरगाह विकसित करने का काम शुरू कर दिया है। भारत के इस कदम को ग्वादर पर चीन के कदम का काउंटर माना जा रहा है। एक बात ये भी कही जा रही है कि भारत की थोड़ी सी राजनीतिक चूक से ग्वादर भारत के पास से निकल गया और पाकिस्तान के हिस्से में चला गया।
कैसे ग्वादर बन गया पाकिस्तान का हिस्सा?
चीन पाकिस्तान के जिस बंदरगाह को विकसित कर रहा है वह कभी ओमान का हिस्सा हुआ करता था। कहा जाता है कि भारत ने इस पोर्ट को ओमान से खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके चलते यह पाकिस्तान के पास चला गया।
जानिए ग्वादर का इतिहास?
ग्वादर जिस इलाके में स्थित है उसे मकरान कहा जाता है। इतिहास में इस इलाके का जिक्र है। 325 ईसा पूर्व में जब सिकंदर भारत से वापस यूनान जा रहा था तब रास्ते में वह ग्वादर पहुंचा। सिकंदर ने सेल्युकस को यहां का राजा बना दिया। 303 ईसा पूर्व तक यह इलाका सेल्युकस के कब्जे में रहा। 303 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने हमला कर इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया। 100 साल तक मौर्य वंश के पास रहने के बाद 202 ईसा पूर्व में ग्वादर पर ईरानी शासकों का कब्जा हो गया।
711 में मोहम्मद बिन कासिम ने हमला कर इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया इसके बाद यहां बलोच कबीले के लोगों का शासन चलने लगा। 15वीं सदी में पुर्तगालियों ने वास्कोडिगामा के नेतृत्व में यहां हमला किया। मीर इस्माइल बलोच की सेना से पुर्तगाली पार नहीं पा सके लेकिन पुर्तगालियों ने ग्वादर में आग लगा दी। 16वीं सदी में अकबर ने ग्वादर को जीत लिया। 18वीं सदी तक यहां मुगल राजाओं का राज चलता रहा। यहां कलात वंश के लोग मुगलों के नीचे शासन करने लगे।
भारत को घेरने में ग्वादर का अहम रोल
भारत में जब भी चीन और पाकिस्तान की एक साथ बात होती है तो ग्वादर पोर्ट का जिक्र जरूर होता है। चीन पाकिस्तान के इस बंदरगाह को आर्थिक गलियारे की अपनी नीति के तहत विकसित कर रहा है। विदेश नीति के जानकार कहते हैं कि भारत को घेरने की चीनी नीति में ग्वादर का अहम रोल है। ग्वादर पोर्ट की भौगोलिक स्थिति भारत को घेरने के लिए एकदम मुफीद है लेकिन भारत वहां से 170 किलोमीटर दूर ईरान में चाबहार बंदरगाह को विकसित कर रहा है। भारत के इस कदम को ग्वादर पर चीन के कदम का काउंटर माना जाता है लेकिन ग्वादर 1958 तक पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था। कहा जाता है कि भारत की थोड़ी सी रणनीतिक चूक से ग्वादर पाकिस्तान का हिस्सा बन गया।
तीन मिलियन डॉलर में हुआ ग्वादर का सौदा
भारत और ओमान के संबंध अच्छे थे इसलिए पाकिस्तान को लगता था कि ओमान ग्वादर को भारत को सौंप सकता है। ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फिरोज शाह नून ओमान के दौरे पर गए और ओमान के सुल्तान के साथ करीब तीन मिलियन डॉलर की रकम में ग्वादर का सौदा कर लिया। 8 दिसंबर 1958 को ग्वादर पाकिस्तान का हिस्सा बन गया, उसे मकरान जिले में तहसील का दर्जा मिला।
ओमान में पाकिस्तान को बेचा ग्वादर पोर्ट
लोगों का कहना है कि ओमान के सुल्तान ने ग्वादर के इलाके को भारत को सौंपने या बेचने की इच्छा जताई थी लेकिन भारत सरकार का मानना था कि भारत से लगभग 700 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक जगह को पाकिस्तान से बचाए रखना मुश्किल काम होगा। इसलिए ओमान ने पाकिस्तान को ग्वादर पोर्ट बेच दिया हालांकि पाकिस्तान जल्दी इस पोर्ट पर ज्यादा कुछ नहीं कर सका। पाकिस्तान ने 1993 में इस पोर्ट को काम में लेना शुरू किया। इलाके का तेज विकास 2002 से शुरू हुआ जब ग्वादर से कराची हाइवे बनने की शुरुआत हुई।
अब पाक ने 40 साल के लिए चीन को दिया ग्वादर पोर्ट
2013 में चीन और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते में पाकिस्तान ने 40 साल के लिए ग्वादर पोर्ट को चीन को किराए पर दे दिया है। वहीं भारत ने इस कदम की काट निकालने के लिए ग्वादर से 170 किलोमीटर दूर ईरान के चाबहार पोर्ट को विकसित करने का फैसला किया है। अमेरिका ने ईरान पर लगाए आर्थिक प्रतिबंधों से चाबहार पोर्ट को अलग रखा है लेकिन अगर ये आर्थिक प्रतिबंध और सख्त हुए तो इनकी जद में चाबहार पोर्ट भी आ सकता है। ऐसा हुआ तो ग्वादर के काउंटर में विकसित किए जा रहे चाबहार पोर्ट के लिए यह एक झटका होगा।
गद्दी को लेकर हुआ विवाद
1783 में ओमान की गद्दी को लेकर अल सैद राजवंश के उत्तराधिकारियों में विवाद हो गया। इस विवाद के चलते सुल्तान बिन अहमद को मस्कट छोड़कर भागना पड़ा। कलात वंश के मीर नूरी नसीर खान बलोच ने उन्हें ग्वादर का इलाका दे दिया। अहमद इस इलाके के राजा बन गए। ग्वादर की जनसंख्या तब बेहद कम थी। अहमद ने ग्वादर में एक किला भी बनाया। कलात राजा ने शर्त रखी थी कि जब अहमद को ओमान की गद्दी वापस मिल जाएगी ग्वादर फिर से कलात वंश के पास आ जाएगा। 1797 में अहमद को ओमान की गद्दी मिल गई लेकिन अहमद ने ग्वादर को वापस नहीं किया। इससे दोनों के बीच विवाद हो गया।
उस समय भारत पर था ब्रिटेन का कब्जा
भारत पर तब ब्रिटेन का कब्जा हो गया था। इस विवाद ने ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों को हस्तक्षेप करने का मौका दे दिया। उन्होंने ओमान के सुल्तान से इस इलाके का इस्तेमाल करने की इजाजत मांगी। सुल्तान ने इजाजत दे दी, अंग्रेजी हुकूमत ने ग्वादर में 1863 में ब्रिटिश सहायक राजनीतिक एजेंट का मुख्यालय बनाया। अंग्रेजों ने ग्वादर में एक छोटा बंदरगाह बनाना शुरू किया जहां स्टीमर और छोटे जहाज चलने लगे। अंग्रेजों ने यहां पोस्ट और टेलीग्राफ का दफ्तर भी बनाया हालांकि ग्वादर का अधिकार ओमान के पास ही रहा।
अंग्रेजी शासन छूटा, भारत-पाक अलग-अलग हुए
1947 में अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया। भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश हो गए। मकरान पाकिस्तान में शामिल हो गया और उसे जिला बना दिया गया। ग्वादर का स्वामित्व अभी भी ओमान के ही पास था हालांकि ग्वादर के लोगों ने पाकिस्तान में मिलने के लिए आंदोलन करना शुरू कर दिया। 1954 में पाकिस्तान ने ग्वादर में बंदरगाह बनाने के लिए अमेरिका के साथ बात शुरू की। अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे ने ग्वादर का भी सर्वे किया। इस सर्वे से पता चला कि ग्वादर को डीप सी पोर्ट यानि पानी के बड़े जहाजों के अनुकूल बंदरगाह बनाने की सही परिस्थितियां हैं।