ल्हासा-निंगची एक ऐसा एक्सप्रेस-वे जो चीन की नीयत पर उठाता है सवाल
भारत के साथ चीन मिलकर आगे बढ़ने की बात करता है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ] । क्या चीन और भारत एक साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकते हैं। क्या दोनों देशों की विचारधारा एक साथ चलने की इजाजत देते हैं। क्या दोनों देश पुरानी यादों को त्याग कर एक साथ आगे बढ़ सकते हैं। ये सभी ऐसे सवाल हैं जिसके जवाब की लोग उम्मीद करते हैं। चीन एक तरफ कहता है कि वो भारत के साथ आगे बढ़ना चाहता है लेकिन उसका हर एक कदम भारत को ये सोचने पर मजबूर करता है कि क्या चीन उसका शाश्वत सहयोगी हो सकता है। तिब्बत के मुद्दे पर भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि वहां के मूल लोगों की भावना को कुचला नहीं जा सकता है और चीन को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए। लेकिन चीन कहता है कि तिब्बत उसका अभिन्न अंग है। इसके अलावा वो अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा भी मानता है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा को निंगची से जोड़ने वाले एक्सप्रेस वे को चीन ने खोल दिया है। लेकिन उस राजमार्ग को भारत के लिए खतरा बताया जा रहा है।
ल्हासा टू निंगची
चीन ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा को निंगची से जोड़ने के लिए करीब 5.8 अरब डॉलर की लागत वाला 409 किमी लंबा एक्सप्रेस-वे खोल दिया है। निंगची अरुणाचल की सीमा के नजदीक है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक 409 किलोमीटर लंबे टोल फ्री एक्सप्रेस-वे ने दो बड़े शहरों को जोड़ा है, जो तिब्बत में पर्यटकों के आकर्षण केंद्र भी हैं। यह एक्सप्रेस-वे ल्हासा और निंगची के बीच यात्रा की अवधि आठ घंटे से घटाकर पांच घंटे करता है। इस मार्ग पर वाहनों की गति सीमा 80 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। तिब्बत में ज्यादातर एक्सप्रेस-वे को इस तरह से बनाया गया है ताकि जरूरत पड़ने पर सेना भी इस्तेमाल कर सके।
नेपाल सीमा तक चीन ने खोला रास्ता
इससे पहले चीन ने तिब्बत से हो कर नेपाल सीमा तक जाने वाला एक रणनीतिक राजमार्ग खोल था जिसका इस्तेमाल नागरिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। चीन के इस कदम के बारे में चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बीजिंग दक्षिण एशिया में दाखिल होने में आसानी होगी। तिब्बत में शिगेज हवाईअड्डे और शिगेज शहर के मध्य 40 किलोमीटर लंबे इस राजमार्ग को आधिकारिक तौर पर शुक्रवार 15 सितंबर को लोगों के लिए खोल दिया गया। इस राजमार्ग का छोटा भाग इसे नेपाल सीमा से जोड़ता है।
यह राजमार्ग नागरिक और सैन्य उद्देश्य से इस्तेमाल होने वाले हवाईअड्डे और तिब्बत के दूसरे सबसे बड़े शहर के बीच दूरी को आधा घंटा कम करेगा। ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने विशेषज्ञों के हवाले से कहा है कि इससे चीन दक्षिण एशिया में व्यापार और रक्षा के संदर्भ में अपनी पहुंच बढ़ा सकेगा। भौगोलिक रूप से दक्षिण एशिया तक सड़क या रेल संपर्क का कोई भी विस्तार भारत, भूटान और बांग्लादेश से हो कर जाएगा। चीनी अधिकारियों का कहना है कि परियोजनाएं व्यवहारिक हैं और अगर नयी दिल्ली साथ दे तो भारत तथा चीन के लिए एक व्यापार गलियारा बन सकता है।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार राज कादयान ने कहा कि हर एक देश को विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए सड़कों की जरूरत होती है। लेकिन चीन का मामला अलग है। चीन एक विस्तारवादी देश है, दूसरों की जमीन पर वो गिद्ध की तरह आंखें गड़ाये रहता है। वन बेल्ट, वन रोड के जरिए वो अपने पड़ोसी देशों को अपने छत्रछाया में रखना चाहता है। जहां तक ल्हासा-निंगची एक्सप्रेसवे की बात है चीन उसका इस्तेमाल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरी करने के लिए जरूर करेगा। अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के विकास के लिए भारत सरकार जोरशोर से काम कर रही है। लेकिन चीन की रणनीति को देखते हुए सीमावर्ती इलाकों में खासतौर से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में तेजी से काम करना होगा।
चीन-नेपाल की जोड़ी, भारत के लिये चिंताजनक
भारत-चीन के संबध भले ही बनते-बिगड़ते रहते हैं लेकिन नेपाल, चीन से नजदीकी बढ़ा रहा है । अब वह चीन के साथ अपनी सीमाओं को और अधिक खोलने के प्रयास कर रहा है। नेपाल ने चीन के साथ 13 और सीमा द्वारों को खोलने का प्रस्ताव दिया ताकि दोनों देशों के बीच संपर्क में सुधार किया जा सके। हालांकि इस पर चीन की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने कार्यकाल के दौरान पिछले साल चीन के साथ पारगमन व्यापार संधि पर समझौता करने के बाद से नेपाल की सीमा से जोड़ने के लिए रेलवे लाइन के निर्माण की योजना को तेज करने के साथ चीन और नेपाल ने सड़क संपर्क सुधारने का प्रयास तेज किया था।
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