पिछले 70 साल में बदल गया भारत, चीनी रणनीति की धार हो रही कमजोर
भारत के खिलाफ चीन लगातार चाल चलता रहता है। लेकिन जानकार कहते हैं अब चीन को भारत की तरफ से हर मोर्चे पर कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । चीन की विस्तारवादी नीति किसी से छिपी नहीं है। वन बेल्ट,वन रोड के जरिए एक तरफ वो दुनिया भर में अपना सिक्का जमाना चाहता है, तो दूसरी तरफ हिंद महासागर-प्रशांत क्षेत्र में स्थित अलग देशों देशों के बंदरगाहों पर उसकी नजर टिकी है। हाल ही में श्रीलंका के हम्बनटोटा और मालदीव में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के जरिए वो दक्षिण एशिया में दखल देने की कोशिश कर रहा है। वन बेल्ट, वन रोड के जरिए पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन विकसित कर रहा है जिसे वो निकट भविष्य में सैन्य इस्तेमाल में ला सकता है। चीन ने पिछले साल जिस तरह से डोकलाम के मुद्दे पर भारत की घेरेबंदी की उससे साफ है चीनी रणनीतिकारों को मौके की तलाश है जिसके जरिए वो भारत को कमजोर कर सकें। लेकिन डोकलाम, ग्वादर और दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि चीन को भारतीय संप्रुभता के साथ साथ अपने पड़ोसियों की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। यहां हम बताने की कोशिश करेंगे कि चीन की चाल को नाकाम करने के लिए भारत क्या कदम उठा रहा है।
ग्वादर का जवाब चा-बहार से
ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन अपने पश्चिमी इलाकों के विकास का सपना देखता है। ग्वादर तक पहुंच आसान बनाने लेकिन इसका दूसरा पक्ष ये है कि वो सीपेक के जरिए भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। दरअसल, सीपेक गुलाम कश्मीर के इलाके से गुजरता है। सीपेक,पाकिस्तान गुलाम कश्मीर के इलाके से गुजरता है और पाकिस्तान भी सामरिक इस्तेमाल के लिए इस्तेमाल कर सकेगा। इसके साथ ही यूरोपीय देशों से व्यापार अरब सागर के जरिए संचालित होता है। ग्वादर पोर्ट के विकसित होने के साथ चीन भारतीय जहाजों की निगरानी कर सकता है लेकिन चीन की इस काट को भारत ने चाबहार में देखा जो कि ग्वादर से महज 100 किमी उत्तर में है। हाल ही में भारत दौरे पर आए ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने चाबहार की चाभी भारत को सौंप दी।
भारत के पड़ोस में चीन और भारतीय विदेश नीति
चीन, भारत के पड़ोसी देशों में दखल देने की कोशिश कर रहा है। बांग्लादेश में जहां उसने करोड़ों डॉलर निवेश किया है वहीं, चीन में अपने इंटरनेट जाल को बढ़ाने में कामयाब हो चुका है। चीन की चाल को नाकाम करने के लिए भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हाल ही में काठमांडू का दौरा किया था। हाल ही में नेपाल के भावी पीए के पी शर्मा ओली ने कहा कि ये बात सच है कि वो नेपाल के विकास के लिए चीन की मदद लेना चाहते हैं।लेकिन भारत की मदद पर उनका भरोसा ज्यादा है। अगर नेपाल की भौगोलिक स्थिति को देखें तो भारत के रास्ते व्यापार को आगे बढ़ाना आसान है जबकि चीन की तरफ से भौगोलिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। श्रीलंका ने साफ कर दिया है कि हम्बनटोटा का विकास चीन जरूर कर रहा है लेकिन भारत और श्रीलंका के सांस्कृतिक संबंध गहरे हैं और ऐतिहासिक संबंधों को निभाने में वो पीछे नहीं हटेगा।
दक्षिण चीन सागर में चीनी विस्तार पर रोक
दक्षिण चीन सागर में चीन, अंतरराष्ट्रीय नियम और कानूनों की अनदेखी कर विस्तार कर रहा है। चीन की इस नीति पर उसके पड़ोसी देश जमकर मुखालफत कर रहे हैं। अमेरिका पहले ही कह चुका है कि चीन की कोई भी नीति जो इस इलाके की स्थिरता में खलल डालती है तो वो चुप नहीं बैठेगा। इसके साथ ही हाल में आसियान के राष्ट्राध्यक्षों का भारत के गणतंत्र दिवस पर चीन के लिए साफ संदेश था। 1992 में नरसिंहराव सरकार ने पूर्वी एशिया के देशों के साथ आगे बढ़ने के लिए लुक ईस्ट पॉलिसी पर काम करना शुरू किया जब कि मोदी सरकार ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी का नाम दिया।
डोकलाम पर चीन को मात
डोकलाम के मुद्दे पर भारत सरकार के दृढ़ निश्चय के सामने चीन को झुकना पड़ा। ये बात अलग है कि डोकलाम के मुद्दे पर चीन भड़काने वाली कार्रवाई करता रहता है। हाल ही में भारत के एनएसए, ऑर्मी चीफ और विदेश सचिव ने भूटान का दौरा किया जिसे चीनी सरकार ने अपने लिए खतरनाक माना। लेकिन भारत ने साफ किया कि उसकी नीति हमेशा से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की रही है और वो उन्हीं आदर्शों में विश्वास करता है।
जानकार की राय
दैनिक जागरण से खास बातचीत में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हर्ष वी पंत का कहना है कि भारत का फैलाव चीन को हमेशा से खटकता रहा है। अगर सांस्कृतिक तौर पर देखें तो जितनी प्राचीन सभ्यता चीन की है उतनी ही प्राचीन भारत की भी है। चीन इस सच को कभी स्वीकार नहीं कर सका। जिसे आप 1962 की लड़ाई, 1965, 1971 में भारत के लड़ाई में पाकिस्तान के साथ सहयोग, अंतरराष्ट्रीय आतंकी मसूद अजहर के मामले में दोहरा रवैया। लेकिन अब भारत एक स्पष्ट नीति और सोच के साथ दुनिया के अलग अलह देशों को चीन की भावना से अवगत करा रहा है। भारत की इस कोशिश का असर भी दिखता नजर आ रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियों पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत एक साथ मिलकर आगे चलने को तैयार हैं।