गरमा रहा है सऊदी अरब के मिसाइल प्रोग्राम में चीन का हाथ होने का शक, बढ़ सकता है तनाव
सऊदी अरब के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम में चीन का नाम सामने आ रहा है। इसकी वजह से एक बार फिर इस पूरे क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सऊदी अरब, अमेरिका और चीन के बीच आने वाले समय में तल्खियां बढ़ सकती हैं। इसकी वजह सऊदी अरब का बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम है। अब इस प्रोग्राम में चीन का भी नाम सामने आ रहा है। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक चीन कथिततौर पर इसमें मदद कर रहा है। यही वो वजह है जिसकी वजह से तल्खी बढ़ने की बात कही जा रही है। इस शक की दूसरी वजह ये भी है कि सऊदी अरब ने चीन और पेइचिंग से पहले भी मिसाइलें खरीदी हैं। जहां तक अमेरिका से संबंध खराब होने की बात है तो आपको बता दें वह काफी लंबे समय से सऊदी अरब का रणनीतिक साझेदार रहा है। हाल के कुछ वर्षों में दोनों के संबंधों में और अधिक इजाफा हुआ है। लेकिन चीन संबंधी रिपोर्ट सामने आने का असर अब दो तरफा हो सकता है। यहां ये भी ध्यान में रखना होगा कि चीन के साथ अमेरिका के संबंध काफी समय से तनावपूर्ण बने हुए हैं। इसमें एक नहीं कई मुद्दे हैं। अब सऊदी अरब का मिसाइल प्रोग्राम इसकी ही एक नई कड़ी बन सकता है। वहीं दूसरी तरफ जमाल खाशोगी की हत्या के मुद्दे पर अमेरिका की सऊदी अरब से नाराजगी किसी से छिपी नहीं है।
सऊदी अरब का निवेश
वाशिंगटन पोस्ट ने कैलिफॉर्निया में मिडलबरी इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज के मिसाइल एक्सपर्ट जेफरी लुइस के हवाले से लिखा है कि यमन से बढ़ते संकट को देखते हुए हाल के कुछ समय में सऊदी अरब ने मिसाइलों पर काफी निवेश किया है। यमन और ईरान से गहराते संंकट के बीच उसकी रूचि मिसाइलों में बढ़ रही है। आपको बता दें कि लुईस ने हाल ही में सामने आई से सेटेलाइट इमेज का काफी बारीकि से अध्ययन किया है। यह रिपोर्ट पहली बार बीते वर्ष नवंबर में सामने आई थी। इसके आधार पर उनका कहना है कि सऊदी अरब की महत्वाकांक्षाओं को लेकर हम गलत आंकलन कर रहे हैं।
अल-दवादमी कस्बे के पास है सैन्य बेस
आपको बता दें कि वॉशिंगटन पोस्ट ने सबसे पहले इन तस्वीरों के बारे अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी। इस रिपोर्ट में जिस सैन्य बेस की बात की गई थी वह सऊदी की राजधानी रियाद से 230 किमी पश्चिम में अल-दवादमी नामक कस्बे के पास स्थित है। हालांकि इस बेस की जानकारी 2013 में ही सामने आ गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक इस बैस पर दो लॉन्च पैड हैं। इन्हें इजरायल और ईरान को देखते हुए ही तैयार किया गया है। जहां तक लुईस की बात है तो वह मानते हैं कि नवंबर में मिली सैटलाइट तस्वीरों में जितना बड़ा स्ट्रक्चर दिखाई दे रहा है, वह बैलिस्टिक मिसाइल बनाने के लिए पर्याप्त है। बेस के कोने में रॉकेट इंजन टेस्ट स्टैंड भी दिखाई देता है। टेस्ट फायर के बारे में कुछ संकेत मिले हैं। जानकारों का कहना है कि मिसाइलें बनाने की दिशा में प्रयास करने वाले देशों के लिए इस तरह की टेस्टिंग अहम बात है।
चीन और सऊदी का नया नहीं सहयोग
लुइस ने कहा कि सऊदी का स्टैंड ठीक उस तरह का दिखता है जैसा डिजाइन चीन इस्तेमाल करता है। हालांकि यह छोटा है। सऊदी को चीन से मिलने वाला सैन्य सहयोग कोई आश्चर्य की बात नहीं है। चीन ने लगातार सऊदी और दूसरे मध्यपूर्व के देशों को बड़ी संख्या में सशस्त्र ड्रोन बेचे हैं। उधर, अमेरिका ने इसकी बिक्री पर रोक लगा रखी है। पेइचिंग ने भी अपने कई मिसाइल रियाद को बेची हैं।
इससे आशंका जताई जा रही है कि हो सकता है कि तकनीकी जानकारी सऊदी को चीन से मिली हो। वॉशिंगटन में इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज में मिसाइल डिफेंस के सीनियर फेलो माइकल एलमैन ने भी सैटलाइट तस्वीरों की जांच की है। उनके मुताबिक तस्वीरों से साफ है कि सऊदी अरब इस तरह की मिसाइल पर काम कर रहा है।
क्राउन प्रिंस का बयान
आपको बता दें कि बैलिस्टिक मिसाइलें हजारों किमी दूर तक परमाणु हथियार ले जा सकती हैं। वहीं, रियाद में अधिकारियों और वॉशिंगटन में सऊदी दूतावास के अधिकारियों ने इस बाबत पूछे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बैलिस्टिक मिसाइल को विकसित करने के दावों दावों को सच मानने की एक वजह यह भी है कि पिछले साल सऊदी अरब के शक्तिशाली क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा था कि अगर ईरान इस तरह के हथियार कार्यक्रम चलाता है तो देश को परमाणु हथियार विकसित करने में हिचक नहीं होगी।खास बात यह है कि इसी तरह हथियार कार्यक्रमों के मिले तथ्यों के आधार पर सऊदी अरब लंबे समय से अपने धुर-विरोधी ईरान की आलोचना करता आ रहा है।