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भावुक लोगों की कमजोर हो सकती है समझ, व्यवहार में बदलाव करेगा डिमेंशिया से बचाव : अध्ययन

अध्‍ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि कुछ खास गुणों में बदलाव लाकर डिमेंशिया की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। साथ ही आसपास के माहौल को लेकर प्रतिक्रियावादी होना संज्ञानात्मक सुधार के लिए फायदेमंद होता है।

By Praveen Prasad SinghEdited By: Published: Wed, 13 Apr 2022 07:41 PM (IST)Updated: Wed, 13 Apr 2022 07:41 PM (IST)
भावुक लोगों की कमजोर हो सकती है समझ, व्यवहार में बदलाव करेगा डिमेंशिया से बचाव : अध्ययन
डिमेंशिया एक मानसिक विकार है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।

टोरंटो, आइएएनएस : यदि आप तुनकमिजाज या भावनात्मक रूप से अस्थिर हैं तो आगे चलकर आपको कई परेशानियों का सामाना करना पड़ सकता है। मतलब आपकी समझने या सोचने की शक्ति भावनात्मक रूप से मजबूत या दृढ़ तथा आत्मसंयमित व्यक्तियों की तुलना में ज्यादा कमजोर हो सकती है। यह शोध निष्कर्ष जर्नल आफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलाजी में प्रकाशित हुआ है।

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अध्ययन में व्यक्तियों की अंतर्विवेकशीलता, मनोरोगी व्यवहार और आसपास की क्रियाकलापों को लेकर ज्यादा संवेदनशील और प्रतिक्रियावादी जैसे गुणों का जीवन के उत्तरा‌र्द्ध में संज्ञानात्मक क्षमताओं पर होने वाले असर की पड़ताल की गई है। यूनिवर्सिटी आफ विक्टोरिया के शोधकर्ता तथा अध्ययन के प्रमुख लेखक तोमिको योनेडा ने बताया कि व्यक्तिगत गुण सोच और व्यवहार संबंधी स्थायी पैटर्न को प्रभावित करते हैं, जो समग्र रूप से सोचने-समझने की प्रक्रिया पर जीवनभर के लिए असर छोड़ते हैं। जीवन में ऐसे अनुभव मानसिक रोग या विकृति के रूप में सामने आते हैं। इसमें संज्ञानात्मक क्षमता में गड़बड़ी या उम्र जनित तंत्रिका संबंधी बदलावों के मामलों में अन्य लोगों से उन्हें अलग करता है।

योनेडा के मुताबिक, जिस व्यक्ति का अंतर्विवेकी स्कोर अधिक होता है, वह ज्यादा जिम्मेदार, संगठित, परिश्रमी तथा लक्ष्य परक होता है। ऐसे ही जिनका न्यूरोटिशिज्म (मनोरोगी व्यवहार) स्कोर ज्यादा होता है, वे भावनात्मक रूप से अस्थिर तथा तुनकमिजाजी होने के साथ ही बेचैनी, अवसाद, नकारात्मकता और खुद पर भी संदेह की स्थिति से गुजरते हैं। जबकि आसपास के माहौल के प्रति ज्यादा संवेदनशील या प्रतिक्रियावादी लोग अन्य व्यक्तियों से प्रेरित होकर ऊर्जा ग्रहण करते हैं। ऐसे लोग उत्साही, मिलनसार, बातूनी और मुखर होते हैं।

अध्ययन में शोध टीम ने 1,954 ऐसे लोगों के डाटा का विश्लेषण किया, जिनमें औपचारिक तौर पर डिमेंशिया का डायग्नोसिस नहीं हुआ था। यह अध्ययन 1997 से अभी तक चल रहा था। उन्होंने बताया कि जिन प्रतिभागियों का अंतर्विवेकी स्कोर अधिक या मनोरोगी व्यवहार का स्कोर कम था, उनमें सामान्य स्थिति से संज्ञानात्मक गड़बड़ी की ओर अग्रसर होने का जोखिम कम था।

योनेडा ने बताया कि शून्य से लेकर 48 तक के स्कोर वाले अंतर्विवेकी स्केल पर छह प्वाइंट अधिक स्कोर करने वाले लोगों में सामान्य संज्ञानात्मक क्षमता से उसमें हल्के गड़बड़ी की ओर बढ़ने का जोखिम 22 प्रतिशत कम था। इसी प्रकार मनोविकार संबंधी व्यवहार के शून्य से लेकर 48 अंकों वाले स्केल पर लगभग सात या उससे अधिक स्कोर करने वालों में सामान्य संज्ञानात्मक क्षमता से उसके बिगड़ने की ओर बढ़ने का जोखिम 12 प्रतिशत ज्यादा था।

वहीं, मनोरोगी व्यवहार का स्कोर ज्यादा होने के बावजूद आसपास के माहौल के प्रति अधिक प्रतिक्रिया जताने वाले लोगों में संज्ञानात्मक क्षमता में आए ह्रास से सुधार और उनके सामान्य होने की संभावना अधिक होती है। यह निष्कर्ष इस बात का संकेत है कि डिमेंशिया से ग्रसित होने की ओर बढ़ रहे व्यक्तियों में ऐसे कुछ व्यक्तिगत विशिष्ट गुणों के विकास होने से इस रोग से सुरक्षा मिल सकती है।

ऐसे मामलों में आसपास के माहौल को लेकर प्रतिक्रियावादी होना संज्ञानात्मक सुधार के लिए फायदेमंद है। इसमें सामाजिक संपर्क खास महत्व रखता है। हालांकि शोधकर्ताओं ने इन सभी व्यक्तिगत गुणों का जीवन प्रत्याशा बढ़ने से कोई संबंध नहीं पाया।


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