संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में आखिर क्यों नहीं आया रूस, जानें इसकी बड़ी वजह
इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक भारत-पाकिस्तान के लिए खास था। लेकिन इस बैठक में रूस नदारद रहा। जानिए रूस की गैरमौजुदगी की बड़ी वजह।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों में से एक संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) की बैठक में रूस नदारद रहा। हालांकि, महासभा की सालाना बैठक का इंतजार दुनिया के हर मुल्क को रहता है। खासकर विकासशील देशों की दिलचस्पी इसमें अधिक होती है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि महासभा में सर्वाधिक संख्या विकासशील देशों की है। विकासशील देश संख्याबल के कारण कई बार महासभा में अपनी बात मनवाने के लिए विकसित देशों को बाध्य करते है। इसका एक पहलू और भी है। शीत युद्ध के समय और बाद में महासभा की भूमिका में भी बड़ा बदलाव आया है। रूस की महासभा की बैठक में दिलचस्पी घटने की एक बड़ी वजह रही है। आइए जानते हैं इसकी बड़ी वजह। इसके अलावा महासभा के कुछ अन्य पहलुओं पर भी चर्चा।
शीत युद्ध के दौरान विकसित देशों की राजनीति का अड्डा
शीत युद्ध के दौरान महासभा का मंच विकसित देशों की राजनीति का अखाड़ा बन गया। उस दौरान विकासशील देश दो खेमों में बंट गए। हालांकि, गुटनिरपेक्ष आंदोलन से जुड़े कुछ चुनिंदा देश इस खेमे से मुक्त रहने का प्रयास करते थे। लेकिन अधिकतर विकासशील देश खेमे में बंटे थे। एेसे में महासभा विकसित देशों की राजनीति का बड़ा अड्डा बन गई थी। उस वक्त महासभा की बैठक विकासशील देशों के साथ विकसित देशों के लिए भी अहम थी। लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद हालात बदल गए है। सोवियत संघ के विघटन के बाद अतंरराष्ट्रीय राजनीति के समीकरण में बदलाव आया। दुनिया की पूरी राजनीति अमेरिका के इर्दगिर्द घुमने लगी। बाद के दिनों में बाजारवाद ने पूरे समीकरण को बदल कर रख दिया। यही कारण है कि अब रूस की दिलचस्पी महासभा की राजनीति में कम होती गई।
एक दशक में एक बार ही बैठक में शामिल हुआ रूस
महासभा की सलाना बैठक रूस विगत कई वर्षों से इस बैठक में गैरमौजूद रहा। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक दशक में केवल एक बार ही इस महासभा की बैठक में शामिल हुए। वह आखिरी बार वर्ष 2015 में इस बैठक में शामिल हुए थे। उनकी महासभा के प्रति दिलचस्पी इस सत्य को उजागर करती है। हितों और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव के साथ ही महासभा की भूमिका में भी बदलाव आना लाजमी था।
महासभा में बैठने का प्रोटोकाल
महासभा के सालाना अधिवेशन के दौरान पूरे हॉल में देशों के प्रतिनिधित्व के बैठने का क्रम तय हाेता है। इसमें तय किया जाता है कि अधिवेशन हॉल में कौन देश कहां बैठेगा। इसके लिए अंग्रेजी नाम के वर्णनुक्रम को आधार बनाया जाता है। तभी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाेलने की बारी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान से पहले आई क्योंकि अंग्रेजी का आइ अक्षर पी से पहले आता है।
महासभा में अधिक देर तक बोलने का रिकार्ड
संयुक्त राष्ट्र महासभा में अधिक देर तक बोलने का रिकार्ड वर्ष 1960 में क्यूबा के राष्ट्रपति के नाम फिदेल के नाम दर्ज है। इस सत्र में वह करीब साढ़े चार घंटे तक बोले थे। किसी महासभा सत्र में किसी राष्ट्राध्यक्ष द्वारा सबसे लंबा भाषण था। वर्ष 2009 में लीबिया के तानाशाह मुहम्मद गद्दाफी दूहसरे स्थान पर हैं। महासभा की वार्षिक बैठक में उन्होंने 90 मिनट तक का भाषण दिया था।
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