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क्‍या होता है किसी वैक्‍सीन के असरदायक होने का अर्थ? इन 3 कंपनियों की कोविड-19 वैक्‍सीन हैं 90 फीसद से अधिक प्रभावी!

कोविड-19 की वैक्‍सीन बनाने वाली तीन कंपनियों ने दावा किया है कि उनकी वैक्‍सीन कोरोना वायरस पर 90 फीसद से अधिक कारगर है। लेकिन किसी वैक्‍सीन के असरदायक होने का क्‍या अर्थ होता है ये जानना भी जरूरी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 17 Nov 2020 09:51 AM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 07:26 AM (IST)
क्‍या होता है किसी वैक्‍सीन के असरदायक होने का अर्थ? इन 3 कंपनियों की कोविड-19 वैक्‍सीन हैं 90 फीसद से अधिक प्रभावी!
कोविड-19 की वैक्‍सीन बनाने वाली तीन कंपनियों ने 90 फीसद से अधिक कारगर होने का दावा किया है।

वाशिंगटन (रॉयटर) कोविड-19 के 10 माह के बाद इसकी जो वैक्‍सीन सामने आई हैं उनको लेकर अलग अलग दावे किए जा रहे हैं। ये दावे एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ की कहानी भी बयां करते दिखाई दे रहे हैं। जैसे कुछ दिन पहले ही फाइजर कंपनी ने दावा किया था कि उनकी वैक्‍सीन कोविड-19 की रोकथाम में करीब 90 फीसद तक कारगर है। इसके अगले ही दिन रूस की स्‍पुतनिक-5 की तरफ से दावा किया गया उनकी वैक्‍सीन कोविड-19 के खात्‍मे में 92 फीसद तक कारगर है। अब इन दोनों के बाद अमेरिका की मॉडर्ना कंपनी ने दावा किया है कि उनकी वैक्‍सीन कोरोना वायरस पर करीब 95 फीसद तक कारगर है। कंपनी ने ये भी कहा है कि इसको आसानी के साथ सामान्‍य फ्रिज में रखा जा सकता है। वहीं फाइजर की वैक्‍सीन के लिए कहा गया था कि इसको माइनस 70 डिग्री पर रखना होगा। यही वजह थी कि इसको लेकर कई देशों के पीछे हटने की बात सामने आ रही थी। भारत की भी इस वैक्‍सीन को लेकर चिंता सामने आई थी। नई दिल्‍ली स्थित एम्‍स के निदेशक डॉक्‍टर रणदीप गुलेरिया का कहना था कि भारत में इसको रखने की व्‍यवस्‍था फिलहाल नहीं है।

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इन तीनों कंपनियों के अलग-अलग दावों के बाद ये जानना हमारे लिए बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिर किसी वैक्‍सीन की इफेक्‍टिवनेस या उसके असरदायक होने के क्‍या मायने होते हैं। दरअसल, वैक्‍सीन के असरदायक होने का मतलब होता है कि वो लोगों पर कैसा असर दिखाती है। कोविड-19 की वैक्‍सीन बनाने वाली दो कंपनियों ने अपने शुरुआती परिणाम और शोध के बाद इसके बेहद असरदायक होने का दावा किया है। इन कंपनियों के दावे के बाद इस बात की भी उम्‍मीद जताई जा रही है कि यदि इन वैक्‍सीन का परिणाम इसी तरह से ही आगे भी बना रहता है तो अगले वर्ष इस वैश्विक महामारी से निजात पाई जा सकती है।

जहां तक इनके असरदायक होने की बात है तो इसमें कुछ कम ज्‍यादा हो सकता है। इन वैक्‍सीन का प्रत्‍येक 100 मरीजों पर सामने आने वाला रिजल्‍ट इसको तय करेगा। लेकिन फिलहाल शुरुआती परिणाम इन वैक्‍सीन के काफी हद तक असरदायक होने की गवाही जरूर दे रहे हैं। इसका अर्थ है कि यदि इन वैक्‍सीन को अधिक से अधिक लोगों को दिया जाए तो उन्‍हें इस जानलेवा वायरस के संक्रमण में आने से बचाया जा सकता है। इस तरह से उनकी जान बचाना भी संभव हो सकता है। अमेरिकी स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि कोरोना वायरस की वैक्‍सीन के इस्‍तेमाल की इजाजत देने के लिए उसके कम से कम 50 फीसद तक असरदायक होना जरूरी है। ऐसा न होने पर वो एक फ्लू की वैक्‍सीन बनकर रह जाएगी जिसकी असरदायक क्षमता 20 से 60 फीसद तक होती है।

कोविड-19 की वैक्‍सीन को लेकर वैज्ञानिकों को ये देखना भी जरूरी है कि आखिर ये वैक्‍सीन अलग-अलग जगहों पर रहने वाले अलग-अलग उम्र के लोगों पर किस तरह का असर दिखा रही है। अभी तक जिन दो वैक्‍सीन ने सबसे अधिक प्रभावी होने का दावा किया है उसका आधार कोविड-19 के लक्षणों पर प्रभावी होना है। इसका अर्थ ये भी है कि हम नहीं जानते हैं कि यदि किसी को ये वैक्‍सीन दी जाती है तो वो इससे दोबारा संक्रमित होगा या नहीं। उक्‍त व्‍यक्ति पर इस वायरस के लक्षण दिखाई न देने पर वो इसके संक्रमण को फैलाने में कितना हानिकारक होगा इस बारे में भी अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है। अभी ये भी जानना बाकी है कि ये अकेली वैक्‍सीन लोगों को इस वायरस से बचा सकेगी या फिर इसके लिए कुछ और भी जरूरी होगा।

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