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यूजर बिना सोचे-समझे सोशल मीडिया में फर्जी खबरों को कर देते हैं साझा

भारतीय मूल की शोधकर्ता मेधा राज ने कहा ‘पहली बार किसी हेडलाइन को देखकर लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 10:35 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 10:37 AM (IST)
यूजर बिना सोचे-समझे सोशल मीडिया में फर्जी खबरों को कर देते हैं साझा
यूजर बिना सोचे-समझे सोशल मीडिया में फर्जी खबरों को कर देते हैं साझा

लॉस एंजिलिस, प्रेट्र। सोशल मीडिया में बार- बार फेक न्यूज यानी फर्जी खबरों को पढ़नेदिखने के बाद लोगों को इन्हें शेयर करना बड़ा अपराध नहीं लगता और कई बार लोग यह जानते हुए भी कि खबर फेक है उसे साझा कर देते हैं। एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। अमेरिका की सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में 25 हजार प्रतिभागियों को शामिल किया गया था।

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इस अध्ययन से जुड़े भारतीय मूल की शोधकर्ता मेधा राज ने कहा, ‘पहली बार किसी हेडलाइन को देखकर लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं। यदि उसी हेडिंग को वह दो-चार बार देख लेते हैं तो उन्हें खीझ तो होने लगती है, पर वे आसानी से यह नहीं समझ पाते कि खबर सही है या गलत।’

साइकोलॉजिकल साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक ऑनलाइन सर्वेक्षण प्रतिभागियों से पूछा कि वे यह कैसे निर्धारित करते हैं कि खबर का शीर्षक फेक है या खबर सही है। इस दौरान उन्होंने पाया कि जिन खबरों के शीर्षकों को प्रतिभागियों ने एक से अधिक बार देखा था, उनके बारे में प्रतिभागियों की राय थी कि ये खबरें गलत नहीं हो सकती हैं और उसे साझा करना उन्हें अनैतिक भी नहीं लगता। कई प्रतिभागी ऐसे भी थे जो जानते थे कि खबर फेक है, उसके बावजूद भी उन्होंने खबर को साझा किया था।

शोधकर्ताओं ने कहा, ‘फेक न्यूज के दुष्प्रभाव इतने खतरनाक हैं कि इससे समाज दो धाराओं में बंट सकता है। कई स्थानों पर सांप्रदायिक तनाव और हिंसा फैल सकती है। इससे बचने के लिए सोशल मीडिया के यूजरों को चाहिए कि वे जागरूक हों और किसी भी खबर पर विश्वास करने से पहले उसकी परख जरूर कर लें। इस दिशा में सोशल मीडिया कंपनिया भी जरूरी कदम उठा सकती हैं। झूठी खबरों का प्रसार होने से पहले ही उन्हें ब्लॉक करने से समस्याएं बहुत हद तक कम हो सकती हैं।

कठोर कानून से भी कम हो सकती हैं समस्याएं

फेक खबरों पर लगाम कसने के लिए इस दिशा में कठोर कानून भी बनाए जाने की जरूरत है। मलेशिया दुनिया के उन अग्रणी देशों में से एक है, जिसने फेक न्यूज रोकने के लिए सख्त कानून बनाया है। यहां फेक न्यूज फैलाने पर 5,00,000 मलेशियन रिंग्गित (84.57 लाख रुपये) का जुर्माना या छह साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है। वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया ने भी झूठी खबरों को रोकने के लिए एंटी-फेक न्यूज लॉ बनाया है। इसके तहत फेक न्यूज फैलाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफार्म से उसके सालाना टर्न ओवर का 10 फीसद जुर्माना वसूला जा सकता है। साथ ही तीन साल तक की सजा भी हो सकती है।

यहां फेक न्यूज के अलावा अगर सोशल मीडिया कंपनी आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले, हत्या, दुष्कर्म और अन्य गंभीर प्रकृति के अपराधों से संबंधित पोस्ट हटाने में असफल होती है तब भी उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। कानून का उल्लंघन करने वाले को 1,68,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर (80.58 लाख रुपये) और किसी निगम या संगठन पर 4.029 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

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