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नाटो के अस्तित्‍व के लिए खतरा बन सकते हैं अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप, ये है पूरा मामला

पूर्व सरकार के कई फैसले पलपटने के बाद अब ट्रंप नाटो से अमेरिका को बाहर निकालने का मन बना रहे हैं। इससे नाटो के अस्तित्‍व पर ही खतरा मंडरा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 03:15 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 03:15 PM (IST)
नाटो के अस्तित्‍व के लिए खतरा बन सकते हैं अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप, ये है पूरा मामला
नाटो के अस्तित्‍व के लिए खतरा बन सकते हैं अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप, ये है पूरा मामला

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। 70 वर्ष पुराने उत्‍तरी एटलांटिक संधि संगठन (नाटो) पर संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे हैं। इसकी वजह अमे‍रिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप हैं जो अब इससे अलग होने की बात कर रहे हैं। इससे बाहर आने की उनकी सोच पहली बार पिछले वर्ष सामने आई थी। ट्रंप इसको भी अमेरिका की तरक्‍की में बाधा मान रहे हैं। यही वजह है कि वह इससे बाहर आने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। वहीं इसके उलट ट्रंप के करीबी सहयोगी इस फैसले को गलत मानते हुए उनका विरोध कर रहे हैं। इसमें जिम मैटिस, पूर्व रक्षा सचिव, जॉन बोल्‍टन, नेशनल सिक्‍योरिटी एडवाइजर शामिल हैं। आपको बता दें कि कोरियाई युद्ध के दौरान इसके गठन का खाका सामने आया था। इसके गठन में अमेरिका के दो वरिष्‍ठ सैन्‍य अधिकारियों ने अहम भूमिका निभाई थी।

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ट्रंप ने पिछले वर्ष दिया था बयान
पिछले वर्ष ट्रंप ने इसका जिक्र नेशनल सिक्‍योरिटी से जुड़े टॉप अधिकारियों से भी किया था। उनका कहना था कि नाटो में शामिल होने से देश को नुकसान हो रहा है। आपको यहां पर बता दें कि ट्रंप ने कुछ समय पहले कहा था कि अमेरिका पूरे विश्‍व की चौकीदारी नहीं कर सकता है। जहां तक ट्रंप की बात है तो वह साफतौर पर इस बात को जगजाहिर कर चुके हैं कि जहां अमेरिका का फायदा नहीं है उस काम को करने में कोई फायदा नहीं है। वहीं हालांकि यदि ट्रंप इस तरह का फैसला लेते हैं तो यह कोई नई बात नहीं होगी।

ट्रंप की सोच से डरे अधिकारी
ट्रंप कई मामलों में न सिर्फ पूर्व सरकार के फैसलों को पलट चुके हैं। ईरान से परमाणु समझौता, ओबामा हेल्‍थकेयर, रूस से समझौता रद करना और पेरिस डील से पीछे हटने जैसे कई उदाहरण हैं जो ट्रंप के इन तथ्‍यों को प्रमाणित करते हैं। ट्रंप की इस सोच से राष्‍ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अधिकारी भी कहीं न कहीं डरे हुए हैं। बराक ओबामा सरकार में रक्षा मंत्रालय में अवर सचिव मिशेले फ्लोरनॉय इस सोच को काफी खतरनाक मानते हैं। उनके अलावा रिटायर्ड एडमिरल जेम्‍स स्‍टावरिडीस इसको एक बड़ी गलती मानते हैं।

नाटो के बजट में 50 फीसद की हिस्‍सेदारी रखता है अमेरिका
आपको यहां पर ये बताना भी जरूरी हो जाता है कि नाटो के सभी सदस्यों का संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के रक्षा व्यय का 70 फीसद से अधिक है। इसके कुल बजट का आधा खर्च केवल संयुक्त राज्य अमेरिका अकेले ही उठाता है। इसके बाद ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली इसमें 15-15 फीसद की हिस्‍सेदारी रखते हैं। यहां पर ये बात इसलिए भी मायने रखती है क्‍योंकि पेरिस समझौते से अलग हटते हुए ट्रंप ने साफतौर पर कहा था कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सबसे अधिक खर्च अमेरिका करता है। ऐसे में अमेरिका हर तरफ से नुकसान नहीं सहेगा। नाटो के मुद्दे पर भी ट्रंप की यही सोच काम कर रही है।

नाटो के गठन पर एक नजर
उत्‍तरी एटलांटिक संधि संगठन की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी। इसका मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में है। संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे। इसकी गठन की शुरुआत के कुछ वर्षों में यह संगठन एक राजनीतिक संगठन से अधिक नहीं था। लेकिन कोरियाई युद्ध ने सदस्य देशों को प्रेरक का काम किया और दो अमेरिकी सर्वोच्च कमांडरों के दिशानिर्देशन में एक एकीकृत सैन्य संरचना निर्मित की गई। लॉर्ड इश्मे पहले नाटो महासचिव बने थे। 1 अप्रैल 2009 को अल्बानिया और क्रोएशिया के प्रवेश के साथ गठबंधन की सदस्य संख्या बढ़कर 28 हो गई।

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