नस्लवाद की चपेट में US: पोर्टलैंड और ओरेगन में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने आंसू गैस का प्रयोग किया
अधिकारियों के मुताबिक इस दौरान लगभग तीन हजार लोग मौजूद थे और वह ब्लैक लाइव्स मैटर और फेड गो होम जैसे नारे लगा रहे थे।
पोर्टलैंड, एजेंसी। अमेरिका में नस्लवाद के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे। शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात को पोर्टलैंड और ओरेगन की संघीय अदालत के बाहर हजारों प्रदर्शनकारी एक बार फिर एकत्र हो गए। लगभग ढाई बजे संघीय पुलिस मौके पर पहुंची और प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया। साथ ही प्रदर्शनकारियों द्वारा अदालत परिसर के बाहर सड़क पर जलाई जा रही आग को बुझाया।
इधर, प्रदर्शनकारी जैसे ही तितर-बितर हुए वैसे ही एक व्यक्ति को किसी ने चाकू मार दिया। पुलिस ने घायल को जहां अस्पताल में भर्ती कराया है वहीं संदिग्ध को गिरफ्तार कर लिया गया है। इससे पहले शुक्रवार रात हुए विरोध प्रदर्शन में स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक और वकीलों से जुड़े संगठनों ने भाग लिया। अधिकारियों के मुताबिक इस दौरान लगभग तीन हजार लोग मौजूद थे और वह 'ब्लैक लाइव्स मैटर' और 'फेड गो होम' जैसे नारे लगा रहे थे।
बाद में प्रदर्शनकारियोने संघीय अदालत के बाहर लगी जालियों को जोर से हिलाया, इमारत की ओर आतिशबाजी और कांच की बोतलें फेंकी। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान किसी को गिरफ्तार किया गया था या नहीं। ओरेगन में लोकतांत्रिक नेताओं का कहना है कि संघीय हस्तक्षेप ने स्थिति को और खराब किया है।
इन दिना दुनिया का ताकतवर देश मुश्किलों में फंसा हुआ है। एक तरफ 46 लाख कोरोना के मरीज, सवा लाख के करीब मौत, चीन के साथ तनाव, माली हालत खस्ता, इसी साल चुनाव और ऊपर से राज्य-राज्य, शहर-शहर लोगों का गुस्सा और आंदोलन। अमेरिका इस वक्त शायद अपने इतिहास के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। दुनिया को लोकतंत्र और बाराबरी के हक का पाठ पढ़ाने वाला ये देश आज खुद श्वेत-अश्वेत यानी गोरे-कालों के बीच भेदभाव की लड़ाई में उलझ कर रह गया।
हालांकि, कानूनी तौर पर तो अफ्रीकन अमेरिकन लोगों को गुलामी प्रथा समाप्त हो गई है। मगर सामाजिक तौर पर अभी भी यह भेद कायम है। श्वेत अमेरिकी खुद को अफ्रिकी लोगों से श्रेष्ठ और ऊंचा समझते थे। कानून के पारित होने के बाद भी उनकी मानसिकता नहीं बदली, बल्कि अब अमेरिकी राज्यों में स्लेव पेट्रोल नाम की टोली या संगठन के लोग निकलने लगे, जो ये देखते थे कि कहीं किसी कारखाने या खेतों में काम कर रहे अफ्रीकी लोग बगावत की योजना तो नहीं बना रहे हैं। ऐसा करने वाले लोगों को प्रताड़ित किया जाता था।