Move to Jagran APP

रूस और चीन से मुकाबले को अमेरिका बना रहा घातक 'हाइपरसोनिक मिसाइल'

रूस और चीन से बढ़ते खतरे के मद्देनजर अमेरिका ने भी हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने की कवायद शुरू कर दी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 20 Apr 2018 12:30 PM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 03:11 PM (IST)
रूस और चीन से मुकाबले को अमेरिका बना रहा घातक 'हाइपरसोनिक मिसाइल'
रूस और चीन से मुकाबले को अमेरिका बना रहा घातक 'हाइपरसोनिक मिसाइल'

नई दिल्ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। रूस और चीन से बढ़ते खतरे के मद्देनजर अमेरिका ने भी हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने की कवायद शुरू कर दी है। मौजूदा दौर में अमेरिका के रूस के साथ संबंध बेहद निचले स्‍तर पर आ चुके हैं। वहीं चीन से भी लगातार दक्षिण चीन सागर को लेकर उसको धमकी दी जाती रही है। इसके मद्देनजर अमेरिकी वायुसेना इसके विकास पर करीब एक बिलियन डॉलर खर्च कर रही है। इसके लिए लॉकहिड मार्टिन को करीब 928 मिलियन डॉलर का कांट्रेक्‍ट भी दिया गया है। यह मिसाइल आवाज की गति से भी तेज चलने में सक्षम होती है। हाईपरसोनिक कंवेंशनल स्‍ट्राइक वैपन प्रोग्राम की दिशा में यह बड़ा कदम है। अमेरिका इसके अलावा टेक्टिकल बूस्‍ट ग्‍लाइड प्राग्राम भी तैयार कर रहा है। यह डापरा की मदद से तैयार किया जा रहा है। यह दोनों ही एक एडवांस प्रोटोटाइप विकसित करने में लगे हैं जिन्‍हें अमेरिकी जेट के जरिए छोड़ा जा सकेगा। आपको बता दें कि भविष्य में हाइपरसोनिक मिसाइल जंग का रुख बदलने में काफी अहम भूमिका निभाएंगी।

loksabha election banner

इसके सामने बेकार हैं मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम

अमेरिकी डिफेंस डिपार्टमेंट के अधिकारी इस बात को सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि हाइपरसोनिक हथियार यूएस के मिसाइल सिस्‍टम को नाकाम करते हुए हमला करने में सक्षम हैं। इसका सीधा अर्थ है कि हाइपरसोनिक मिसाइल के जरिये अमेरिका अपने ऊपर होने वाले किसी भी न्‍यूक्लियर अटैक को नाकाम करने की योजना पर काम कर रहा है। आपको बता दें कि आवाज की गति से भी तेज या फिर 5 मैक से तेज उड़ने वाली मिसाइल को हाइपरसोनिक मिसाइल की कैटेगिरी में शामिल किया जाता है। यह मिसाइल किसी भी मिसाइल सि‍स्‍टम को ध्‍वस्‍त कर सकती है। पेंटागन रिसर्च एंड डेवलेपमेंट के हैड माइकल ग्रिफिन मानते हैं कि इस तरह की मिसाइल बनाने की काबलियत चीन और रूस दोनों के ही पास है, इस लिहाज से अमेरिका को खतरा बढ़ गया है। उन्‍होंने हाइपरसोनिक मिसाइल के विकास को पहली प्रा‍थमिकता बताया है। उनका कहना है कि इस तरह के खतरे को भांपते हुए यह भी जरूरी है कि हमारे पास ऐसी तकनीक और मिसाइलें हों जिन्‍हें हम बेहद कम समय में लड़ाकू विमानों से दाग कर हमला नाकाम कर सकें।

अमेरिकी परीक्षण नाकाम

यहां पर आपको बता दें कि अमेरिका ने इस वर्ष फरवरी में एक हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया था, लेकिन वह असफल रहा था। लॉन्‍च के करीब चार सैकेंड बाद ही इसके सिस्‍टम में गड़बड़ी के चलते इसको नष्‍ट कर दिया गया था। यह मिसाइल 3500 मील प्रति घंटे की गति से जा सकती थी और आधा घंटे में ही दुनिया के किसी भी हिस्से में अपने लक्ष्य पर निशाना लगा सकती थी। इसकी जानकारी देते हुए पेंटागन ने माना था कि इसमें तकनीकी खराबी के बाद इसका नियंत्रण कंट्रोल से बाहर जा सकता था, लिहाजा इसको नष्‍ट कर दिया गया। यह मिसाइल दो फरवरी को अलास्का के कोडिएक लॉन्च सेंटर से लॉन्‍च की गई थी। एडवांस्ड हाइपरसोनिक हथियार का निर्माण सांडिया नेशनल लेबोरेट्री और सेना ने तीन चरणों में किया था। इस परीक्षण के असफल होने से अमेरिकी कार्यक्रम को तगड़ा झटका लगा था।

क्‍या होती है हाइपरसोनिक मिसाइल

इस तरह की मिसाइलें दरअसल एक हाइपर सोनिक ग्लाइड मिसाइल होती हैं। इनकी खासियत ये होती है कि इसमें क्रूज और और बैलिस्टिक मिसाइल दोनों की ही खूबियां शामिल होती हैं। बैलिस्टिक मिसाइल धरती के वायुमंडल से बाहर जा कर एक पैराबोलिक पाथ में जाती है और फिर से धरती के वायुमंडल में प्रवेश करती है। इस तरह की मिसाइल की रेंज करीब तीन से सात हजार किमी तक होती है। इन्‍हें हाइपरसोनिक एचजीवी भी कहा जाता है। ये वायुमंडल में निचले स्तर पर उड़ती है और इस कारण इसे इंटरसेप्ट करना भी आसान नहीं होता है। चीन के रक्षा जानकार मानते हैं कि ये अमेरिका के एंटी मिसाइल थाड सिस्टम को नाकाम करते हुए अपना काम कर सकती है। इस कारण इसकी मारक क्षमता बढ़ जाती है, इसी कारण ये एंटी मिसाइल सिस्टम के लिए चुनौती पेश करती है। आपको यहां पर बता दें कि कई देशों ने बैलिस्टिक मिसाइल को रोकने के लिए मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम बनाया हुआ है, लेकिन एचजीवी को इससे रोकना आसाना नहीं है। फिलहाल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही एचजीवी की क्षमता है।

रूस कर चुका है हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण

इस मिसाइल के विकास को लेकर अमेरिका में मची खलबली इस बात से भी है क्‍योंकि रूस ने पिछले माह ही अपनी नई हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया था। 'जिरकोन' नाम की इस हाइपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल की रफ्तार लगभग 7400 किमी. प्रति घंटा बताई गई थी। इस मिसाइल की एक सबसे बड़ी खासियत यह थी कि एक बार लॉन्‍च करने के बाद इसको रोकपाना नामुमकिन होता है। रूस की इस मिसाइल ने अमेरिका के होश उड़ा दिए हैं। यह परीक्षण ऐसे समय में किया गया है जब अमेरिका और रूस के बीच सीरिया समेत कई मुद्दों पर तनातनी काफी बढ़ गई है।

रूसी जानकार तो यहां तक मान रहे हैं कि यह तीसरे विश्‍व युद्ध का कारण भी बन सकता है। जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच शीतयुद्ध का यह दूसरा दौर है जो बेहद घातक साबित हो सकता है। रूस की इस मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 400 किमी. तक है। इसे 2022 तक रूस की सेना में शामिल कर लिया जाएगा। इस मिसाइल में स्क्रैमजेट इंजन का उपयोग किया गया है, जो कि हवा में से ऑक्सीजन का प्रयोग करता है। इस मिसाइल में कोई चलन वाला हिस्सा नहीं है। जिरकोन के साथ ही लॉन्च होने वाला पहला जहाज किरोव-वर्ग परमाणु शक्ति वाले युद्ध क्रूजरों में से एक होने की संभावना है, इनमें से दो अभी भी रूसी नौसेना के साथ है।

चीन के पास भी है हाइपरसोनिक मिसाइल

चीन के पास भी हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल डीएफ-17 है। यह अमेरिका के किसी भी कोने में मार करने में सक्षम है। इसकी रेंज करीब 12,000 किलोमीटर तक है। चीन की डीएफ-17 एक घंटे में अमेरिका पहुंच सकती है।

भारत के पास भी होगी हाइपरसोनिक मिसाइल

हाइपरसोनिक मिसाइल को लेकर भारत भी काफी गंभीर है। उम्‍मीद की जा रही है कि भारत के पास भी जल्‍द ही अपनी हाइपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइल होगी। भारत में अभी दूसरी पीढ़ी के ब्रह्मोस मिसाइल को तैयार किया जाएगा। इसमें भी रूसी मिसाइल जिरकोन की तरह ही स्क्रैमजेट इंजन का उपयोग किया जाएगा। भारत की ब्रह्मोस मिसाइल एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।

ऑपरेशन मेघदूत: जब भारत ने बर्फ में खोदी थी पाकिस्तान की कब्र, किया था सियाचिन पर कब्जा
देश में बढ़ गई निर्भया की तादाद, लेकिन हमें शर्म नहीं आती 
सीरिया में अपनी फौज बनाए रखने के पीछे अमेरिका के हैं तीन खास मकसद
आज ही के दिन अटलांटिक की भेंट चढ़ गए थे 1522 लोग, हुआ था सबसे बड़ा समुद्री हादसा
सीरिया में थी माहौल बेहतर होने की उम्‍मीद, लेकिन हुआ बद से बदत्तर  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.