संयुक्त राष्ट्र के प्रदूषण विशेषज्ञ ने कहा, नई दिल्ली का वायु प्रदूषण प्रत्यक्ष हत्यारा
संयुक्त राष्ट्र के प्रदूषण विशेषज्ञ ने कहा कि भारत एक पब्लिक हेल्थ डिजास्टर में फंस गया है और नई दिल्ली में वायु प्रदूषण एक प्रत्यक्ष हत्यारा है।
संयुक्त राष्ट्र, एजेंसी। संयुक्त राष्ट्र के प्रदूषण विशेषज्ञ ने कहा कि भारत एक 'पब्लिक हेल्थ डिजास्टर' में फंस गया है और नई दिल्ली में वायु प्रदूषण एक 'प्रत्यक्ष हत्यारा' है। वैश्विक निकाय की बच्चों की एजेंसी ने दक्षिण एशिया में सरकारों से वायु गुणवत्ता संकट का समाधान करने के लिए तुरंत कार्रवाई करने को कहा है।
भारत में यूएन पर्यावरण प्रोग्राम के लिए वरिष्ठ प्रोग्राम मैनेजमेंट अधिकारी वालेंटिन फोल्टेस्कू ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रदूषण को गुप्त हत्यारा माना है। यूएन न्यूज से उन्होंने कहा, 'अब हम उत्तर भारत के सिंधु गंगा मैदान में एक ऐसी स्थिति में जी रहे हैं जहां हमारे सामने एक प्रत्यक्ष हत्यारा है।'
दिल्ली सरकार द्वारा लागू किए गए ऑड-इवेन नियम का उल्लेख करते हुए फोल्टेस्कू ने कहा कि इस तरह के कदम से बड़े प्रभाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा, 'यातयात से होने वाले उत्सर्जन में कमी के लिहाज से ऑड-इवेन भरपाई नहीं कर सकता है। खुले में जलाने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को जो नुकसान होता है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है।'
उन्होंने कहा कि प्रदूषण की समस्या का दीर्घकालिक समाधान के लिए राज्यों को यातायात, उद्योग, कंस्ट्रक्शन डस्ट एवं अन्य स्रोतों से निपटना होगा।
दिल्ली के प्रदूषण में पराली की मुख्य भूमिका
मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि उच्च आर्द्रता और हल्की हवाएं प्रदूषण के कणों को फैलने नहीं दे रही है, इस कारण प्रदूषण का स्तर नहीं सुधर रहा है। दिल्ली में प्रदूषण में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से निकले धुएं की हिस्सेदारी इस बार 46 फीसद तक पहुंच चुकी है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठन टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट) ने भी दावा किया है कि मौजूदा समय में दिल्ली को प्रदूषित करने वाली सबसे बड़ी वजह पराली का धुआं ही है।
टेरी के अनुसार, पिछले 15-20 दिनों से दिल्ली के जो हालात हैं उसमें मुख्य भूमिका पड़ोसी राज्यों में जल रही पराली की ही है। राजधानी दिल्ली में सांस की बीमारियों से प्रतिदिन 27 लोगों की मौत हो रही है। दिल्ली में स्वास्थ्य की स्थिति पर प्रजा फाउंडेशन द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।