पेरिस समझौते में फिर से शामिल हुआ अमेरिका- UN प्रमुख ने बताया 'आशा का दिन'
राष्ट्रपति जो बिडेन ने पिछले महीने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के कुछ ही घंटों बाद कई महत्वपूर्ण कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें वाशिंगटन पेरिस जलवायु समझौते में फिर से शांमिल होने का फैसला भी था।
संयुक्त राष्ट्र, पीटीआइ। पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने के 107 दिनों के बाद अमेरिका एक बार फिर से आधिकारिक तौर पर इसमें शामिल हो गया है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने इसे दुनिया के लिए 'आशा का दिन' बताया है। उन्होंने कहा कि चार सालों तक एक प्रमुख सदस्य की अनुपस्थिति ने इस ऐतिहासिक समझौते को कमजोर कर दिया था।
यूएन महासचिव ने कहा कि आज उम्मीद का दिन है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका आधिकारिक रूप से पेरिस समझौते में शामिल हो चुका है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया के लिए अच्छी खबर है। अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति जो बाइडन ने पदभार संभालते ही डोनाल्ड ट्रप के फैसलों को पलटते हुए 15 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें से एक पेरिस समझौते में दोबारा शामिल होना भी था।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल नवंबर में अमेरिका को औपचारिक रूप से पेरिस जलवायु समझौते से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने इस फैसले की घोषणा तीन साल पहले ही कर दी थी। ट्रंप ने समझौते को अमेरिका के लिए बिना फायदे वाला और चीन, रूस तथा भारत जैसे देशों को लाभ पहुंचाने वाला बताया था। गुटेरेस ने ट्रंप के निर्णय को कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वैश्विक सुरक्षा को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों के लिए एक बड़ी निराशा करार दिया था।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, गुटेरेस ने कहा कि वर्ष 2021 एक मेक इट या ब्रेक इट वर्ष है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि अब तक की गई प्रतिबद्धताएं पर्याप्त नहीं हैं। हर जगह चेतावनी के संकेत मिल रहे हैं। कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। हर क्षेत्र में आग, बाढ़ और अन्य मौसम की घटनाएं बदतर हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने आगाह किया कि यदि राष्ट्र अपने पाठ्यक्रम में बदलाव नहीं करते हैं, तो हम इस शताब्दी में तीन से अधिक डिग्री तापमान के वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
वहीं, जलवायु संकट पर अमेरिका के विशेष दूत जॉन केरी ने जोर देकर कहा है कि भारत सहित सभी 17 प्रमुख कार्बन उत्सर्जक देशों को आगे आने एवं उत्सर्जन में कटौती करने की जरूरत है। केरी ने कहा कि यह चुनौती है, इसका मतलब है कि सभी देशों ने जो साहसिक एवं प्राप्त करने वाले लक्ष्य तय किया है उसके लिए कार्य करने की जरूरत है।