भारत का बढ़ा दबदबा: ट्रंप ने दिए संकेत, भारत विकसित देशों के समूह G-7 में होगा शामिल
G-7 जरिए अब भारत की साझेदारी विकसित देशों के साथ होगी। इससे वैश्विक स्तर पर भारत का दबदबा भी बढ़ेगा। यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है।
वाशिंगटन, एजेंसी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह संकेत दिया है कि विकसित देशों के समूह जी-7 (G-7) के सदस्य देशों का विस्तार किया जाएगा। इसमें भारत का भी नाम शामिल होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए यह काफी अहम है। इस मंच के जरिए अब भारत की साझेदारी विकसित देशों के साथ होगी। इससे वैश्विक स्तर पर भारत का दबदबा भी बढ़ेगा। यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। हालांकि, कोरोना महामारी के चलते राष्ट्रपति ट्रंप ने जी-7 की होने वाली बैठक को टाल दिया है। ट्रंप ने शनिवार को कहा है कि समय की मांग है कि इस समूह का विस्तार किया जाए। उन्होंने कहा कि जी-7 का स्वरूप काफी पुराना हो चुका है। यह पूरी दुनिया का ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं करता है। इसलिए इसका विस्तार जरूरी है। आइए जानते हैं आखिर क्या है जी-7। अतंरराष्ट्रीय स्तर पर क्या है उसकी भूमिका और चुनौतियां। भारत के शामिल होने से कैसे एशिया के बदलेंगे समीकरण।
ट्रंप की विस्तार योजना में चीन नदारद
जी-7 सात सदस्य देशों का संगठन है। फिलहाल कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका इसके सदस्य देश हैं। शनिवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने इसके विस्तार के प्रस्ताव रखा है। इस विस्तार में एशिया के दो मुल्कों -भारत और दक्षिण कोरिया- शामिल है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और रूस को भी इस संगठन का सदस्य बनाने की बात ट्रंप ने कही है। ट्रंप के इस फैसले से चीन और पाकिस्तान को किरकिरी हुई होगी। राष्ट्रपति ट्रंप का यह ऐलान उस वक्त हुआ जब कोरोना महामारी में डब्ल्यूएचओ की भूमिका की जांच को लेकर भारत और आस्ट्रेलिया ने अमेरिका का खुलकर समर्थन किया है।
आखिर क्या है जी-7
जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी कथित विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली,जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं। इसे ग्रुप ऑफ 7 भी कहते हैं। यह समूह लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखता है। स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और कानून का शासन और समृद्धि एवं सतत विकास, इसके प्रमुख सिद्धांत हैं। प्रारंभ में यह छह सदस्य देशों का समूह था। इसकी पहली बैठक वर्ष 1975 में हुई थी। 1976 में कनाडा भी इस समूह का सदस्य बन गया। इसस तरह यह जी-7 बन गया। जी-7 देशों के मंत्री और नौकरशाह आपसी हितों के मामलों पर चर्चा करने के लिए हर वर्ष मिलते हैं। शिखर सम्मेलन में अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया जा चुका है।
जी-7 के सामने चुनौतियां
- जी-7 समूह सदस्य देशों के बीच कई तरह की असहमतियां भी हैं। गत वर्ष कनाडा में हुए जी-7 के शिखर सम्मेलन में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का अन्य सदस्य देशों के साथ मतभेद उत्पन्न हो गया था। राष्ट्रपति ट्रंप के आरोप थे कि दूसरे देश अमरीका पर भारी आयात शुल्क लगा रहे हैं। इसके साथ पर्यावरण के मुद्दे पर भी उनका सदस्य देशों के साथ मतभेद था। समूह की आलोचना इस बात के लिए भी की जाती है कि इसमें मौजूदा वैश्विक राजनीति और आर्थिक मुद्दों पर बात नहीं होती है।
- चीन इस समूह का हिस्सा क्यों नहीं है। चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवथा है, फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है। इसकी वजह यह है कि यहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी रहती हैं और प्रति व्यक्ति आय संपत्ति जी-7 समूह देशों के मुकाबले बहुत कम है। ऐसे में चीन को उन्नत या विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता है, जिसकी वजह से यह समूह में शामिल नहीं है। हालांकि चीन जी-20 देशों के समूह का हिस्सा है। इस समूह में शामिल होकर चीन अपने यहां शंघाई जैसे आधुनिकतम शहरों की संख्या बढ़ाने पर काम कर रहा है।