कम कष्टकारी होगा कैंसर का इलाज, रेडिएशन और कीमोथेरेपी के हानिकारक असर से जल्द उबरना भी होगा संभव
सीडर्स-सिनाई स्थित हेमटोलाजी एंड सेल्युलर थेरेपी के निदेशक तथा इस शोध के वरिष्ठ लेखक जान चुटे ने बताया कि हमने पाया है कि सिंडीकैन-2 नामक यह प्रोटीन प्रारंभिक ब्लड सेल्स की पहचान में मददगार होता है और स्टेम सेल के कामकाज को भी रेगुलेट करता है।
वाशिंगटन, एएनआइ। विज्ञानियों ने हाल ही में दो ऐसे शोध किए हैं, जिससे कैंसर का इलाज ज्यादा प्रभावकारी होने के साथ ही रेडिएशन और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों से जल्दी उबरने में मदद मिलेगी। इससे कैंसर का इलाज कम कष्टकारी हो सकेगा। इनमें से सीडर्स-सिनाई के स्टेम सेल विज्ञानियों की एक खोज 'ब्लड' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
इसमें विज्ञानियों ने एक ऐसे प्रोटीन की खोज की है, जो ब्लड स्टेम सेल की उन कोशिकाओं की पहचान करने में मददगार है, जो इलाज के लिए प्रयुक्त होती हैं।
सीडर्स-सिनाई स्थित हेमटोलाजी एंड सेल्युलर थेरेपी के निदेशक तथा इस शोध के वरिष्ठ लेखक जान चुटे ने बताया कि हमने पाया है कि सिंडीकैन-2 नामक यह प्रोटीन प्रारंभिक ब्लड सेल्स की पहचान में मददगार होता है और स्टेम सेल के कामकाज को भी रेगुलेट करता है।
ल्यूकेमिया और लिंफोमा जैसे कैंसर के इलाज में किया जाता है इस्तेमाल
ब्लड स्टेम सेल्स बोन मैरो तथा पेरीफेरल ब्लड में कम मात्रा में पाया जाता है। पेरीफेरल ब्लड हृदय, धमनी, केशिकाओं और नसों से प्रवाहित होने वाले रक्त को कहते हैं। स्टेम सेल्स में विज्ञानियों की रुचि इसलिए भी रहती है, क्योंकि ये शरीर में सभी प्रकार के ब्लड सेल्स तथा इम्यून सेल्स का निर्माण कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल ल्यूकेमिया और लिंफोमा जैसे कैंसर के इलाज में किया जाता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसमें सबसे बड़ी बाधा हेमटोपोएटिक स्टेम का बोन मैरो और पेरीफेरल ब्लड में बहुत ही कम मात्रा (0.01 प्रतिशत से भी कम) में होना और इसे अन्य कोशिकाओं से अलग करने की कोई खास तरीका न होना था। इसका मतलब यह कि जब रोगी को बोन मैरो तथा पेरीफेरल ब्लड दिया भी जाता है तो उन्हें इलाज की दृष्टि से उपयोगी स्टेम सेल्स बहुत ही कम मिलते हैं।
हेमटोपोएटिक स्टेम सेल्स में सिंडीकैन-2 की ज्यादा थी मौजूदगी
इस शोध की प्रथम लेखक क्रिस्टिना एम. टर्मिनी की अगुआई में विज्ञानियों ने अपने प्रयोग के दौरान वयस्क चूहों के शरीर से बोन मैरो को निकाल कर एक ऐसे उपकरण से गुजारा, जो कोशिकाओं की सतह पर मौजूद प्रोटीन की उपस्थिति के आधार पर सैकड़ों तरह की कोशिकाओं की पहचान कर सकता है। इसमें पाया गया कि हेमटोपोएटिक स्टेम सेल्स में सिंडीकैन-2 की ज्यादा मौजूदगी थी। यह कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले हेपारिन सल्फेट प्रोटियोग्लायकैंस फैमिली का है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि यह प्रोटीन किस प्रकार से हेमटोपोएटिक स्टेम सेल्स के पुननिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सिंडीकैन-2 वाले स्टेम सेल्स को रेडिएशन के बाद जब चूहों में प्रत्यारोपित किया गया तो वे कोशिकाएं फिर से आबाद हो गईं। लेकिन जब सिंडीकैन-2 रहित स्टेम सेल्स को प्रत्यारोपित किया गया तो उनकी संख्या बढ़ना रुक गया। इस तरह से सिंडीकैन-2 वाली स्टेम कोशिकाओं के प्रत्यारोपण से इलाज को ज्यादा प्रभावी तथा कम हानिकारक बनाया जा सकता है।
नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित चुटे और उनकी टीम की दूसरी खोज में यह बताया गया है कि कीमोथेरेपी या रेडिएशन से होने वाले जख्मों पर बोन मैरो का ब्लड वेसल किस प्रकार से काम करता है।
कैंसर के इलाज में जब रोगी को रेडिएशन या कीमोथेरेपी दी जाती है तो उनका ब्लड काउंट कम होता है। प्राकृतिक तौर पर इसकी भरपाई में कई सप्ताह लग जाते हैं।
मौजूद कोशिकाओं में सेमाफोरिन बनाता है 3ए नामक प्रोटीन
शोधकर्ताओं ने पाया कि चूहों को जब रेडिएशन दिया गया तो बोन मैरो के ब्लड वेसल की अंदरूनी दीवार पर मौजूद कोशिकाओं में सेमाफोरिन 3ए नामक प्रोटीन बनाता है। यह प्रोटीन एक अन्य प्रोटीन न्यूरोपिलिन1 को बुलावा देकर ब्लड वेसल की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को मारने को कहता है।
शोधकर्ताओं ने जब ब्लड वेसल सेल्स की न्यूरोपोलिन 1 या सेमाफोरिन 3ए की उत्पादन क्षमता को रोक दिया या एंटीबाडी के जरिये सेमाफोरिन 3ए और न्यूरोफोलिन के बीच संवाद को रोक दिया तो बोन मैरो वाहिका पुनर्निर्मित होने के साथ ही ब्लड काउंट में सिर्फ एक सप्ताह में ही अप्रत्याशित वृद्धि हुई। इस तरह उस विधि का पता चला कि किस प्रकार से ब्लड वेसल के फिर से बनने को कंट्रोल किया जा सकता है।