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भारत की जरूरतों को देखते हुए कोयले के इस्तेमाल पर अड़े थे PM मोदी, ओबामा ने इस तरह मनाया

पेरिस में जलवायु सम्मेलन में ओबामा और पीएम मोदी की मुलाकात हुई थी। कोयले का इस्तेमाल रोकने के लिए मोदी तैयार नहीं हो रहे थे।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Tue, 07 May 2019 10:55 AM (IST)Updated: Tue, 07 May 2019 11:45 AM (IST)
भारत की जरूरतों को देखते हुए कोयले के इस्तेमाल पर अड़े थे PM मोदी, ओबामा ने इस तरह मनाया
भारत की जरूरतों को देखते हुए कोयले के इस्तेमाल पर अड़े थे PM मोदी, ओबामा ने इस तरह मनाया

वाशिंगटन, प्रेट्र। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के एक पूर्व सहयोगी ने सोमवार को एक बड़ा दावा किया है। ओबामा के  निजी और राष्ट्रीय सुरक्षा सहयोगी रहे बेंजामिन रोड्स ने बताया कि जलवायु परिवर्तन पर समझौते की राह में भारत ही एक ऐसा महत्वपूर्ण देश था, जो ओबामा के रास्ते में आ रहा था। बेंजामिन रोड्स ने पॉडकास्ट साक्षात्कार में कहा कि मोदी को राजी करने के लिए ओबामा ने ऐसा किया था।

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पूर्वी एशियाई मामलों के पूर्व सहायक विदेश मंत्री कुर्त कैंपबेल और भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत रिचर्ड वर्मा के साथ उनके 'द टीलेव्स' पॉडकास्ट ऑफ एशिया ग्रुप कार्यक्रम में बातचीत के दौरान रोड्स ने ये बात कही। वर्मा के एक सवाल पर रोड्स ने कहा कि तत्कालीन ओबामा प्रशासन 2014 के आखिर में चीन के साथ समझौता करने में सफल रहा था, जिसमें दोनों देशों ने उत्सर्जन में कमी लाने के अपने द्विपक्षीय लक्ष्यों की घोषणा की थी।रोड्स ने कहा कि चीन के साथ आने के बाद दूसरे देश भी साथ आने लगे थे। लेकिन भारत अभी भी इसके लिए तैयार नहीं हुआ था।

इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी ने 26 जनवरी, 2015 को गणतंत्र दिवस के मौके पर ओबामा को मुख्य अतिथि बनने का न्योता दिया। रोड्स ने बताया कि ओबामा के शीर्ष सलाहकारों ने उन्हें कांग्रेस के संयुक्त सत्र के संबोधन को आगे बढ़ाकर भारत जाने और मोदी के साथ निजी संबंधों को और मजबूत बनाने की सलाह दी। ओबामा ने ऐसा ही किया। भारत की दो बार यात्रा करने वाले ओबामा इकलौते अमेरिकी राष्ट्रपति हैं।

रोड्स ने कहा कि पेरिस में जलवायु सम्मेलन में ओबामा और मोदी की मुलाकात हुई थी। कोयले का इस्तेमाल रोकने के लिए मोदी तैयार नहीं हो रहे थे। उनका कहना था कि उन्हें अपने देश में बिजली की जरूरत है। रोड्स के मुताबिक तब ओबामा ने कहा था कि वह भी अश्वेत हैं। उनकी परेशानियों को समझते हैं। लेकिन, पुरानी बातों को पकड़ कर रखने से आगे नहीं बढ़ा जा सकता। बाद में भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया था।

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