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मानसिक बीमारियों की चपेट में आ सकती है दुनिया, समय रहते कदम उठाने की जरूरत

दुनियाभर में कोरोना वायरस (कोविड-19) का कहर जारी है। कई महीने के लॉकडाउन के बाद ज्यादातर देशों में अब जन-जीवन सामान्य होने लगा है। लेकिन जिन जगहों पर संक्रमण के मामले बढ़े रहे हैं वहां दोबारा लॉकडाउन किया जा रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 12:31 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 12:31 PM (IST)
मानसिक बीमारियों की चपेट में आ सकती है दुनिया, समय रहते कदम उठाने की जरूरत
मानसिक स्वास्थ्य समस्या विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती है। प्रतीकात्मक

न्यूयॉर्क, आइएएनएस। भारतीयों की अगुआई वाली एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम का दावा है कि कोरोना वायरस (कोविड-19) जल्द ही मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की वैश्विक सुनामी ला सकता है। अमेरिका में हार्वर्ड यूनिवर्सटिी से इस शोध-पत्र के लेखक विक्रम पटेल ने कहा, ‘मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या विश्व स्तर पर सबसे उपेक्षित स्वास्थ्य मुद्दों में से एक है, जो कोरोना महामारी के बाद और बढ़ गई है।’ उन्होंने कहा कि यह महामारी मानसिक स्वास्थ्य का एक सामाजिक निर्धारक बन चुकी है, जो इसे खराब करने में ईंधन का काम कर रही है।

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अमेरिका में कोरोना वायरस पर आयोजित होने वाले ईएससीएमआइडी कांफ्रेंस में प्रस्तुत किए जाने वाले इस अध्ययन से पता चला कि मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव, जो इस महामारी से पहले ही बहुत ज्यादा मात्र में मौजूद है, खतरनाक दर से बढ़ रहा है। पटेल ने कहा कि ऐसे कई मुद्दे हैं जो आबादी के बड़े हिस्से को प्रभावित करते हैं, जिसमें नौकरियों और आय की सुरक्षा, सामाजिक बहिष्कार, स्कूल बंद होना और परिवारों पर भारी दबाव बनाना आदि प्रमुख हैं।

विकास को पीछे धकेल रही महामारी : विक्रम पटेल ने जोर देखकर कहा, ‘इस सब के अलावा अन्य चिंताएं जैसे चिकित्सा सेवा और देखभाल, संभावित घरेलू हिंसा स्थिति और सबसे बड़ी चिंता इस वायरस से संक्रमित होने का डर लोगों की मानसिक परेशानियां बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा कि यह महामारी वैश्विक विकास की गति को कई वर्ष पीछे धकेल सकती है। इसमें उन देशों को बहुत नुकसान ङोलना पड़ेगा जो पहले से ही बहुत पीछे चल रहे हैं।

बढ़ सकती है गरीबी : बीते अगस्त महीने में विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मलपास ने अनुमान लगाया था कि यह महामारी 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल सकती है। महामारी के परिणामस्वरूप सभी देशों में आíथक मंदी और मानसिक स्वास्थ्य सूनामी फैलने जा रही है।

गहरा रहा है संकट: पटेल ने कहा 2008 की मंदी (जिसमें केवल अमेरिका प्रभावित हुआ था) ने देशवासियों को आत्महत्या और मादक द्रव्यों का सेवन करने पर मजबूर कर कर दिया था, जिससे बाहर आने के लिए आज भी कई लोग जद्दोजेहद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि महामारी से पूर्व ही मानसिक स्वास्थ्य संकट एक बड़ा सवाल था, जो अब और गहरा गया है।

समय रहते कदम उठाने की है जरूरत : बता दें कि दुनियाभर में कोरोना वायरस (कोविड-19) का कहर जारी है। कई महीने के लॉकडाउन के बाद ज्यादातर देशों में अब जन-जीवन सामान्य होने लगा है। लेकिन जिन जगहों पर संक्रमण के मामले बढ़े रहे हैं वहां दोबारा लॉकडाउन किया जा रहा है। लगभग तीन से चार महीने के पूर्व में हुए लॉकडाउन से कई लोगों की मानसिक हालत ठीक नहीं थी ऐसे में दोबारा लॉकडाउन की आशंका उनकी समस्या और बढ़ा सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को दूर करने के लिए सरकारों को समय रहते कदम उठाने चाहिए ताकि एक आबादी को बीमारी होने से बचाया जा सके।


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