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डेटा चोरी होने के पीछे का सच.. आपके हर मैसेज और गतिविधि पर रहती है नजर

डेटा प्रोटेक्शन कानून मसौदे में सख्त कानून का प्रावधान है। नियमों के उल्लंघन पर 15 करोड़ या कंपनी के वैश्विक टर्नओवर का चार प्रतिशत जुर्माने का प्रस्ताव है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 05:28 PM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 07:09 AM (IST)
डेटा चोरी होने के पीछे का सच.. आपके हर मैसेज और गतिविधि पर रहती है नजर
डेटा चोरी होने के पीछे का सच.. आपके हर मैसेज और गतिविधि पर रहती है नजर

वॉशिंगटन(एजेंसी)। कई सोशल साइट्स, एप्स और वेबसाइटें उपभोक्ताओं का डेटा चोरी कर रही हैं। उनका काम होता है, फोन को ट्रैक करना, फोन के मैसेज खंगालना और यूजर की जानकारी थर्ड पार्टी कंपनियों को देना। आखिर बड़ी कंपनियां क्या करती हैं आपके डेटा का? ऐसे सवालों को लेकर एक रिसर्च टीम ने 15 बेहद लोकप्रिय एप्स और वेबसाइट्स की प्राइवेसी पॉलिसी पढ़ने के बाद चौंकाने वाला खुलासा किया है।

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इधर, डेटा चोरी के मामले में जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण समिति ने रिपोर्ट तैयार कर मसौदा सरकार को सौंप दिया है। इसमें डेटा प्रोटेक्शन कानून मसौदे में सख्त कानून का प्रावधान है। नियमों के उल्लंघन पर 15 करोड़ या कंपनी के वैश्विक टर्नओवर का चार प्रतिशत जुर्माने का प्रस्ताव है।

शर्तो की शब्दावली समझ पाना मुश्किल

जब किसी नई एप या वेबसाइट को आप इस्तेमाल करना शुरू करते हैं तो मोटे तौर पर तीन अनुमतियां होती हैं, जो आप किसी भी एप बनाने वाली कंपनी को जाने-अनजाने में दे देते हैं। एप इस्तेमाल की जो शर्ते शुरुआत में पढ़ने को दी जाती हैं वह बेहद जटिल शब्दों और घुमावदार लिखी गई होती हैं। एप बनाने वाली कंपनियां जो गोपनीयता की नीतियां और इस्तेमाल की शर्ते उपभोक्ताओं को देती हैं, उन्हें समझने के लिए कम से कम यूनिवर्सिटी स्तर की शिक्षा होना आवश्यक है। इन दस्तावेजों को तसल्ली से पढ़ा जाए तो कई आश्चर्यजनक बातें सामने आती हैं।

1- लोकेशन ट्रैकिंग

आपके मोबाइल की लोकेशन क्या है, ये हमेशा ट्रैक किया जाता है। भले ही आप अनुमति न दें। कई एप उपभोक्ताओं से लिखित अनुमति मांगती हैं। यूजर मना कर भी दे, तब भी कंपनियों को पता होता है कि मोबाइल की लोकेशन क्या है। फेसबुक और ट्विटर भी आईपी (इंटरनेट प्रोटोकॉल) एड्रेस के जरिए ऐसा करते हैं।

2- सहयोगी कंपनियों को डेटा देना

कई एप ऐसी हैं, जो आपसे एकत्रित सूचनाओं को अन्य कंपनियों को बेचती हैं। इन एप निर्माता कंपनियों का तर्क होता है कि वो बेहतर उपभोक्ता सेवा और 'सही लोगों तक' विज्ञापन पहुंचाने के लिए ऐसा करती हैं। मसलन, टिंडर जैसे डेटिंग एप ओके-क्यूपिड, प्लेंटी ऑफ फिश और मैच डॉट कॉम जैसे अन्य डेटिंग एप्स के साथ जानकारी शेयर करती हैं।

3- थर्ड पार्टी की बंदिश

अमेजन लिखता है कि वो आपका डेटा थर्ड पार्टी एप्स के साथ शेयर कर सकता है, जिसके साथ ही स्पष्ट भी किया है कि यूजर सावधानी से उनकी गोपनियता की नीतियों को पढ़े। एपल भी ऐसा करती है। हाल ही में लागू हुई योरपीय संघ की जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन में भी यह नहीं कहा गया है कि कंपनियां अपनी थर्ड पार्टी लिस्ट जारी करें। जानकार मानते हैं कि कंपनियों का थर्ड पार्टी को डेटा देना खतरनाक साबित हो सकता है।

4- टिंडर की डेटा शेयरिंग

कई बार 'डेटा शेयर' करने का मतलब किसी यूजर का नाम, उम्र और उसकी लोकेशन बताने तक ही सीमित नहीं होता। मसलन, डेटिंग एप टिंडर साफ तौर पर कहता है कि वो कई अन्य बारीक जानकारियां भी जुटाता है। जैसे, यूजर ने फोन किस कोण पर पकड़े रखा और एप इस्तेमाल करते वक्त फोन की स्थिति कैसी थी। कंपनी के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह डेटा क्या काम आता है।

5- फेसबुक सर्च

फेसबुक पर आपने क्या-क्या सर्च किया, उसे डिलीट करने का विकल्प फेसबुक यूजर्स को देता है, लेकिन इसके बावजूद फेसबुक अपने पास छह महीने तक यह रिकॉर्ड रखता है कि उपभोक्ता ने क्या-क्या सर्च किया।

6-ऑफलाइन ट्रैकिंग

आपके फोन में फेसबुक एप है और आपने उसमें लॉग-इन नहीं कर रखा या अकाउंट नहीं बनाया, तब भी फेसबुक आपका फोन ट्रैक कर सकता है। फेसबुक की डेटा पॉलिसी के अनुसार कंपनी यूजर की गतिविधियों पर फेसबुक बिजनेस टूल की मदद से नजर रखती है। कंपनी के मुताबिक, वो जानकारियां कुछ ऐसी होती हैं, जैसे यूजर के पास कौनसा फोन है, उसने कौनसी वेबसाइट देखीं, क्या-क्या खरीदारी की और किन विज्ञापनों को देखा।

7- प्राइवेट मैसेज

अगर आपको लगता है कि निजी मैसेज सिर्फ आपके अपने हैं तो फिर सोचिए। अपनी प्राइवेसी पॉलिसी के अनुसार, लिंक्ड-इन कथित तौर पर ऑटोमेटिक स्कैनिंग टेक्नोलॉजी से यूजर के प्राइवेट संदेश पढ़ सकता है। ट्विटर आपके संदेशों का एक डेटा बेस रखता है।

8- बदलाव बार-बार

एपल का कहना है कि 18 साल से कम उम्र के यूजर्स को एपल की प्राइवेसी पॉलिसी अपने अभिभावकों के साथ बैठकर पढ़नी चाहिए और उसकी बारीकियां समझनी चाहिए। रिसर्च टीम ने पाया कि एक वयस्क एपल की पूरी पॉलिसी पढ़ता है तो औसतन 40 मिनट लगते हैं, जो किसी किशोर मोबाइल यूजर के लिए मुश्किल होता है।

अमेजन कहता है कि यूजर्स को उसकी पॉलिसी जांचते रहना चाहिए, क्योंकि उसका बिजनेस बदलता रहता है। बहरहाल, गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों का दावा है कि वो अपनी लिखित नीतियों को यूजर्स के लिए सरल से सरल बनाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन ऑनलाइन माध्यमों पर यूजर्स की सुरक्षा, खासकर बच्चों की सुरक्षा के लिए काम कर रहीं संस्थाएं फिलहाल कंपनियों की इन कोशिशों को पर्याप्त नहीं मानतीं।


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