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बचाया नहीं जा सकता ग्रीनलैंड का पिघलता ग्लेसियर, ग्लोबल वार्मिंग रुकने से भी नहीं होगी भरपाई

बर्फबारी और आज के आज ग्लोबल वार्मिंग रुकने के बावजूद ग्रीनलैंड में पिघले बर्फ की परतों से हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है।

By Monika MinalEdited By: Published: Wed, 19 Aug 2020 12:18 PM (IST)Updated: Wed, 19 Aug 2020 12:18 PM (IST)
बचाया नहीं जा सकता ग्रीनलैंड का पिघलता ग्लेसियर, ग्लोबल वार्मिंग रुकने से भी नहीं होगी भरपाई
बचाया नहीं जा सकता ग्रीनलैंड का पिघलता ग्लेसियर, ग्लोबल वार्मिंग रुकने से भी नहीं होगी भरपाई

ग्रीनलैंड, एएफपी। ग्रीनलैंड में बर्फ की परतों का पिघलना जारी है और अबतक यह इतना अधिक पिघल चुका है कि अब पहले जैसा वापस होना असंभव है। पिघल चुके बर्फ की मात्रा की भरपाई बर्फबारी से भी होना असंभव है। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी ने स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि ग्लोबल वार्मिंग रुक जाने के बाद भी  पिघल चुके बर्फ की ऊपरी परतों का नुकसान पूरा नहीं हो सकता है। बता दें कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जल स्तर लगातार बढ़ रहा है। पूरी दुनिया इसके खतरों को लेकर आशंकित है।

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अब हाल ही में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्रीनलैंड में बर्फ की बदलती स्थिति पर चिंता जताई है। इसमें बताया गया है कि बीती गर्मी के मौसम में ग्रीनलैंड से 600 बिलियन यानी 60 हजार टन बर्फ पिघलकर कर समुद्र में समा गई।  यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की वैज्ञानिक और इस अध्ययन की प्रमुख लेखक इसाबेल वेलिकोग्ना ने इसी साल मार्च में बताया कि पिछले साल अन्य वर्षो के मुकाबले काफी गर्मी थी, जिसका सबसे ज्यादा असर ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरों और पड़ा और वे पिघल गई। उन्होंने कहा कि ग्रीनलैंड में साल 2002 से साल 2018 के बीच हर साल औसत जितनी बर्फ पिघली है, उससे कहीं ज्यादा बर्फ केवल पिछले वर्ष पिघली है।

इसाबेल ने आगे  बताया कि वर्ष  2002 से लेकर 2019 तक ग्रीनलैंड में 4550 बिलियन टन बर्फ पिघल चुकी है। उनके अनुसार, औसतन हर वर्ष लगभग 268 बिलियन टन बर्फ पिघली। इसके खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक साल में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में जितने पानी की उपयोग होता है, उससे कई गुना ज्यादा बर्फ ग्रीनलैंड में पिघल कर समुद्र में समा गई है। इससे पूरी दुनिया के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है। 

जियोफिजिकल रिसर्च नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2019 में ही ग्रीनलैंड के विपरीत दक्षिणी ध्रुव में स्थित अंटार्कटिका के अमुंडसेन सागर और अंटार्कटिक प्रायद्वीप में भी बड़े पैमाने पर बर्फ पिघली, लेकिन महाद्वीप के पूर्वी हिस्से, क्वीन माउड लैंड में बर्फबारी के बढ़ने से यहां कुछ राहत जरूर देखी गई। इसाबेल ने बताया कि इस अध्ययन के लिए उन्होंने अमेरिका और जर्मनी के संयुक्त अंतरिक्ष अभियान 'ग्रेस-एफओ' के डाटा का उपयोग किया। उन्होंने कहा कि डाटा का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आई कि अंटार्कटिका के पश्चिम में बड़े पैमाने पर बर्फ को नुकसान पहुंच था, जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए बहुत बुरी खबर है, लेकिन, पूर्वी क्षेत्र कुछ राहत भी देता है। ग्रेस एफओ यानी ग्रेस फॉलो-ऑन के जरिये जल भंडारों की निगरानी की जाती है।

इस मिशन के तहत पहला यान 2002 में तैनात किया गया था और अगले 15 वर्षो तक इससे प्राप्त डाटा का विश्लेषण किया। इसाबेल ने कहा, अंटार्कटिका में भी बर्फ पिघल रही है लेकिन उत्तरी ध्रुव में स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। अगर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में इसी रफ्तार से बर्फ पिघलती रही तो दुनिया पर खतरा लगातार बढ़ता जाएगा। इससे धरती के समुद्र पर डूबने की संभावना और बढ़ जाएगी। कई छोटे द्वीप तो पूरी तरह समुद्र में ही समा जाएंगे। 


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