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तालिबान शांति समझौते में जानें भारत की बड़ी चिंताएं, US राष्‍ट्रपति चुनाव में ट्रंप की 'ट्रंप' चाल

क्‍या तालिबान समझौते का असर अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा। इसके साथ भारत की इस समझौते पर अपना क्‍या न‍जरिया है। उसे किस बात का भय सता रहा है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 29 Feb 2020 03:37 PM (IST)Updated: Sun, 01 Mar 2020 08:01 AM (IST)
तालिबान शांति समझौते में जानें भारत की बड़ी चिंताएं, US राष्‍ट्रपति चुनाव में ट्रंप की 'ट्रंप' चाल
तालिबान शांति समझौते में जानें भारत की बड़ी चिंताएं, US राष्‍ट्रपति चुनाव में ट्रंप की 'ट्रंप' चाल

नई दिल्‍ली, जेएनएन । ट्रंप प्रशासन के लिए तालिबान शांति योजना का अमल में आना कई मायनों में महत्‍वपूर्ण है। इसके जरिए अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप एक तीर से कई निशाने साधने में लगे हैं। इसमें अहम है, 2020 में होने वाले अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव। यही वजह है कि अमेरिका में पक्ष और विपक्ष की निगाह इस समझौते पर टिकी है। राष्‍ट्रपति चुनाव के महासमर में रिपब्लिकन पार्टी को इस समझौते से बहुत उम्‍मीद है, वहीं विपक्ष ने अमेरिकी सुरक्षा का हवाला देकर अप्रत्‍यक्ष रूप से ट्रंप प्रशासन को सावधान किया है। आइए जानते हैं कि 2016 के अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव में क्‍या किया था वादा। क्‍या तालिबान समझौते का असर अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा। विपक्ष ने इस समझौते को लेकर किस तरह अपनी आपत्ति दर्ज की है। इसके साथ यह भी देखेंगे कि इसमें भारत की बड़ी क्‍या बड़ी चिंता है। भारत इस समझौते पर अपना क्‍या न‍जरिया रखता है। उसे किस बात का भय सता रहा है।  

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भारत की बड़ी चिंता

यहां एक बड़ा सवाल यह है कि यदि अमेरिका और तालिबान शांति योजना अगर अमल में आई तो इसका भारत पर क्‍या असर पड़ेगा। इसके साथ भारत की बड़ी चिंता क्‍या है। अमरीका और तालिबान के बीच बातचीत के दौरान भारत के कुछ हलक़ों में  यह चिंता लाजमी है। अगर भविष्य की अफ़ग़ानिस्तान सरकार में तालिबान की महत्वपूर्ण भूमिका रही तो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन को भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है। खासकर तब जब तालिबान को पाकिस्तान के नजदीक देखा जाता है और पूर्व में भारत विरोधी चरमपंथी गुट अफगानिस्‍तान में अपने ट्रेन कैंप लगाते रहे हैं। भारत को बड़ी चिंता यह है अगर भविष्‍य में अफगानिस्‍तान की सरकार में तालिबान दखल बढ़ता है तो यह उसके लिए शुभ नहीं होगा। दरअसल, तालिबान पाकिस्‍तान के काफी निकट है। 

ट्रंप कार्ड पर टिकी निगाहें 

तालिबान शांति योजना का ट्रंप कार्ड अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव में कितना रंग दिखाएगा यह तो वक्‍त बताएगा, लेकिन उन्‍होंने अपनी ट्रंप चाल चाल चल दी है। दरअसल, 2016 के राष्‍ट्रपति चुनाव में ही ट्रंप ने वादा किया था कि वह अफगा‍निस्‍तान में शांति प्रक्रिया बहाल करके अमेरिकी सैनिकों को देश बुलाएंगे। इसलिए अमेरिकी राष्‍ट्रपति चुनाव से पहले यह उनकी नाक का विषय बन चुका है।

चुनाव के दौरान ट्रंप ने वादा किया था वह अफगानिस्‍तान में सबसे लंबे युद्ध को समाप्‍त करके वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी करेंगे। अब जब अमेरिका में इस वर्ष राष्‍ट्रपति चुनाव होने हैं तो यह ट्रंप के लिए इसे पूरा करना एक चुनौती बन गई है। ट्रंप के सामने दो बड़ी चुनौती है। विपक्ष ने पहले ही कह दिया है कि अमेरिकी सुरक्षा के मद्देनजर इस समझौते को सार्वजनिक किया जाए। 

विपक्ष डेमोक्रेट्स ने दिया तर्क  

  • विपक्ष इस समझौते को लेकर ट्रंप प्रशासन से कई सवाल पूंछ चुका है। विपक्ष का कहना है कि हमारे लिए अमेरिका की सुरक्षा सर्वोपरि है। इसलिए तालिबान के साथ हुए शांति समझौते में पारदर्शिता होनी चाहिए। अमेरिका और तालिबान के बीच कोई भी सौदा सार्वजनिक होगा।
  • इसमें कोई गुप्‍त एजेंडा शामिल नहीं होगा। विपक्ष का कहना है कि तालिबान ऐसा आतंकवादी संगठन है, जिसने आत्मघाती हमलों को आम बनाया और अमेरिकी लोग अपनी सुरक्षा के लिए इन आतंकवादियों पर भरोसा नहीं कर सकते।

  • अमेरिका तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की तैयारी कर रहा है, जिन आतंकवादियों ने 9/11 के हमलों के पहले और बाद में अल-कायदा को साथ दिया था। उन्होंने कहा कि हम इस बात का आश्वासन मांग रहे हैं कि ट्रंप प्रशासन अमेरिकी लोगों की सुरक्षा को तालिबान के हाथों में नहीं डालेंगे और हमारे सहयोगी अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार को कमजोर नहीं करेंगे।
  • उन्‍होंने कहा कि अमेरिका और तालिबान के साथ कोई ऐसा समझौत नहीं किया जाए, जिससे अमेरिकी सुरक्षा को खतरा उत्‍पन्‍न हो। 

पाकिस्‍तान में हुआ तालिबान का उदय

तालिबान का उदय 90 के दशक में उत्‍तरी पाकिस्‍तान में हुआ था। इस समय अफगानिस्‍तान में सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी। तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के ज़रिए उभरा, जिसमें ज़्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था। 80 के दशक के अंत में सोवियत संघ के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के बाद वहां कई गुटों में संघर्ष शुरु हो गया और मुजाहिद्दीनों से भी लोग परेशान थे। ऐसे में तालिबान का उदय तो अफगान लोगों ने स्वागत किया। शुरू में तालिबान की लोकप्रियता इसलिए बढ़ी, क्योंकि उन्होंने भ्रष्ट्राचर पर लगाम कसी। अव्यवस्था पर अंकुश लगाया और अपने नियंत्रण में आने वाले इलाक़ों को सुरक्षित बनाया ताकि लोग व्यवसाय कर सकें। 1995 में तालेबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा हुआ । 1998 आते-आते लगभग 90 फीसद अफगानिस्‍तान पर तालेबान का नियंत्रण हो गया था। 


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