गहरा रहा है चीन से लगती उत्तर कोरिया की सीमा पर मौजूद 'लाल इमारत' का रहस्य
उत्तर कोरिया की सैटेलाइट से मिली ताजा तस्वीरों ने अमेरिका के मन में शक पैदा कर दिया है। दरअसल, चीन की सीमा के निकट एक लाल इमारत पर अमेरिका की निगाहें टिक गई हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। किम जोंग उन द्वारा अपनी परमाणु साइट को बंद करने और अब कोई परमाणु परीक्षण न करने की घोषणा पर अमेरिका पूरी तरह से आश्वस्त नहीं दिखाई दे रहा है। इसकी कुछ बड़ी वजह हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह बनी हैं कुछ सैटेलाइट इमेज जिसकी वजह से अमेरिका और उसके जानकारों के मन में अब उत्तर कोरिया की मंशा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। यह सैटेलाइट इमेज उस वक्त की हैं जब अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के डायरेक्टर माइक पोंपियो उत्तर कोरिया गए थे। यह सैटेलाइट इमेज चीन से लगती उत्तर कोरिया की सीमा की है।
लाल इमारत का राज
आपको बता दें कि यालू नदी दोनों सीमाओं के बीच से बहती है। इस नदी पर दोनों देशों के बीच एक पुल भी बना हुआ है जो चोंग्सू इलाके में बना हुआ है। इसी नदी के किनारे एक कंस्ट्रक्शन साइट को लेकर अमेरिका को शक हो रहा है। सैटेलाइट इमेज को माध्यम बनाते हुए कहा गया है कि उत्तर कोरिया के अधिकारी सीमा पार जा रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक उत्तर कोरिया चोंग्सू में एक लाल छत वाली इमारत को देखा गया है। माना जा रहा है कि यह एक फैक्टरी है जो अवैध तरीके से अतिशुद्ध रूप के ग्रेफाइट को बनाने में लगी है। यह इसलिए बेहद खास है क्योंकि यह न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने के लिए जरूरी होता है। एक ताजा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वह इस न्यूक्लियर ग्रेड के ग्रेफाइट को दूसरे देशों को बेचने में लगा हुआ है।
फिलहाल सीआईए ने नहीं की पुष्टि
हालांकि सीआईए अभी इस इमारत को लेकर किसी भी तरह की पुष्टि नहीं कर रहा है, लेकिन यह इमारत अमेरिका के शक के दायरे में है। यह सब उस वक्त सामने आया है जब उत्तर कोरिया की तरफ से अपनी न्यूक्लियर साइट्स को बंद करने ओर आगे कोई परमाणु परीक्षण न करने की बात कही गई है। इसका अमेरिका समेत दूसरे देशों ने भी स्वागत किया है। हालांकि जापान को इस बात पर कोई विश्वास नहीं है। ऐसा ही कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ भी कह रहे हैं। अमेरिका के हथियार विशेषज्ञ इंटरनेशनल सिक्योरिटी स्टडीज के रॉबर्ट लिटवॉक मानते हैं अमेरिका को इस मुद्दे पर संभलकर आगे बढ़ने की जरूरत है, क्योंकि इस मामले में उत्तर कोरिया का इतिहास सही नहीं है। वही उत्तर कोरिया का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि वह जो कहता है उस पर विश्वास करना सही नहीं होता है। रॉबर्ट का यह भी कहना है कि किम की फैमिली और उनके पूर्व के व्यवहार को देखते हुए भी विश्वास करने के बावजूद संभलकर रहना बेहद जरूरी है।
कितने हैं परमाणु हथियार
आपको बता दें कि एक दिन पूर्व उत्तर कोरिया की तरफ से जो घोषणा की गई है उसको लेकर कोई प्लान नहीं दिया गया है। न ही ये बताया गया है कि उसके पास कितने परमाणु हथियार हैं। वहीं विभिन्न स्रोतों के माध्यम से इस बात की जानकारी हुई है कि उत्तर कोरिया के पास करीब 20 से 100 परमाणु हथियार हो सकते हैं। रॉबर्ट का यह भी मानना है कि क्योंकि उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियार की ताकत हासिल कर ली है और वह एक परमाणु शक्ति वाला देश बन चुका है, जो उसने खुद स्वीकार भी किया है, इसलिए ही अब वह अपनी परमाणु साइट्स को बंद करने की बात कर रहा है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
गौरतलब है कि उत्तर कोरिया ने यहां तक कहा है कि वह किसी पर पहले परमाणु हमला नहीं करेगा इसके अलावा वह किसी भी देश को परमाणु हथियार बनाने की तकनीक हस्तांतरित नहीं करेगा। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि उत्तर कोरिया को कठपुतली बनाकर चलाया जा रहा है, जिससे उन देशों का फायदा हो सके। विशेषज्ञ यह भी मान रहे हैं कि अमेरिका के पास फिलहाल ऐसा कोई जरिया नहीं है जिससे वह उत्तर कोरिया द्वारा कही गई बातों का सच जान सके। रॉबर्ट का कहना है कि पहले भी उत्तर कोरिया कई बातों को छिपाता रहा और दूसरी तरफ यूरेनियम और प्लूटोनियम का संग्रह करता रहा था।
ईरान से अलग है उत्तर कोरिया का मामला
उत्तर कोरिया का मामला ईरान से कुछ अलग है। अलग इसलिए क्योंकि 2015 में हुए समझौते के बाद अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने ईरान में इसका जायजा लिया था। वहीं उत्तर कोरिया ने इस तरह का कदम कभी नहीं उठाया। यहां तक की संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के बावजूद वह अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाता रहा है। इतना ही नहीं उसने इससे जुड़ी कई सारी चीजें दूसरे देशों को बेची भी हैं। 1990 में उत्तर कोरिया और अमेरिका में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से प्लूटोनियम न बनाने को लेकर एक समझौता भी हुआ था। अमेरिका यह भी मानता है कि सीरिया में नयूक्लियर रिएक्टर बनाने में उत्तर कोरिया का ही हाथ रहा था। इस रिएक्टर को वर्ष 2007 में इजरायल ने हमला कर नष्ट कर दिया था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के काल में एशिया मामलों के प्रमुख रहे विक्टर चा का कहना है कि अमेरिका को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियार या उसकी तकनीक को बेच सकता है
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