रेटिना की जैविक उम्र और व्यक्ति की उम्र के बीच के अंतर से जुड़ा है मौत का खतरा
शोधकर्ताओं ने बताया कि इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर यह विचार आया कि क्या फंडस की इमेज से रेटिना की उम्र के जरिये इसका सटीक आकलन किया जा सकता है। फंडस आंख के अंदरूनी हिस्से की काली परत होती है।
वाशिंगटन, एएनआइ। एक नए शोध में पाया गया है कि आंखों की रेटिना की जैविक उम्र और व्यक्ति की असल उम्र के बीच का अंतर का संबंध मौत के खतरे से भी होता है। यह शोध ब्रिटिश जर्नल आफ आफ्थल्मालाजी में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं का कहना है कि रेटिनल एज गैप का इस्तेमाल स्वास्थ्य संबंधी स्क्रीनिंग टूल के रूप में भी किया जा सकता है। बता दें कि रेटिना आंखों में पाई जाने वाली प्रकाश संवेदी कोशिकाओं की एक परत होता है।
शरीर के बढ़ने के क्रम में रेटिना में पाए जाने वाले माइक्रोवस्कुलेचर (नस) - सकरुलेटरी सिस्टम तथा मस्तिष्क समेत समग्र स्वास्थ्य का एक विश्वसनीय संकेतक हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ बीमारियों और मौत का खतरा तो बढ़ता है, लेकिन यह भी पाया जाता है कि यह खतरा समान उम्र के लोगों में अलग-अलग होता है। इसमें जैविक उम्र की अहम भूमिका होती है, जो वर्तमान और भविष्य के स्वास्थ्य का एक बेहतर संकेतक हो सकती है।
विज्ञानियों ने कई प्रकार के ऊतकों, कोशिकाओं, रसायनों तथा इमेजिंग आधारित कई ऐसे संकेतकों की खोज की है, जो जैविक उम्र को कालावधिक उम्र से अलग करते हैं। लेकिन ये सारी विधियों के संदर्भ में नैतिकता और गोपनीयता के सवालों के साथ ही इन्वेसिव (चीर-फाड़ वाले), खर्चीला और ज्यादा समय लगने वाली हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर यह विचार आया कि क्या फंडस की इमेज से रेटिना की उम्र के जरिये इसका सटीक आकलन किया जा सकता है। फंडस आंख के अंदरूनी हिस्से की काली परत होती है। इसके साथ ही यह भी जानने का प्रयास किया गया कि क्या इस रेटिनल एज गैप का संबंध मौत के खतरे को बढ़ाने से हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने यूके बायोबैंक के डाटा से 40 से 69 साल तक के 46,969 व्यक्तियों के 80,169 फंडस इमेज लिए। इनमें से करीब 19,200 फंडस इमेज 11,052 सहभागियों की दायीं आंख के थे और इन सभी का स्वास्थ्य अच्छा था। इनके डीप लर्निग और एआइ आधारित विश्लेषण में पाया गया कि रेटिना की अनुमानित उम्र और व्यक्ति की सही उम्र में एक मजबूत संबंध है और उसकी ओवरआल सटीकता 3.5 साल थी। इसके बाद बाकी 35,917 प्रतिभागियों का औसतन 11 साल तक रेटिना के एज गैप का निगरानी की गई। इस समयावधि में पांच प्रतिशत प्रतिभागियों की मौत हो गई, 17 प्रतिशत कार्डियोवस्कुलर डिजीज से पीड़ित हुए और 28.5 प्रतिशत को डिमेंशिया समेत अन्य बीमारियां हुईं। पाया गया कि ज्यादा रेटिनल एज गैप का संबंध 49 से 67 प्रतिशत तक मौत के ज्यादा खतरे से था। जबकि कार्डियोवस्कुलर और कैंसर के मामले में यह अलग-अलग था।
विश्लेषण में यह भी पाया गया कि प्रति एक साल रेटिनल एज गैप बढ़ने से किसी भी कारण से मौत का खतरा दो प्रतिशत बढ़ जाता है। बायीं आंखों को लेकर किए गए अध्ययन में भी परिणाम एक समान ही आए। हालांकि शोधकर्ताओं ने कहा है कि यह एक अवलोकनात्मक अध्ययन है, इसलिए इसे कारण मूलक के रूप में स्थापित नहीं किया जा सका है। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन से कम से कम इतना तो स्पष्ट है कि इसके आधार पर बायोमार्कर या संकेतक विकसित करने की प्रचुर संभावना है, जिससे बीमारियों की डायग्नोसिस आसान होगी।
आंख से जानें स्वास्थ्य।