UNEP Adaptation Gap Report 2020 : नहीं चेते तो हम सभी को भुगतने होंगे गंभीर परिणाम
UNEP Adaptation Gap Report 2020 की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन को लेकर न सिर्फ चिंता जताई गई है बल्कि इसमें यहां तक कहा गया है कि यदि हमने कारगर उपाय नहीं किए तो इसके दुष्परिणाम काफी गंभीर होंगे।
न्यूयॉर्क (संयुक्त राष्ट्र)। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environmental Program/ UNEP) ने एडप्शन गैप (Adaptation Gap) नाम से अपनी एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और इसके तहत होने वाली घटनाओं के बढ़ने और इनपर किए प्रयासों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन में मामले में जहां पूरी दुनिया में प्रगति देखने को मिली है। इसकी वजह से होने वाली घटनाओं जैसे बाढ़, सूखा और समुद्री जलस्तर को बढ़ने से रोकने के लिए असरदार काम हुआ है। इसके बाद भी इससे पूरी तरह से नहीं निपटा जा सका है। संगठन ने इसको लेकर वित्तीय संसाधनों का भी अभाव जताया है। एडप्शन रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि पूरी दुनिया ने जलवायु परिवर्तन को लेकर पुख्ता कार्रवाई नहीं की तो इसके गंभीर परिणाम हम सभी को भुगतने होंगे।
इसमें स्पष्ट किया गया है कि जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है उसी तेजी के साथ हमें भी इनसे निपटने के जरूरी इंतजाम करने होंगे। ऐसा न करने पर हमें इसकी गंभीर कीमत चुकानी होगी। यूएनईपी के एक्टिंग डायरेक्टर इंगर एंडरसन के मुताबिक मानव सभ्यता के ऊपर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इसके हमारे ऊपर काफी गंभीर परिणाम होंगे। उनके मुताबिक इसका असर सबसे अधिक गरीब देशों पर होगा। इस रिपोर्ट में पेरिस समझौते के दौरान तय लक्ष्यों को पाने के लिए सभी जरूरी उपाय अपनाने पर जोर दिया गया है। आपको बता दें कि पेरिस समझौते में इस सदी में तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम करने की बात कही गई है। इस संबंध में बीते वर्ष आई यूएन की रिपोर्ट पर यदि नजर डालें तो पता चलता है कि दुनिया के अधिकतर देश इस मामले में अपने लक्ष्य से कहीं अधिक पीछे हैं, जबकि भारत अपने लक्ष्य को पूरा करने के करीब है। विश्व में भारत ऐसा करने वाला एकमात्र देश बना है।
यूएनईपी की रिपोर्ट में विकासशील देशों में इसको लेकर किए गए अनुकूलन प्रयासों की वार्षिक कीमत को 70 अरब डॉलर आंका गया है। 2050 तक ये बढ़कर 500 अरब डॉलर तक हो जाएगी। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि ऐसे तीन चौथाई देश हैं जिन्होंने कागजों पर तो इससे बचने के लिए प्रभावी उपाय किए हैं लेकिन इसको प्रभावी तरीके से लागू नहीं कर सके हैं। इसके पीछे रिपोर्ट में एक कारण वित्तीय कमी का होना बताया गया है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने भी इस बारे में अपनी चिंताएं सार्वजनिक की हैं। वहीं एंडरसन ने उम्मीद जताई है कि वित्तीय उपलब्धता को बढ़ाने से इन प्रयासों में तेजी आएगी।
इस रिपोर्ट में प्रकृति-आधारित समाधानों की भी जरूरत पर बल दिया गया है। इसमें चार विशेष बातों पर जोर दिया गया है। इसमें वैश्विक पर्यावरण सुविधा, हरित जलवायु कोष, अनुकूलन कोषऔर अन्तरराष्ट्रीय जलवायु पहल शामिल है। इनके जरिये क्लाइमेट चेंज और कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिये करीब 94 अरब डॉलर के निवेश की बात कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब तक केवल 12 अरब डॉलर ही प्रकृति-आधारित समाधानों पर खर्च किए गए हैं। इसमें ये भी कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के जरिए भी क्लाइमेट चेंज पर काबू पाया जा सकता है। इसके अलावा इस रिपोर्ट में 2020 में जारी एमिसन गैप रिपोर्ट में बताए गए उपायों को अपनाने पर भी जोर दिया गया है।