सावधान! इस तरह हमारी नींद में बाधा डाल रहे स्मार्टफोन, हो सकती हैं ये बड़ी बीमारियां
स्मार्टफोन, कंप्यूटर से निकलने वाली कृत्रिम रोशनी हमारी नींद में खलल डालती है। इससे माइग्रेन, अनिद्रा, मोटापा, कैंसर संबंधित कई बीमारी हो सकती हैं।
वाशिंगटन, प्रेट्र । हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके स्मार्टफोन और कंप्यूटर जहां हमारे कई कामों में हमारी मदद कर रहे हैं, वहीं कई मामलों में नुकसानदेह भी साबित हो रहे हैं। सबसे ज्यादा ये हमारी नींद को प्रभावित करते हैं, जिसके पूरे न होने के कारण हम कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त होने लगते हैं। अब वैज्ञानिकों ने यह पता लगा लिया है कि स्मार्टफोन और कंप्यूटर से निकलने वाली कृत्रिम रोशनी किस तरह हमारी नींद में खलल डालती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज से माइग्रेन, अनिद्रा, शरीर की आंतरिक घड़ी की लय में गड़बड़ी जैसे विकारों से निपटने के लिए कारगर उपचार तलाशे जा सकेंगे।
इसलिए बिगड़ जाता है दैनिक चक्र
अमेरिका स्थित साल्क इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान पाया कि हमारी आंखों में मौजूद कुछ कोशिकाएं परिवेश प्रकाश की प्रक्रिया करती हैं और हमारी आंतरिक घड़ियों को रीसेट करती हैं। बता दें कि शारीरिक प्रक्रियाओं के दैनिक चक्र को सर्कडियन यानी शरीर की आंतरिक घड़ी कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि जब आंखों की ये कोशिकाएं कृत्रिम रोशनी के संपर्क में आती हैं तो हमारे शरीर की आंतरिक घड़ियां असमंजस में पड़ जाती हैं, जिससे हमारा दैनिक चक्र बिगड़ जाता है और हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। सेल रिपोर्ट्स नामक जर्नल में इस अध्ययन को विस्तार से प्रकाशित किया गया है।
परिणाम में मिलती हैं यह बीमारियां
इसमें बताया गया है कि शोधकर्ता नए परिणामों के आधार पर माइग्रेन, अनिद्रा जैसी उन बीमारियों का नया और बेहतर उपचार तलाश सकते हैं, जो बीमारियां ये गैजेट्स हमें देते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये विकार कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जिनमें मोटापा, संज्ञात्मक अक्षमता, इंसुलिन संबंधी समस्या और कैंसर आदि शामिल हैं।
जरूरी कदम उठाने की जरूरत
शोधकर्ताओं का कहना है कि तकनीक की दुनिया में इस समस्या से पूरी तरह से बच पाना आसान नहीं हैं, लेकिन यदि हम जरूरी कदम उठाएं तो बीमार होने से बच सकते हैं। इसके लिए हमें सोने से कुछ समय पहले ही अपने स्मार्टफोन व अन्य गैजेट्स से दूरी बनानी होगी ओर साथ ही ऐसे स्थान पर सोना होगा, जहां पूरी तरह से अंधेरा हो।
हर समय कृत्रिम रोशनी के संपर्क में हैं हम
साल्क इंस्टीट्यूट के सचिन पांडा कहते हैं, हम लगातार कृत्रिम रोशनी के संपर्क में रह रहे हैं। चाहे दिन में घर से बाहर समय बिता रहे हों या रात अपने घर में। बकौल पांडा, इसका असर हमारी आंतरिक घड़ी और हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि हमारी आंखों के पीछे रेटिना नामक एक संवेदी ङिाल्ली होता है, जिसकी सबसे आंतरिक परत में कुछ ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती हैं। इनका असर हमारी शरीर की घड़ी पर पड़ता है और पूरा दैनिक चक्र बिगड़ जाता है।