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चांद पर 40 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में मौजूद है बर्फ के रूप में पानी, पहले के अनुमान से कहीं अधिक

चांद पर पहले के अनुमान से 20 फीसद अधिक पानी की मौजूदगी का पता चला है। इसका इस्‍तेमाल रॉकेट तक में किया जा सकता है। ये रिसर्च काफी उत्‍साह पूर्ण है। सबसे पहले इसरो ने अपने चंद्रयान 1 मिशन के दौरान चांद पर पानी का पता लगाया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 03:19 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 03:19 PM (IST)
चांद पर 40 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में मौजूद है बर्फ के रूप में पानी, पहले के अनुमान से कहीं अधिक
चांद पर मिला पहले की अपेक्षा अधिक पानी

वाशिंगटन (पीटीआई)। वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर पहले के अनुमान के मुकाबले अधिक मात्रा में पानी मौजूद होने की पहली बार पुष्टि की है। उनका कहना है कि जहां सीधे सूरज की रोशनी पहुंचती है वहां पर ये पानी मौजूद है। उनके मुताबिक इस पानी का इस्तेमाल भविष्य के मानव मिशन के लिए किया जा सकता है। साथ ही इसका उपयोग पीने और रॉकेट ईंधन उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है। हालांकि पिछले शोध में चांद पर लाखों टन बर्फ के संकेत मिल चुके हैं जो कि इसके ध्रुवीय क्षेत्रों में स्थायी रूप से मौजूद है।

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नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित दो नई रिसर्च में चांद पर पानी की मौजूदगी के स्तर को पहले के अनुमान से ज्‍यादा पाया गया है। इस नए शोध पर यूनिवर्सिटी ऑफ कोलाराडो के वैज्ञानिकों की टीम के सदस्य पॉल हाइन का कहना है कि चांद पर 40 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना है। उनके मुताबिक यह पहले के अनुमान से 20 फीसदी ज्यादा है। इससे पहले सूरज की रोशनी पड़ने वाली सतह पर पानी की संभावना पर सुझाव दिए गए थे लेकिन पुष्टि नहीं की गई थी।

मैरीलैंड में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में फेलो केसी हॉनीबल के मुताबिक चांद पर मौजूद अणु काफी दूर-दूर मौजूद हैं। ये न लिक्विड हैं और न ही सॉलिड रूप में है। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि चांद पर जिस जगह पानी होने का दावा किया गया है वो कोई पानी का गड्ढा नहीं है। नासा के डायरेक्‍टरेट ऑफ साइंस में एस्ट्रोफिजिक्स डिपार्टमेंट के डायरेक्‍टर पॉल हर्ट्ज का कहना है कि हमारे पास इस बात के संकेत पहले से मौजूद थे कि जिसे हम पानी के रूप में जानते हैं, वह चंद्रमा की सतह पर सूर्य की ओर मौजूद हो सकता है। अब हम जानते हैं कि यह वहां है। यह खोज चंद्रमा की सतह की हमारी समझ को चुनौती देती है। इससे हमें और गहन अंतरिक्ष खोज करने की प्रेरणा मिलती है।

उन्‍होंने कहा कि दक्षिणी गोलार्ध में स्थित सबसे बड़े गड्ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर की सतह सख्त हो सकती है। मुमकिन है कि यहां पर यान के व्‍हीकल के पहिए और ड्रिल खराब हो जाए। गौरतलब है कि नासा पहले से ही 2024 में चांद की सतह पर एक पुरूष और पहली बार किसी महिला को भेजने की तैयारी में जुटा है। इस पूरी परियोजना पर 28 बिलियन डॉलर तक का अनुमानित खर्च हो सकता है। ताजा अध्ययन रोबोट्स और एस्ट्रॉनॉट्स की चांद पर संभावित लैंडिंग के स्थान को विस्तार देते हैं।

दूसरे अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने स्ट्रेटोस्फियर ऑब्जरवेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (सोफिया) की मदद ली है। नासा के मुताबिक सोफिया ने चंद्रमा के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित, पृथ्वी से दिखाई देने वाले सबसे बड़े गड्ढों में से एक क्लेवियस क्रेटर में पानी के अणुओं का पता लगाया है। सोफिया नासा और जर्मन एयरोस्‍पेस सेंटर की साझा परियोजना है।


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