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विश्व के 11 हजार वैज्ञानिकों का दावा, Climate Emergency का सामना कर रही दुनिया

विश्व के 153 देशों के 11 हजार 258 वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि पूरी दुनिया क्लाइमेट इमरजेंसी का सामना कर रही है।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 01:40 PM (IST)Updated: Wed, 06 Nov 2019 01:40 PM (IST)
विश्व के 11 हजार वैज्ञानिकों का दावा,  Climate Emergency का सामना कर रही दुनिया
विश्व के 11 हजार वैज्ञानिकों का दावा, Climate Emergency का सामना कर रही दुनिया

वाशिंग्टन, एजेंसी। पिछले कुछ वर्षों से बढ़ते प्रदूषण और ग्‍लोबल वार्मिंग के चलते पूरी दुनिया परेशान है। इसके चलते दुनिया के कुछ हिस्सों इतनी बारिश हो रही है कि यहां बाढ़ से तबाही मच जाती है। वहीं कुछ हिस्सों में बारिश ही नहीं हो रही। इस खतरे को देखते हुए विश्व के 153 देशों के 11 हजार 258 वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि पूरी दुनिया क्लाइमेट इमरजेंसी का सामना कर रही है।

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बायोसाइंस नाम के जर्नल में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है। ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के पर्यावरणविद बिल रिप्पल और टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के क्रिस्टोफर वुल्फ ने यह अध्ययन किया है। इसमें ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ता भी शामिल रहे। इसमें स्पष्ट रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बड़ी चुनौती बताया गया है।
 
वार्ताओं के बावजूद नहीं सुधरी स्थिति

इस अध्ययन में कहा गया है कि 40 साल की वैश्विक जलवायु वार्ताओं के बावजूद हमने आम तौर पर सामान्य रूप से व्यवसाय किया है। इसका नतीजा है कि हम इस पूर्वानुमानित समस्या को दूर करने में असफल रहे हैं।इसमें जलवायु (Climate Change) पर मानव प्रभाव को आसानी से समझने के लिए कुछ संकेतकों जिक्र किया गया है।

 
बढ़ रहा वैश्विक तापमान और महासागरों का जल स्तर

इस अध्ययन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 40 साल, आर्थिक रुझान, जनसंख्या वृद्धि दर, प्रति व्यक्ति मांस उत्पादन, और वैश्विक स्तर पर व्यापक रूप से पेड़ कटने का जिक्र है। इन्हीं वजहों से वैश्विक तापमान और महासागरों का जल स्तर बढ़ रहा है।

ऊर्जा संरक्षण पर करना होगा काम

ऊर्जा को लेकर अध्ययन में कहा गया है कि पूरे विश्व को ऊर्जा संरक्षण पर काम करना होगा। हमें उर्जा के उन स्रोतों के इस्तेमाल (Renewable sources of energy) को बढ़ाना होगा, जिनका इस्तेमाल बार बार हो सके। ताकि कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) का इस्तेमाल कम हो। धरती में बचे जीवाश्म ईंधन का अब और दोहन नहीं होना चाहिए। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इससे लोगों में जलवायु परिवर्तन को लेकर जगरुकता बढ़ेगी।  


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