हमारी आंखों में है कुदरती रूप से नाइट विजन मोड
अभी तक माना जाता था कि अपरिवर्तित होते हैं रेटीना सर्किट, इन्हें विशेष टास्क के लिए ही किया गया है प्रोग्राम, चूहों पर अध्ययन के बाद नए तथ्य आए सामने।
वाशिंगटन [प्रेट्र]। हमारी आंखों में कुदरती रूप से नाइट विजन मोड अंतर्निहित है। यह कहना है वैज्ञानिकों का, जिन्होंने पाया है कि तारों या चांद की रोशनी में प्रकाश के प्रति संवेदनशील कोशिकाओं के कारण हमारी रेटिना का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों बदल जाता है। अभी तक माना जाता था कि रेटीना सर्किट अपरिवर्तित होते हैं और ये विशेष टास्क के लिए ही प्रोग्राम किए गए हैं। अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह प्रकाश में बदलाव के अनुसार खुद को अनुकूल बनाते हैं।
वैज्ञानिक अब इस बात का पता लगाने में सफल हुए है कि कम रोशनी में रेटिना खुद को कैसे रीप्रोग्राम करती है। अमेरिका स्थित ड्यूक यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर ग्रेग फील्ड कहते हैं, तारों की रोशनी में देखने के लिए जीव विज्ञान को ब्रह्मांड की एक सीमा को पार करना पड़ा। इस खोज के बारे में न्यूरॉन नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इसके मुताबिक, गति के प्रति संवेदनशील रेटिना कोशिकाओं में रीप्रोग्रामिंग होती है।
जानवरों की जान बचाने में उपयोगी
वैज्ञानिकों का कहना है कि आंखों के इस कुदरती गुण का लाभ जानवरों को भी मिलता है। ज्यादातर जानवर अंधेरे में प्रकाश की मौजूदगी और उसकी गति की दिशा का पता लगाकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहते हैं। अगर आंखों में नाइट विजन न हो तो रात में देख पाना असंभव हो जाए। ऐसे में कोई गाड़ी या शिकारी उनकी तरफ बढ़ रहा हो तो इसका पता उन्हें नहीं लग सकेगा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, हालांकि प्रकाश के एक बिंदु की गति उसका पता लगाने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। इसलिए कशेरुकी जंतुओं की रेटिना में प्रकाश के प्रति संवेदनशील कोशिकाएं चार प्रकार की होती हैं। चारों कोशिकाएं ऊपर, नीचे, दाएं और बाएं चार अलग गतियों के प्रति विशेष रूप से उत्तरदायी होती हैं।
इंसानों में इस तरह होता है काम
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इंसानों में रेटिना से मस्तिष्क तक सिग्नल भेजने के लिए कोशिकाओं की चार फीसद जिम्मेदारी इन दिशात्मक न्यूरॉन्स की होती है। इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत अंधेरे कमरे में चूहों के रेटिना की जांच नाइट विजन वाले माइक्रोस्कोप के जरिये की। वैज्ञानिकों ने पाया कि ऊपर की ओर गति के प्रति संवेदनशील रेटिना कोशिकाएं कम रोशनी में अपना व्यवहार बदलती हैं। इस तरह रेटिना से सिगनल मस्तिष्क को पहुंचता है, जिससे अंधेरे में भी आंखें सामने वाली चीज को समझने में सफल होती हैं।
यह मिलेगी मदद
फील्ड कहते हैं, यह खोज महत्वपूर्ण है। इसके जरिये भविष्य में कृत्रिम अंग बनाने में मदद मिलेगी। इसकी मदद से ऐसी आंखें तैयार करने का प्रयास किया जाएगा, जिसमें कुदरती नाइट विजन मोड हो।