यूएन ने कहा, लॉकडाउन के चलते बच्चों की बढ़ी मुश्किलें, 12 करोड़ को नहीं लगा खसरे का टीका
यूनिसेफ (UNICEF) ने कहा है कि लॉकडाउन के चलते दुनियाभर में बच्चों की समस्याएं बढ़ी हैं। 37 देशों के करीब 12 करोड़ बच्चों को खसरे (मीजल्स) का टीका नहीं लग पाया है।
संयुक्त राष्ट्र/न्यूयॉर्क, एजेंसियां। कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन के चलते दुनियाभर में बच्चों की समस्याएं बढ़ गई हैं। समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक, कोरोना महामारी के चलते 37 देशों के करीब 12 करोड़ बच्चों को खसरे (मीजल्स) का टीका नहीं लग पाया है। वहीं पीटीआइ की मानें तो संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने कहा है कि इससे दुनिया भर में लाखों बच्चे ऑनलाइन यौन उत्पीड़न (Online Physical Exploitation) का शिकार हो सकते हैं।
यही नहीं संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने लॉकडाउन के दौरान बच्चों के वर्चुअल प्लेटफार्मों पर अधिक समय बिताने को लेकर आगाह किया है। यूएन ने कहा है कि इससे इंटरनेट पर बच्चों को डराने, धमकाने के मामलों में भी इजाफा हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की बाल मामलों की एजेंसी यूनिसेफ (UNICEF) ने कहा कि दुनियाभर में स्कूल बंद होने के कारण 15 लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं। ये बच्चे अब वर्चुअल प्लेटफार्मों (virtual platforms) पर अधिक समय बिता रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के अनुसार, कोरोना महामारी के चलते 37 देशों के करीब 12 करोड़ बच्चों को खसरे (मीजल्स) का टीका नहीं लग पाया है। इससे इन बच्चों में खसरे के संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। खसरे के टीके के मामले में 24 देश पहले ही लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं। इस संबंध में गाइडलाइन जारी करते हुए डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि टीकाकरण अभियान के दौरान संक्रमण से सुरक्षा बेहद जरूरी है।
उल्लेखनीय है कि खसरा भी वायरस से फैलने वाला एक संक्रामक रोग है। हर दूसरे या तीसरे साल इसके चलते लाखों लोग मारे जाते हैं। खसरे का सुरक्षित टीका मौजूद होने के बावजूद वर्ष 2018 में विश्वभर में इससे एक लाख 40 हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं। इनमें ज्यादातर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे। वहीं दुनियाभर में वर्चुअल प्लेटफार्मों पर बच्चों की अधिक व्यस्तता पर यूनिसेफ (UNICEF) ने कहा है कि इससे ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के शिकार होने का खतरा है।
UNICEF की मानें तो इससे बच्चों में गलत भावनाएं पैदा हो सकती है क्योंकि उनका उत्पीड़न किया जा सकता है। दोस्तों और साथियों से आमने सामने नहीं मिल पाने के कारण वे कामुक तस्वीरें भेज सकते हैं। यही नहीं बच्चों की इंटरनेट पर हानिकारक और हिंसक सामग्री तक पहुंच बढ़ सकती है। इससे इंटरनेट पर डराने, धमकाने के मामले बढ़ने की आशंका भी है। ग्लोबल पार्टनरशिप टू एंड वायलेंस के कार्यकारी निदेशक हॉवर्ड टेलर की मानें तो इन दिनों ऑनलाइन पर लोग ज्यादा समय बिता रहे हैं।