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अब लैंडर विक्रम में लगी बैट्रियां हो गई डिस्चार्ज, इसरो चीफ बोले संपर्क होने की संभावनाएं खत्म

इसरो चीफ के सिवन ने भी अब यह कह दिया है कि लैंडर विक्रम से संपर्क होने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं। अब गगनयान की तैयारियां शुरु की जा रही हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 04:19 PM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 08:31 AM (IST)
अब लैंडर विक्रम में लगी बैट्रियां हो गई डिस्चार्ज, इसरो चीफ बोले संपर्क होने की संभावनाएं खत्म
अब लैंडर विक्रम में लगी बैट्रियां हो गई डिस्चार्ज, इसरो चीफ बोले संपर्क होने की संभावनाएं खत्म

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चांद पर अब लैंडर विक्रम से संपर्क होने की सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं। इसरो चीफ के सिवन ने शनिवार को ये जानकारी दे दी थी। लैंडर से संपर्क न हो पाने के बाद अब उसमें बंद रोवर प्रज्ञान भी बाहर नहीं निकल पाएगा। यदि विक्रम की लैंडिंग ठीक हो जाती तो रोवर प्रज्ञान उसमें से बाहर निकलता और कई तस्वीरें और अन्य सूचनाएं इसरो के कंट्रोल रूम को भेजता। अब इन सभी संभावनाओं पर विराम लग गया है। दरअसल शनिवार से ही चांद पर तापमान में गिरावट शुरु हो गई है, लैंडर विक्रम में लगी बैट्रियों को किसी भी तरह से ऊर्जा नहीं मिल पाएगी ऐसे में लैंडर काम नहीं कर पाएगा जिससे उसके अंदर बंद प्रज्ञान रोवर भी बाहर नहीं निकल पाएगा। 

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शून्य से नीचे चला जाएगा तापमान 

चांद पर तापमान शून्य से भी कई डिग्री तक नीचे चला जाता है। ऐसे में अब लैंडर को किसी भी तरह से ऊर्जा मिलने की संभावना एकदम ही खत्म हो गई है। इसरो चीफ के सिवन ने भी अब इस बात को मान लिया है कि लैंडर विक्रम से संपर्क की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी है। अब अगले गगनयान के लिए तैयारियां शुरू कर की जा रही है। हालांकि आर्बिटर सटीक तरीके से काम कर रहा है और वो अगले 7 साल तक चंद्रमा के चक्कर काटकर सूचनाएं देता रहेगा। इससे अध्ययन में सहूलियत होगी। 

‘चंद्रयान-2’ का आर्बिटर दे रहा बेहतर परिणाम 

इसरो के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार ने कहा है कि लैंडर ‘विक्रम’ और इसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ से संपर्क टूट जाने के बावजूद ‘चंद्रयान-2’ का आर्बिटर ‘‘बेहतर परिणाम’’ हासिल करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि इस बार का ऑर्बिटर महत्वपूर्ण उपकरणों से लैस है जो एक दशक पहले भेजे गए ‘चंद्रयान-1’ की तुलना में अधिक शानदार परिणाम दे रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व में नासा जेपीएल से ‘चंद्रयान-1’ द्वारा ले जाए गए दो उपकरणों की तुलना में इस बार के उपकरण तीन माइक्रोन से लेकर पांच माइक्रोन तक की स्पेक्ट्रम रेंज तथा रडारों, दोनों के मामलों में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। 

सारी कोशिशें हो गई नाकाम 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद लैंडर से संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। हालांकि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर ने हार्ड लैंडिंग के कारण टेढ़े हुए लैंडर का पता लगा लिया था और इसकी थर्मल इमेज भेजी थी। भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक लैंडर से संपर्क साधने की हर रोज कोशिश कर रहे हैं लेकिन प्रत्येक गुजरते दिन के साथ संभावनाएं क्षीण होती जा रही थीं। इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा। 

घटती गई उम्मीदें और खत्म हो गया अंतिम आसरा 

चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम से पुन: संपर्क स्थापित करने और इसके भीतर बंद रोवर प्रज्ञान को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं अब पूरी तरह से क्षीण हो गई है। बीते 7 सितंबर को सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में विक्रम का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता। लैंडर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है। 

रात 1.30 बजे शुरु किया था उतारना 

रात 1.30 बजे इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर को धीरे-धीरे चांद की सतह पर उतारना शुरु किया था। विक्रम लैंडर को पहले चांद की कक्षा में मौजूद ऑर्बिटर से अलग किया जाना था और फिर उसे चंद्रमा की सतह की ओर ले जाना था। लैंडर के अंदर प्रज्ञान नाम का रोवर भी था जिसे लैंडर के सुरक्षित उतर जाने के बाद बाहर निकलकर चांद की सतह पर घूमना और वैज्ञानिक पड़ताल करना था। इसरो के चंद्रयान 2 के लिए चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को चुना गया था जहां पर विक्रम लैंडर की सॉफ़्ट लैंडिंग करवाई जानी थी, सब कुछ सही जा रहा था मगर सतह पर पहुंचने से कुछ देर पहले ही लैंडर से संपर्क टूट गया। 

कैसे किया जा रहा था संपर्क 

इसरो की टेलीमेट्री, ट्रैंकिग एंड कमांड नेटवर्क की एक टीम लैंडर से पुन: संपर्क स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रही थी मगर उसमें कामयाबी नहीं मिल पाई। इसरो अधिकारी ने बताया कि सही दिशा में होने की स्थिति में शानिवार से पहले तक यह माना जा रहा था कि सौर पैनलों के चलते अब भी लैंडर विक्रम ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है और बैटरियों को पुन: चार्ज कर सकता है।

पहला देश बना भारत 

भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई यान भेजने वाला पहला देश है। अब तक चांद पर गए ज्यादातर मिशन इसकी भूमध्य रेखा के आस-पास ही उतरे हैं। यदि भारत का ये मिशन कामयाब रहता है तो अमरीका, रूस और चीन के बाद, भारत चंद्रमा पर किसी अंतरिक्ष यान की सॉफ्ट लैंडिंग करवाने वाला चौथा देश बन जाता। 

प्रज्ञान रोवर की क्या है अहमियत 

अगर भारत के प्रज्ञान रोवर के सेंसर चांद के दक्षिणी ध्रुवीय इलाके गड्ढों से पानी के सबूत तलाश पाते तो यह विश्व के लिए एक बड़ी खोज होती। चंद्रयान-2 मिशन की कामयाबी अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लिए भी मददगार साबित होती, नासा 2024 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक मिशन की योजना बना रहा है।

(नोट-नासा की ओर से ली गई तस्वीरें)

मिल रहे डेटा आगे आएंगे काम 

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को इस मिशन से विभिन्न इंजीनियरिंग डेटा मिले होंगे जो भविष्य में उपयोगी होंगे। अभी तक लैंडर के साउथ पोल पर उतरने के चंद मिनट पहले जो कमियां रह गई उसको दूर करने की दिशा में काम आएंगे। 

हालीवुड ब्लॉकबस्टर Avengers endgames से कम रही लागत 

भारत के दूसरे चंद्रमा मिशन की लागत हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर एवेंजर्स एंडगेम्स(Avengers endgames) के आधे से भी कम है। चंद्रयान 2 मिशन की कुल लागत 124 मिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें लॉन्च के लिए 31 मिलियन अमेरिकी डॉलर और उपग्रह के लिए 93 मिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं।

हार्ड लैंडिंग की वजह से हुई समस्या 

इसरो के एक अधिकारी ने बताया था कि चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम चांद की सतह पर साबुत अवस्था में है और यह टूटा नहीं है। हालांकि हार्ड लैंडिंग की वजह से यह झुक गया था। विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास के अंतिम क्षणों में इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया था जब यह चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर था।

एंटीना हुआ था अव्यस्थित 

इसरो के एक अधिकारी ने बताया था कि विक्रम को चंद्रमा की सतह के जिस स्थान पर उतरना था, उससे करीब 500 मीटर दूर (चंद्रमा की) सतह से वह टकराया। इसरो की एक टीम शुरु में यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि क्या वे लैंडर के एंटिना को फिर से व्यवस्थित कर सकते हैं जिससे संपर्क बहाल हो जाए। मगर इसमें भी कामयाबी नहीं मिली। 

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