विकासशील देशों में धड़ल्ले से बिक रहीं नकली दवाएं
वैज्ञानिकों ने पाया है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में बिक रही 13 प्रतिशत दवाएं निम्न स्तर की हैं। अगर अफ्रीकी देशों की बात करें तो यह प्रतिशत 19 हो जाता है।
वाशिंगटन [प्रेट्र]। विकासशील देशों में मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों के लिए नकली और निम्नस्तर की दवाओं की धड़ल्ले से बिक्री हो रही है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में बिक रही 13 प्रतिशत दवाएं निम्न स्तर की हैं। अगर अफ्रीकी देशों की बात करें तो यह प्रतिशत 19 हो जाता है।
अमेरिका के चैपल हिल स्थित नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि नकली दवाओं का मतलब उन दवाओं से है जो गलत नाम और जानकारी के साथ बिक रही हैं। निम्न स्तर की दवाएं वे हैं जो किसी भी रोग के उपचार के लिए निर्धारित मानक को पूरा नहीं करती हैं या जिन्हें एक्सपायरी डेट के बाद भी बेचा जा रहा है।
शोधकर्ताओं ने नकली और निम्न स्तर की 50 से अधिक दवाओं का परीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने पाया कि इन नकली और निम्न स्तर की दवाओं में सबसे ज्यादा मलेरिया की दवा और एंटीबायोटिक दवाएं हैं। निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में मलेरिया की 19 प्रतिशत और एंटीबायोटिक 12 प्रतिशत दवाएं नकली बेची जा रही हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के एसोसिएट प्रोफेसर सचिको ओजावा का कहना है कि इन नकली और निम्न स्तर की दवाओं का प्रचलन स्वास्थ्य के लिए बड़ी समस्या बन सकता है।
इन दवाओं से कोई लाभ न होने के साथ- साथ लंबी बीमारी और शरीर में जहर फैलने का खतरा है। उन्होंने कहा कि इस समस्या पर वैश्विक समाधान की आवश्यकता है, जिससे कि सही दवाओं की सप्लाई सुनिश्चित की जाए और दवाओं के बारे में सही जानकारी साझा हो सके। इसके अलावा दवाओं की गुणवत्ता और निगरानी के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की आवश्यकता है। शोध में यह भी सामने आया है कि नकली दवाओं से विश्व की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंच रहा है।