खुशखबरी: चूहों और बंदरों पर कारगर पाई गई नई कोरोना वैक्सीन, उम्मीदें बढ़ीं
पीएआइ लाइफ साइंसेज से जुड़े भारतवंशी अमित खंधार समेत शोधकर्ताओं के दल ने परीक्षण में पाया कि इंजेक्शन के जरिये वैक्सीन की खुराक देने के दो हफ्ते में ही इसका असर शुरू हो गया।
वाशिंगटन, पीटीआइ। दुनियाभर में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए वैक्सीन की खोज हो रही है। कोरोना वायरस (कोविड-19) की काट खोजने के प्रयास में वैज्ञानिक समुदाय कई उपचार और वैक्सीन (टीका) पर शोध कर रहे हैं। इसी कवायद में जुटे भारतवंशी समेत वैज्ञानिकों के एक दल ने एक नई संभावित वैक्सीन को चूहों और बंदरों पर परखा है। यह वैक्सीन इन पर कारगर पाई गई है। उनका दावा है कि इनमें वैक्सीन की एक खुराक से एंटीबॉडी की उत्पत्ति पाई गई, जिससे कोरोना वायरस बेअसर पाया गया।
अमेरिकी बायोटेक कंपनी पीएआइ लाइफ साइंसेज से जुड़े भारतवंशी अमित खंधार समेत शोधकर्ताओं के दल ने अपने परीक्षण में पाया कि इंजेक्शन के जरिये वैक्सीन की खुराक देने के दो हफ्ते के अंदर ही इसका असर शुरू हो गया। जर्नल साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 'रेप्लिकेटिंग आरएनए वैक्सीन' कोरोना वायरस को निष्प्रभावी करने वाली एंटीबॉडी को प्रेरित करने में सक्षम पाई गई है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि इस तरह की वैक्सीन बड़ी मात्रा में प्रोटीन की उत्पत्ति करने के साथ ही एक तरह के वायरस-सेंसिंग स्ट्रेस रिस्पांस को प्रेरित करती है, जिससे दूसरी प्रतिरक्षा (इम्यून) गतिविधि भी प्रोत्साहित हो सकती है। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के जीनोम पर आधारित यह संभावित आरएनए वैक्सीन कोशिकाओं में प्रवेश करती है और प्रोटीन की उत्पत्ति करने का निर्देश देती है। इसके साथ ही कोरोना की पहचान करती है और एंटीबॉडी व टी सेल्स के साथ मिलकर इस वायरस पर धावा बोलती है। शोधकर्ताओं ने बताया कि अब वे इंसानों पर इस वैक्सीन के पहले दौर का परीक्षण कर रहे हैं। अभी एक छोटे समूह पर यह आजमाई जा रही है।
चीन की कोरोना वैक्सीन में प्रतिरोधक क्षमता मिली
चीन की सैन्य रिसर्च इकाई और कैनसिनो बायोलोजिक इंक द्वारा तैयार की जा रही कोरोना वैक्सीन को भी इंसानों पर परीक्षण के मध्य चरण में सफल पाया गया है। यह वैक्सीन सुरक्षित होने के साथ ही साथ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती है। शोधकर्ताओं ने सोमवार को यह जानकारी दी। कैनसिनो वैक्सीन की 508 लोगों पर परीक्षण किया गया है। परीक्षण के दौरान लोगों के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है। अगले चरण में बड़े स्तर पर इसका परीक्षण किया जाना है। इस वैक्सीन ने शरीर में एंटीबॉडी के साथ ही टी-सेल भी विकसित किए।