जल्द ही खत्म हो जाएगी लाइट की टेंशन, कागज से बनेंगी बैटरियां और बैक्टीरिया से होंगी चार्ज
वैज्ञानिकों ने किफायती बैटरी बनाने की राह तलाश ली है। अहम चीज यह है कि इस बैटरी को कागज से तैयार किया गया है, जिसे बैक्टीरिया के जरिये चार्ज किया जा सकेगा।
न्यूयॉर्क [प्रेट्र]। विज्ञान ने जितनी तेजी से तरक्की की है उतनी ही तेजी से बाजार में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध कराए हैं। इसी के साथ इन्हें ऊर्जा देने के लिए बैटरी की मांग भी बढ़ी है। वहीं, दुनिया के ऐसे बहुत से इलाके हैं, जहां बिजली अभी भी नहीं पहुंच सकी है। ऐसे में इन स्थानों पर बिजली उपलब्ध कराना भी वैज्ञानिकों के लिए अहम चुनौती है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में कई खोजें की हैं। इसी कड़ी में अब उन्हें एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने किफायती बैटरी बनाने की राह तलाश ली है। अहम चीज यह है कि इस बैटरी को कागज से तैयार किया गया है, जिसे बैक्टीरिया के जरिये चार्ज किया जा सकेगा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, दुनिया में दूरदराज के ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां संसाधन अत्यंत सीमित हैं। ऐसे स्थानों पर इलेक्ट्रॉनिक आउटलेट और बैटरी जैसी चीजों को विलासिता की चीज माना जाता है। ऐसे स्थानों पर स्वास्थ्य कर्मियों को उपचार के दौरान हमेशा बिजली के संकट से जूझना पड़ता है। इन जगहों पर वाणिज्यिक बैटरियां या तो अनुपलब्ध हैं या फिर बहुत अधिक महंगी पड़ती हैं। ऐसे में इनका प्रयोग संभव नहीं हो पाता। इन परेशानियों से निजात दिलाने के लिए वैज्ञानिकों ने जो बैटरी तैयार की हो वो किफायती और पोर्टेबल है। इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है।
अमेरिका स्थित स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क, बिंघहैमटन के सेओकेन चोई कहते हैं, एक बायोसेंसर मैटीरियल के रूप में कागज के कई अनोखे फायदे हैं। यह सस्ता, डिस्पोजेबल और आसानी से मुड़ने वाला होता है। वहीं, दूसरी तरफ वाणिज्यिक बैटरियां बहुत ही महंगी होती हैं। साथ ही खराब होने के बाद यह ऐसे कचरे का रूप ले लेती हैं, जिन्हें आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता। इसके चलते ये प्रदूषण बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाती हैं। चोई बताते हैं, इन्हीं चीजों को देखते हुए कागज की बैटरी तैयार करने का विचार आया। ये ही उपरोक्त समस्याओं का सबसे उचित समाधान है।
वैज्ञानिकों ने इससे पहले डिस्पोजेबल पेपर आधारित बायोसेंसर तैयार किए थे। इन्हें स्वास्थ्य जांच और वातावरण में होने वाले बदलाव का पता लगाने के लिए तैयार किया गया था। ऐसी बहुत सी डिवाइसेज रंग बदलकर परिणाम देती हैं। हालांकि यह बहुत अधिक संवेदनशील नहीं होती। इन बायोसेंसर की संवेदनशीलता बढ़ाने के लिए पावर सप्लाई की जरूरत थी। चोई बताते हैं, इन्हीं चीजोंं को देखते हुए मैं एक ऐसी कागज की बैटरी चाहता था, जिसे बैक्टीरिया से चार्ज किया जा सके और आसानी से उन उपकरणों में लगाया जा सके जिनका प्रयोग एक बार किया जाता है।
इस तरह किया तैयार
वैज्ञानिकों ने इस बैटरी को तैयार करने के लिए धातुओं व अन्य मैटीरियल की पतली परत को कागज की सतह पर प्रिंट किया। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इसे जमे हुए और सूखे एक्सोइलेक्ट्रोजींस में रखा। एक्सोइलेक्ट्रोजींस एक विशेष प्रकार का बैक्टीरिया होता है जो अपने सेल्स से इलेक्ट्रॉन को बाहर स्थानांतरित करता है।
बैक्टीरिया द्वारा स्वयं के लिए ऊर्जा बनाते समय बनने वाले इलेक्ट्रॉन्स सेल मेंबरेंस से होकर गुजरते हैं। यह बाहरी इलेक्ट्रॉड्स से संपर्क में आकर बैटरी को ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं। बैटरी को एक्टिव बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने पानी या लार का प्रयोग किया। वैज्ञानिकों ने देखा कि कुछ ही मिनटों में बैक्टीरिया को तरल पदार्थ मिलने के बाद वे इलेक्ट्रॉन मुक्त करने लगता है, जिससे ऊर्जा उत्पन्न होने लगती है।