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समुद्र का जलस्तर बढ़ने में बर्फ की परतों का पता लगाएगा नासा का यह उपग्रह

नासा एक ऐसा सेटेलाइट लॉन्च करने की तैयारी में है, जो धरती पर बर्फ की परतों, ग्लेशियरों और समुद्री बर्फ में होने वाले बदलावों का पता लगाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 12:15 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 12:16 PM (IST)
समुद्र का जलस्तर बढ़ने में बर्फ की परतों का पता लगाएगा नासा का यह उपग्रह
समुद्र का जलस्तर बढ़ने में बर्फ की परतों का पता लगाएगा नासा का यह उपग्रह

वाशिंगटन [प्रेट्र]। नासा एक ऐसा सेटेलाइट लॉन्च करने की तैयारी में है, जो धरती पर बर्फ की परतों, ग्लेशियरों और समुद्री बर्फ में होने वाले बदलावों का पता लगाएगा। इस सेटेलाइट में बेहद आधुनिक लेजर उपकरण लगाए गए हैं। इनका अभी तक कभी भी अंतरिक्ष में प्रयोग नहीं किया गया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने क्लाउड एंड लैंड एलवेशन सेटेलाइट-2 (आइससेट-2) को लॉन्च करने के लिए 15 सितंबर की तारीख तय की है। प्रति सेकेंड 60 हजार मापों को कैप्चर करने में सक्षम यह सेटेलाइट ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका को ढकी बर्फ की ऊंचाई में औसत बदलाव का पता लगाएगा।

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अमेरिका स्थित नासा के साइंस मिशन निदेशालय से माइकल फ्रीलिच कहते हैं, आइससेट-2 के जरिये हमें यह पता चल सकेगा कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के जलस्तर को बढ़ाने में बर्फ की परतों की कितनी भूमिका है। नासा के बयान के मुताबिक, आइससेट-2 में इस प्रकार की टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया है कि वह बर्फ की ऊंचाई में आने वाले परिवर्तन का आसानी से पता लगाने में सक्षम है। इसका एडवांस्ड टोपोग्राफिक लेजर एल्टीमीटर सिस्टम (एटलस) लाइट फोटोन्स के जरिये बर्फ की ऊंचाई में परिवर्तन का पता लगाएगा। इसके लिए स्पेसक्राफ्ट से धरती तक जाने और वापस लौटने में लगे फोटोन्स के समय का इस्तेमाल किया जाएगा।

नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर से आइससेट-2 के प्रोजेक्ट मैनेजर डौग मैकलेनान कहते हैं, एटलस को तैयार करने के लिए वर्तमान में प्रयोग हो रही तकनीकों से आगे बढ़कर हमने बेहतर और आधुनिक तकनीक तैयार की। एटलस हर सेकेंड में 10 हजार बार लेजर छोड़ेगा, जिसमें सैकड़ों ट्रिलियन फोटोन्स होंगे। इसके लिए हरे प्रकाश वाली छह बीम्स का प्रयोग करेगा।

यह मिलेगी मदद

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इससे प्राप्त डाटा की मदद से समुद्री लहरों, तूफानों और जलाशय स्तरों का पता लगाया जा सकेगा। इसके बाद जरूरत पड़ने पर उस स्थान पर जरूरी कदम उठाए जाने के लिए योजनाएं बनाई जा सकेंगी। 


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