Move to Jagran APP

देश ने हर मोर्चे पर दी गरीबी को मात, दलित और मुस्लिम आबादी में सबसे तेजी से सुधार

यूएनडीपी ने ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचडीआइ) के साथ मिलकर यह इंडेक्स तैयार किया है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 10:29 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 10:30 PM (IST)
देश ने हर मोर्चे पर दी गरीबी को मात, दलित और मुस्लिम आबादी में सबसे तेजी से सुधार
देश ने हर मोर्चे पर दी गरीबी को मात, दलित और मुस्लिम आबादी में सबसे तेजी से सुधार

नई दिल्ली, आइएएनएस। गरीबी से निपटने के मोर्चे पर देश ने बड़ी छलांग लगाई है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से जारी मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (एमपीआइ) 2018 के मुताबिक, 2005-6 से 2015-16 के 10 साल में भारत में गरीबों की तादाद आधी हो गई है। स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई और पोषण जैसे अलग-अलग मानकों के आधार पर तैयार होने वाले एमपीआइ के अनुसार इस अवधि में गरीबों की तादाद 54.7 फीसद से घटकर 27.5 फीसद पर आ गई। इससे 27.1 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आने में सफल रहे। यूएनडीपी ने ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचडीआइ) के साथ मिलकर यह इंडेक्स तैयार किया है।

loksabha election banner

एमपीआइ में केवल आय को ही गरीबी का मानक नहीं माना जाता है। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवनस्तर के आधार पर पिछड़ गए लोगों की पहचान की जाती है। इसमें पोषण, बाल मृत्युदर, शिक्षा के कुल वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, स्वच्छता, घरेलू ईधन, पेयजल, बिजली, आवास और संपत्ति के कुल 10 मानकों पर आकलन किया जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय विभिन्न मानकों पर सर्वाधिक गरीबी का सामना कर रहा है। हालांकि समीक्षाधीन 10 वर्षो में सबसे तेज सुधार भी इसी वर्ग में देखने को मिला है। एसटी का एमपीआइ 0.447 से घटकर 0.229 पर आ गया। प्रतिशत के आधार पर इस समाज में विभिन्न मानकों पर गरीबों की संख्या 79.8 फीसद से 50 फीसद पर आ गई।

इसी अवधि में दलितों का एमपीआइ 0.338 से घटकर 0.145 पर आ गया। प्रतिशत के आधार पर तादाद 65 फीसद से 32.9 फीसद पर आ गई। धार्मिक समुदायों में मुस्लिम समाज विभिन्न मोर्चो पर सबसे ज्यादा गरीबी का सामना कर रहा है। समीक्षाधीन अवधि में सबसे ज्यादा सुधार भी इसी वर्ग की स्थिति में हुआ। मुस्लिमों का एमपीआइ 2006 में 0.331 था, जो 2016 में 0.144 हो गया। प्रतिशत के आधार पर तादाद 60.3 फीसद से 31.1 फीसद पर आ गई।

राष्ट्रीय स्तर पर सभी वर्गो व समुदायों को मिलाकर देखा जाए, तो 2006 में 54.7 फीसद लोग गरीब थे। 2016 में इनकी संख्या 27.5 फीसद रह गई। एमपीआइ 0.279 से घटकर 0.121 पर आ गया। संख्या के आधार पर 2005-06 में 63.5 करोड़ लोग इन पैमानों पर गरीब थे। 2015-16 में ऐसे लोगों की संख्या 36.4 करोड़ रह गई। इन 10 वर्षो में 27.1 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आने में सफल रहे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.