UNHRC में रूस, चीन और क्यूबा की जीत से अमेरिका खफा, संयुक्त राष्ट्र के लिए बताया 'शर्मिंदगी'
माइक पोंपियों ने एक कांफ्रेंस के दौरान कहा कि यह एक उदाहरण है जिससे पता चलता है कि हम परिषद से अलग होने के अपने निर्णय के लिए ठीक थे। रूस चीन और क्यूबा ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सदस्यता हासिल की थी।
वाशिंगटन, पीटीआइ। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद (Human Rights Council) में रूस, चीन और क्यूबा की जीत को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो (Mike Pompeo) ने यूएन के लिए शर्मिंदगी बताया है। उन्होंने चीन, रूस और क्यूबा की जीत को अत्याचारों की जीत करार दिया है और संयुक्त राष्ट्र के लिए यह शर्म की बात बताया है। गौरतलब है कि रूस, चीन और क्यूबा ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की सदस्यता हासिल की थी। हालांकि सऊदी अरब को इसमें हार का सामना करना पड़ा था। इस दौड़ में 193 सदस्यीय यू.एन. महासभा में गुप्त मतदान में, पाकिस्तान को 169 मत मिले, उज्बेकिस्तान को 164, नेपाल को 150, चीन को 139 और सऊदी अरब को मात्र 90 मत मिले।
उन्होंने बुधवार को एक कांफ्रेंस के दौरान कहा कि यह एक उदाहरण है जिससे पता चलता है कि हम परिषद से अलग होने के अपने निर्णय के लिए ठीक थे। साल 2018 में अमेरिका ने सदस्यता नियमों के कारण संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने कहा कि इन नियमों के अनुसार मानवाधिकारों के मामले में दुनिया के सबसे खराब देशों को भी परिषद अपना सदस्य बनने की अनुमति देता है। उन्होंने आगे कहा कि हमने परिषद के सभी सदस्यों से आग्रह किया था कि इसके निष्क्रिय और अप्रभावी बनने से पहले तत्काल जरूरी कदम उठाए जाएं, लेकिन हमारे आग्रह पर ध्यान नहीं दिया गया। चीन, रूस और क्यूबा इसका सबूत हैं, जिन्हें सदस्यता मिली है। इससे पहले 2019 में मानवाधिकार के खराब रिकॉर्ड वाले वेनेजुएला को सदस्या दी गई थी।
गौरतलब है कि UNHRC में 47 सदस्य हैं, जिनमें से 15 सदस्यों का चुनाव तीन साल के कार्यकाल के लिए अब हुआ है। ये सभी सदस्य एक जनवरी 2021 से अपना कार्यभार संभालेंगे। बता दें कि यह चुनाव हर साल होता है। ट्रंप ने दो साल पहले अमेरिका को मानवाधिकार परिषद से हटा लिया था।