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टिड्डियों के हमले से भारत और पूर्वी अफ्रीका में हो सकता है खाद्य संकट, WMO ने दी चेतावनी

WMO ने नेचर क्लाइमेट चेंज के एक लेख का हवाला देते हुए कहा है कि टिड्डियां के आक्रामक होने की वजह को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा सकता है।

By Nitin AroraEdited By: Published: Tue, 21 Jul 2020 03:59 PM (IST)Updated: Tue, 21 Jul 2020 03:59 PM (IST)
टिड्डियों के हमले से भारत और पूर्वी अफ्रीका में हो सकता है खाद्य संकट, WMO ने दी चेतावनी
टिड्डियों के हमले से भारत और पूर्वी अफ्रीका में हो सकता है खाद्य संकट, WMO ने दी चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र, प्रेट्र। संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कहा है कि पूर्वी अफ्रीका, भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण टिड्डी दल का हमला खाद्य सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन जैसे कि रेगिस्तानी क्षेत्रों में तापमान और वर्षा में वृद्धि और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों (ट्रॉपिकल साइक्लोन) से जुड़ी तेज हवाएं कीट प्रजनन, विकास और प्रवास के लिए एक नया वातावरण प्रदान करती हैं। हाल ही में राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के दो दर्जन से अधिक जिलों में टिड्डियों के बड़े और आक्रामक झुंड ने हमला किया था। जबकि इसी साल फरवरी में पाकिस्तान ने आपातकाल की घोषणा करते हुए कहा था कि पिछले दो दशकों में टिड्डियों का ऐसा हमला कभी नहीं हुआ।

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डब्ल्यूएमओ ने नेचर क्लाइमेट चेंज के एक लेख का हवाला देते हुए कहा है कि इन इलाकों में रेगिस्तानी टिड्डियां प्राचीन समय से मौजूद हैं, लेकिन हाल ही में इनके आक्रामक होने की वजह को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा सकता है। इंटरगर्वनमेंटल अथॉरिटी ऑन क्लाइमेट प्रडिक्शन एंड एप्रीलेकशन सेंटर (आइसीपीएसी) के वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है और ग्लोबल वार्मिग ने टिड्डियों के विकास, प्रकोप और अस्तित्व के लिए आवश्यक परिस्थितियों को बनाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। लेख में कहा गया है कि टिड्डियों के बढ़ते प्रकोप के पीछे हिंद महासागर का गर्म होना, तीव्र और असामान्य उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की भूमिका और भारी वर्षा व बाढ़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

राजस्थान में टिड्डियों के कई झुंड मौजूद

विश्व खाद्य संगठन (एफएओ) ने कहा कि उत्तरी सोमालिया में रेगिस्तानी टिड्डियों पर की गई एक नई रिपोर्ट बताती है कि गर्मियों में प्रजनन के लिए यह टिड्डियां हिंद महासागर आ सकती है। रिपोर्ट में आगे यह भी कहा गया है कि भारत-पाकिस्तान सीमा के दोनों किनारों पर ग्रीष्मकालीन प्रजनन शुरू हो गया है। राजस्थान में तो कई झुंड मौजूद भी हैं। एफएओ रेगिस्तानी टिड्डियों की निगरानी और नियंत्रण करने वाली प्रमुख एजेंसी है और रेगिस्तानी टिड्डी सूचना सेवा का संचालन करती है।

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इथियोपिया में किया सर्वाधिक नुकसान

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक 2019 के अंत में टिड्डियां जहां सोमालिया और इथियोपिया में 70 हजार हेक्टेअर फसल पूरी तरह चट कर गई थीं वहीं केन्या की 2400 किमी चारागाह भूमि को नष्ट कर दिया था। आइसीपीएसी के मुताबिक इथियोपिया में किए गए एक हालिया अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि दिसबंर 2019 से मार्च 2020 के बीच टिड्डियों ने एक लाख 14 हजार हेक्टेअर ज्वार, 41 हजार हेक्टेअर मक्का और 36 हजार हेक्टेअर गेहूं की फसल नष्ट की है।

कई देशों की जलवायु प्रजनन के लिए अनुकूल

डब्ल्यूएमओ के क्षेत्रीय जलवायु केंद्र आइसीपीएसी ने कहा है कि उत्तरी केन्या, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी इथियोपिया में पिछले चौदह दिनों से टिड्डियों के झुंड मौजूद हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि रेगिस्तानी टिड्डियों के प्रजनन के लिए युगांडा, सूडान के पूर्वी इलाके, पूर्वी इथियोपिया, उत्तरी सोमालिया और उत्तरी केन्या में जलवायु अधिक उपयुक्त हैं।


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