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जानिए कौन था दुनिया में एड्स को हराने वाला पहला व्यक्ति, एक बार कैंसर को भी हराया, अब मौत

ब्राउन दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने एक दशक पहले एचआइवी संक्रमण को हरा दिया था। चूंकि उन दिनों इस बीमारी को बुरी नजरों से देखा जाता था इस वजह से बीमारी से ठीक होने वाले का नाम भी उजागर नहीं किया जाता था।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 12:44 PM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 06:35 PM (IST)
जानिए कौन था दुनिया में एड्स को हराने वाला पहला व्यक्ति, एक बार कैंसर को भी हराया, अब मौत
अमेरिका के कैलिफोर्निया के स्प्रिंग्स शहर के रहने वाले टिमोथी रे ब्राउन। (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/एएफपी। अमेरिका के कैलिफोर्निया के स्प्रिंग्स शहर के रहने वाले टिमोथी रे ब्राउन एक ऐसा नाम है जो एक दशक पहले तक काफी सुर्खियों में रहा था। इसके पीछे एक बड़ा कारण था। ऐसा कहा जाता था कि ब्राउन दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने एक दशक पहले एचआइवी संक्रमण को हरा दिया था। चूंकि उन दिनों इस बीमारी को बुरी नजरों से देखा जाता था इस वजह से बीमारी से ठीक होने वाले का नाम भी उजागर नहीं किया जाता था।

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ऐसे मरीजों को सिर्फ पेशेंट ही कहा जाता था। इस वजह से एक सम्मेलन के दौरान ब्राउन की पहचान छिपाने के लिए उन्हें "बर्लिन पेशेंट" का नाम दिया गया, तब से उन्हें बर्लिन पेशेंट की पहचान मिल गई। एचआइवी संक्रमण को हराने के बाद इन दिनों वो कैंसर से जुझ रहे थे मगर उससे हार गए। ब्राउन की कैंसर की वजह से मौत हो गई। ब्राउन को "बर्लिन पेशेंट" के नाम से भी जाना जाता था।

एचआइवी को हराने के बाद दुनिया के लिए बने थे उदाहरण 

एक दशक से पहले जब उन्होंने घातक एड्स बीमारी फैलाने वाले एचआईवी को हराया था, तब वो दुनिया भर में इस बीमारी से पीड़ित लाखों लोगों के लिए एक उदाहरण बन गए थे। पीड़ित लोगों को ब्राउन का उदाहरण देकर कहा जाता था कि वो ठीक हो सकते हैं तो हर मरीज ठीक हो सकता है, हौसला नहीं हारना चाहिए। बुलंद हौसलों के चलते ही ब्राउन ने एक बार कैंसर को भी हराया था, लेकिन वो फिर वापस आ गया। पिछले कई महीनों से उनका अपने घर पर ही इलाज चल रहा था। 

1995 में मिले थे एड्स से पीड़ित 

ब्राउन को 1995 में एचआईवी से संक्रमित पाया गया था जब वो बर्लिन में पढ़ाई कर रहे थे। उसके एक दशक बाद उनको ल्यूकेमिया हो गया था, ये एक तरह का कैंसर होता है जो खून और हड्डियों के मज्जे या बोन मैरो को प्रभावित करता है। उनके ल्यूकेमिया को ठीक करने के लिए फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन में उनके डॉक्टर ने एक ऐसे डोनर से स्टेम सेल प्रतिरोपण का इस्तेमाल किया था जिसे एक दुर्लभ जेनेटिक म्यूटेशन था।

उस म्यूटेशन की वजह से उस डोनर के पास एचआईवी से बचाव की प्राकृतिक रूप से क्षमता थी। डॉक्टर को उम्मीद थी कि इस दुर्लभ म्यूटेशन की वजह से ब्राउन की दोनों बीमारियां ठीक जाएंगी। प्रतिरोपण के दो दर्दनाक और खतरनाक दौरों के बाद उन्हें सफलता मिली। 2008 में ब्राउन को दोनों ही बीमारियां से मुक्त घोषित कर दिया गया। 

कैसे बने द बर्लिन पेशंट 

दरअसल ब्राउन की पहचान गुप्त रखने के लिए विचार किया जा रहा था। इसी दौरान एक सम्मेलन का आयोजन किया गया, इसी में उन्हें "द बर्लिन पेशेंट" का नाम दिया गया। दो सालों बाद उन्होंने खुद अपनी चुप्पी तोड़ने का फैसला लिया और फिर धीरे-धीरे वो एक पब्लिक फिगर बन गए। वो अपने तजुर्बे पर भाषण और इंटरव्यू देने लगे। उन्होंने 2012 में बताया था कि मैं इस बात का जीता-जागता प्रमाण हूं कि एड्स का इलाज हो सकता है। एचआईवी से ठीक हो जाना एक बहुत ही बढ़िया एहसास है।

लंदन पेशंट का मामला आया सामने 

ब्राउन के ठीक होने के 10 सालों बाद "लंदन पेशेंट" के नाम से जाने वाले एक दूसरे एचआईवी के मरीज की जानकारी सामने आई। जिस तरह से ब्राउन का इलाज किया गया था, ठीक उसी तरह के प्रतिरोपण से उसका भी इलाज किया गया। एडम कॉस्टिलेयो नामक वो मरीज आज एचआईवी से मुक्त है अगस्त में खबर आई कि कैलिफोर्निया में एक महिला है, जो कि बिना किसी एंटी-रेट्रोवायरल इलाज के एचआईवी से ठीक हो गई।

अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी (आईएएस) की अध्यक्ष अदीबा कमरुलजमां ने कहा ब्राउन और उनके डॉक्टर गेरो हटर के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने वैज्ञानिकों के लिए यह तलाशने के लिए रास्ते खोले कि एड्स का इलाज संभव है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक दिन हम एचआईवी का एक ऐसा इलाज खोज कर ब्राउन की विरासत को सम्मान देंगे, जो सुरक्षित, सस्ती और सबके लिए उपलब्ध होगी।  


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