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किम-ट्रंप कर रहे जंग की बात लेकिन परमाणु बटन दबाना आसान नहीं

नए साल की शुरुआत उ. कोरिया के तानाशाह किम जोंग के विवादास्पद बयान से शुरु हुई। किम ने कहा कि वो अमेरिका के खिलाफ कभी भी परमाणु युद्ध छेड़ सकता है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 04 Jan 2018 01:34 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jan 2018 05:00 PM (IST)
किम-ट्रंप कर रहे जंग की बात लेकिन परमाणु बटन दबाना आसान नहीं
किम-ट्रंप कर रहे जंग की बात लेकिन परमाणु बटन दबाना आसान नहीं

नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ] । क्या दुनिया पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडरा रहा है? क्या 21 वीं सदी के इस दशक में हिरोशिमा और नागाशाकी को दोहराया जाएगा? क्या हम एक बार विनाश की दिशा की तरफ आगे बढ़ रहे हैं? क्या दुनिया के एक सनकी नेता का विनाश की गाथा लिखने की तैयारी कर रहा है? ये सब सवाल है जिसका जवाब ढूंढ पाना आसान नहीं है। लेकिन नए साल के पहले दिन जिस तरह से उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने कहा कि उनके परमाणु बम को लॉन्च करने का बटन उनकी डेस्क पर रहता है। तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ट्वीट भी डराने वाला ही था। ऐसे में जानना बेहद आवश्यक है कि क्या ऐसा कोई बटन होता है जिसके दबा देने से परमाणु हथियार तबाही मचाना शुरू कर देंगे। लेकिन इससे पहले ये जानना जरूरी है कि किम जोंग उन और डोनाल्ड ट्रंप ने क्या कहा था। 

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किम जोंग के भड़काऊ बोल

उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति और तानाशाह किम जोंग-उन ने नए साल के मौके पर अमरीका को चेतावनी देते हुए कहा था कि परमाणु बम को लॉन्च करने का बटन हमेशा उनकी डेस्क पर रहता है यानी अमरीका कभी जंग शुरू नहीं कर पाएगा।


ट्रंप का ट्वीट

दो दिन बाद इसका जवाब देते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट किया कि किम जोंग-उन ने कहा है कि उनकी डेस्क पर हमेशा एक न्यूक्लियर बटन रहता है। उनके कमजोर और खाने के लिए तरस रहे साम्राज्य में से कोई उन्हें बताए कि मेरे पास भी एक परमाणु बटन है जो उनके बटन से बहुत बड़ा और ताकतवर है। यही नहीं मेरा परमाणु बटन काम भी करता है।



जानकार की राय

दैनिक जागरण से खास बातचीत में परमाणु हथियारों के मामले विशेषज्ञ गिरीश कर्नाड ने कहा कि बटन दबाने का ये मतलब नहीं होता है कि परमाणु युद्ध छिड़ गया। बटन दबाने का आशय ये है कि न्यू्क्लियर वेपंस में जो कोड दर्ज होते हैं उन्हें सक्रिय किया जाता है, इसके साथ ही इन हथियारों को ऑपरेट करने वाले जिम्मेदार लोगों को भी हरी झंडी दी जाती है। इसके साथ इन हथियारों के हैंडलर्स समय और जगह का चुनाव करते हैं और तब जाकर हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है। 

भारत के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यहां ये प्रक्रिया बेहद ही गोपनीय है, सुरक्षा के लिहाज से सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। लेकिन भारत भी इन हथियारों के इस्तेमाल में पूर्ण रूप से सक्षम है।

जटिल है परमाणु हमले की प्रक्रिया
दोनों देशों के बीच इस तनाव के बावजूद ट्रंप के हाथ में वाकई में कोई परमाणु बटन नहीं है। परमाणु हमले को गोपनीय रखा जाता है। इसकी प्रक्रिया बेहद जटिल है जिसमें सेना के कई अधिकारी शामिल होते हैं और इसके लिए बकायदा वॉर प्लान बनाया जाता है। परमाणु हथियार को लॉन्च करना रिमोट पर बटन दबाकर चैनल बदलने जैसा काम नहीं है। यह एक जटिल प्रक्रिया है। दिलचस्प ये है कि इसमें 'बिस्कुट' और 'फुटबॉल' जैसी चीजें भी शामिल हैं।

'न्यूक्लियर बटन' भले ही एक जानी-पहचानी टर्म हो लेकिन यह भी सच है कि डोनाल्ड ट्रंप महज एक 'बटन' दबाकर परमाणु हथियार नहीं छोड़ सकते हैं। पिछले साल 20 जनवरी को डोनल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ सेना का एक अधिकारी लेदर ब्रीफकेस के साथ मौजूद था।

उस ब्रीफकेस को 'न्यूक्लियर फुटबॉल' कहा जाता है। परमाणु हथियार को फायर करने के लिए इस फुटबॉल की जरूरत होती है। यह 'न्यूक्लियर फुटबॉल' हमेशा राष्ट्रपति के पास रहती है। इस 'फुटबॉल' के अंदर संचार के कुछ औजार और कुछ किताबें होती हैं जिनमें युद्ध की तैयार योजना है। इन योजनाओं की मदद से तत्काल फैसला लिया जा सकता है।


बिस्कुट में छिपा कोडवर्ड
बिस्कुट एक कार्ड होता है जिसमें कुछ कोड होते हैं। अमरीका के राष्ट्रपति को यह कोड हमेशा अपने पास रखने होते हैं लेकिन यह 'फुटबॉल' से अलग होता है। अगर राष्ट्रपति को परमाणु हमला करने का आदेश देना है तो वे इन्हीं कोड का इस्तेमाल करके सेना को अपनी पहचान बताते हैं।
 

राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद एबीसी न्यूज ने डोनाल्ड ट्रंप से पूछा था कि, बिस्कुट मिलने के बाद कैसा महसूस होता है। ट्रंप ने जवाब दिया कि जब वो बताते हैं कि बिस्कुट क्या है और इससे कैसी तबाही हो सकती है तो आपको इसकी गंभीरता समझ आ जाती है। 

सिर्फ राष्ट्रपति परमाणु हथियार लॉन्च कर सकते हैं। कोड के जरिए सेना को अपनी पहचान बताने के बाद राष्ट्रपति जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन को आदेश देते हैं। चेयरमैन अमरीकी सेना के सबसे बड़े अधिकारी होते हैं।
उसके बाद ये आदेश नेब्रास्का के एयरबेस में बने स्ट्रैटजिक कमांड के मुख्यालय के पास चला जाता है।वहां से यह आदेश ग्राउंड टीमों को भेजा जाता है। ग्राउंड टीम (ये समुद्र में या पानी के अंदर भी हो सकते हैं) परमाणु हथियार को फायर करने का आदेश कोड के जरिए भेजा जाता है।ये कोड लॉन्च टीम के पास सुरक्षित रखे कोड से मिलना चाहिए।

राष्ट्रपति अमरीकी सेनाओं के कमांडर इन चीफ होते हैं। यानी सेनाओं को उनका हर आदेश मानना होता है। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हो सकते हैं। 40 सालों में पहली बार पिछले साल नवंबर में कांग्रेस ने राष्ट्रपति के परमाणु हथियार लॉन्च करने के अधिकार की जांच की। इनमें 2011-13 में अमरीकी स्ट्रैटजिक कमांड के कमांडर रहे सी रॉबर्ट केहलर भी शामिल थे।

उत्‍तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम

-9 अक्‍टूबर 2006 को उत्‍तर कोरिया ने अपने इसके मद्देनजर अपना पहला परमाणु परीक्षण किया जो एक किलोटन से भी कम का था। इसके बाद उत्‍तर कोरिया ने अपने पास परमाणु हथियारों की खेप होने का दावा भी किया था।
-25 मई 2009 काे उत्‍तर कोरिया ने दूसरा परमाणु परीक्षण किया जो 2-7 किलोटन का था।
-11 फरवरी 2013 को उत्‍तर कोरिया ने तीसरा परमाणु परीक्षण किया, जिसको पूरी तरह से सफल करार दिया गया था।
-6 जनवरी 2016 चौथा परमाणु परीक्षण किया। इसके एक माह बाद ही उत्‍तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का भी परीक्षण कर डाला था।
-9 सितंबर 2016 को उसने पांचवां परमाणु प‍रीक्षण किया जिसको 6-9 किलोटन का बताया गया था।


किम जोंग-उन ने अपने भाषण में कहा था कि पूरा अमरीका उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों की रेंज में है और यह धमकी नहीं बल्कि हकीकत है। उत्तर कोरिया पर कई मिसाइल परीक्षणों और परमाणु कार्यक्रम की वजह से कई तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं।दुनिया के बहुत से देश उत्तर कोरिया से दूरी बनाए हुए हैं लेकिन परवाह न करते हुए उत्तर कोरिया छह भूमिगत परमाणु परीक्षण कर चुका है।नवंबर 2017 में उसने ह्वासोंग-15 मिसाइल का परीक्षण किया था। यह मिसाइल 4,475 किलोमीटर तक गई जो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से भी दस गुना ज्यादा ऊंचाई है।किम जोंग ने अपने भाषण में अपनी हथियार नीति का ज़िक्र भी किया था।उनके मुताबिक उत्तर कोरिया को भारी मात्रा में परमाणु हथियार और बैलिस्टिक मिसाइल बनाने चाहिए और उन्हें तैनात करने का काम तेजी से करना चाहिए।
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