अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र ने पूरे किए 20 साल
अंतरिक्ष को करीब से जानने समझने के लिए 20 नवंबर, 1998 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आइएसएस) को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था।
नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। अंतरिक्ष को करीब से जानने समझने के लिए 20 नवंबर, 1998 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र (आइएसएस) को अंतरिक्ष में स्थापित किया गया था। 17,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगा रहा यह स्टेशन पृथ्वी से अंतरिक्ष में भेजी गई अब तक की सबसे बड़ी वस्तु है। पृथ्वी के अधिकतर हिस्से से बिना किसी उपकरण के देखा जा सकने वाला यह केंद्र आकार में किसी फुटबाल मैदान जितना बड़ा है।
भेजा गया पहला हिस्सा
20 नवंबर, 1998 को इस केंद्र के पहले हिस्से को भेजा गया था, जिसे नासा ने तैयार किया था। इसके बाद रूस ने अपना हिस्सा भेजा। एक के बाद पहुंचे हिस्से को अंतरिक्ष में ही जोड़कर केंद्र तैयार किया गया। आइएसएस का हर हिस्सा अपने आप में एक यान है जो वैज्ञानिकों की भाषा में मॉड्यूल कहलाता है। ये आपस में रोबोटिक तरीके से जुड़े रहते हैं और इनके किसी हिस्से में आई खराबी को स्वत: तरीके से ठीक कर लिया जाता है।
एक दिन में 16 बार सूर्योदय दर्शन
यह विशाल अंतरिक्ष यान एक दिन में पृथ्वी की लगभग 16 बार परिक्रमा करता है इसलिए यहां पर रहने वाले अंतरिक्षयात्री एक दिन में 16 बार सूर्योदय देख सकते हैं।
संचालन का जिम्मा
स्टेशन के संचालन का काम प्रमुख रूप से अमेरिका और रूस के हाथ में है। इनके सहयोग के लिए जापान, कनाडा और यूरोपीय संघ भी शामिल हैं। इस अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और संचालन में अमेरिका की नासा और रूस की स्पेस एजेंसी रॉस्कॉस्मॉस की प्रमुख भागेदारी होती है।
सुदूर अंतरिक्ष अभियानों में अहमियत
भविष्य में होने वाले चांद और मंगल मिशन सहित सुदूर अंतरिक्ष अभियानों में इसकी बड़ी उपयोगिता साबित हो सकती है। ऐसे मिशनों को यहां से न केवल लांच किया जा सकेगा बल्कि तमाम सहूलियतें भी मिल सकेंगी।
रॉकेट से भेजी जाती हैं चीजें
इस केंद्र पर शोध के लिए अंतरिक्षयात्रियों का दल हमेशा मौजूद रहता है। 1500 से ज्यादा शोध यहां अभी तक किए जा चुके हैं। इनमें से कई शोधों ने मानव कल्याण की दिशा में बड़ी भूमिका निभाई है। अंतरिक्षयात्रियों की जरूरत की हर चीज समय-समय पर धरती से वहां पहुंचाई जाती है।
अहम खोजें
1500 खोजों में खगोल विज्ञान से जुड़े मामलों की बड़ी हिस्सेदारी है। इसके अलावा जीव विज्ञान, भौतिकी, मौसम विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में अहम शोध हुए हैं। आकाशीय बिजली की तस्वीर जैसे छोटे काम से लेकर डार्क मैटर की खोज की जा चुकी है। डस्ट प्लाज्मा में छिद्र का पता यहीं लगा।
धरती से पूरी तरह जुड़ा
धरती पर अमेरिका की नासा या अन्य सहयोगी स्पेस एजेंसी यहीं बैठे अंतरिक्ष स्टेशन पर मौजूद सदस्यों से लगातार संपर्क में रहती है। यहां तक कि फ्रिज की साइज वाले इसके कक्ष का दरवाजा धरती पर मौजूद वैज्ञानिक खोलते हैं ताकि वहां के लोग सोने के बाद बाहर आ सकें।
चींटी भी जा चुकी है यहां
ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ मानव ही गए हैं। विभिन्न शोध और अंतरिक्ष के असर को जानने के लिए फलों वाली मक्खी, जेब्रा मछली और चींटियां भी यहां जा चुकी है।
खर्च का इंतजाम
2010 तक इस केंद्र के रखरखाव पर 150 अरब डॉलर खर्च हो चुका था जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा नासा द्वारा वहन किया गया। इस स्टेशन को चलाने और अनुसंधान कार्यों के लिए रूस द्वारा 2024 तक का और अमेरिका द्वारा 2025 तक का बजट पारित किया जा चुका है। इनके अलावा जापान, कनाडा और अन्य सदस्य देश भी इन्हें फंड करते हैं।