आतंकवाद को लेकर भारत ने पाकिस्तान को लताड़ा- कहा, कुछ देश आतंकवादियों को सीधे देते हैं मदद
भारत ने यूएन में कहा कि वह पिछले कई दशकों से विशेष रूप से सीमा पार से आतंकवाद का शिकार रहा है और कुछ ऐसे भी देश हैं जो आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने और आतंकियों को पनाह देने के स्पष्ट रूप से दोषी हैं।
संयुक्त राष्ट्र, पीटीआइ। आतंकवाद को लेकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर पाकिस्तान को लताड़ा है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि वह पिछले कई दशकों से विशेष रूप से सीमा पार से आतंकवाद का शिकार रहा है और कुछ ऐसे भी देश हैं जो आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने और आतंकियों को पनाह देने के स्पष्ट रूप से दोषी हैं। भारत ने पाकिस्तान का नाम भले ही न लियो हो, लेकिन इसारा उसी की तरफ था।
दूसरे काउंटर-टेररिज्म वीक के दौरान 'काउंटरिंग फाइनेंसिंग ऑफ टेररिज्म इन पोस्ट सीओवीआईडी -19 लैंडस्केप' शीर्षक वाले कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा है कि आतंकवाद के खतरे का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि उनतक पहुंचने वाले संसाधनों को रोका जाए।
तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद, खासकर सीमा पार आतंकवाद का शिकार रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ देशों में आतंकवाद को धन मुहैया कराने से रोकने के लिए जरूरी क्षमताओं और कानूनी-परिचालन ढांचों का अभाव है, जबकि कुछ देश ऐसे हैं जो कुछ अन्य देश हैं जो आतंकवादियों को जानबूझकर वित्तीय सहायता और सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करते हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साफ तौर पर उन्हें जिम्मेदार ठहराना चाहिए।
तिरुमूर्ति ने आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) को मजबूत करने और संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद विरोधी ढ़ाचे को अधिक से अधिक धन प्रदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए आवश्यक क्षमताएं विकसित की हैं, जिसमें कानूनी और संस्थागत ढांचे और आतंकवाद के विभिन्न रूपों और अभिव्यक्तियों से निपटने के लिए तकनीकी क्षमता शामिल है।
उन्होंने कहा कि भारत 2010 से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का सदस्य रहा है और एफएटीएफ की सिफारिश 1 के अनुरूप, आतंकवाद के वित्तपोषण से संबंधित राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन नियमित रूप से किया जाता है ताकि आतंकवादियों द्वारा उत्पन्न उभरते और गतिशील खतरों की पहचान की जा सके।