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...अगर जॉर्ज फ्लॉयड का आखिरी वीडियो न होता, तो जानिए अमेरिकन पुलिस क्या कहती

अमेरिका में अश्वेत बच्चों की औसत आयु भी भारत और बांग्लादेश में पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में कम है। अश्वेतों के साथ भी दोहरा बर्ताव होता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 08:38 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 10:31 PM (IST)
...अगर जॉर्ज फ्लॉयड का आखिरी वीडियो न होता, तो जानिए अमेरिकन पुलिस क्या कहती
...अगर जॉर्ज फ्लॉयड का आखिरी वीडियो न होता, तो जानिए अमेरिकन पुलिस क्या कहती

वाशिंगटन, एजेंसी। अमेरिका इन दिनों जल रहा है। एक अश्वेत नागरिक की पुलिस हिरासत में मौत के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। अमेरिका में नस्ली असमानता की तस्वीर पूरी दुनिया के सामने आ गई है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मिनीपोलिस पुलिस के एक अधिकारी के घुटनों के नीचे दबे जॉर्ज फ्लॉयड का जिंदगी के लिए गुहार लगाते वीडियो सामने नहीं आया होता तो क्या होता? शायद दूसरे मामलों की तरह पुलिस की तरफ से यह बयान दे दिया जाता कि फ्लॉयड गिरफ्तारी का विरोध कर रहा था उसी में उसकी मौत हो गई।

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एक राहगीर द्वारा शूट किए गए वीडियो ने लोगों को सड़कों पर उतार दिया

लेकिन एक राहगीर द्वारा शूट किए गए वीडियो ने लोगों को इस कदर स्तब्ध कर दिया है कि वो सड़कों पर उतर आए हैं। इस घटना के बाद अमेरिका में अश्वेतों के साथ भेदभाव के विरोध में कई राज्यों में विरोध हो रहा है।

फ्लॉयड की मौत ने अमेरिका की एक अलग तस्वीर सामने ला दी

फ्लॉयड की मौत ने अमेरिका की एक अलग तस्वीर सामने ला दी है। स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में अश्वेत नवजातों की मृत्युदर श्वेत नवजातों की तुलना में दोगुना है। इसी तरह गर्भावस्था या प्रसव के दौरान श्वेत महिलाओं की तुलना में अश्वेत महिलाओं की मृत्युदर ढाई गुना ज्यादा है। लेकिन इसका कोई वीडियो वायरल नहीं होता, इसलिए इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।

अश्वेत बच्चों के साथ भी भेदभाव

अमेरिका में अश्वेत बच्चों की औसत आयु भी भारत और बांग्लादेश में पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में कम है। अश्वेतों के साथ भी दोहरा बर्ताव होता है। कथित रंगभेद वाले स्कूलों में 15 फीसद अश्वेत बच्चे पढ़ते हैं, जबकि इन स्कूलों में श्वेत बच्चों की संख्या एक फीसद से भी कम है।

कोरोना संकट काल में भी अश्वेतों से बुरा बर्ताव

कोरोना संकट में भी अश्वेत नागरिकों के साथ भेदभाव की खबरें आ रही हैं। इस महामारी से मरने वालों में श्वेतों की तुलना में अश्वेतों की संख्या बहुत ज्यादा है। कोरोना संकट में बड़ी संख्या में कामगारों की छटनी भी हुई है, इसमें भी अश्वेतों की संख्या ज्यादा है। हाल के एक अध्ययन के मुताबिक कोरोना के लक्षण को लेकर भी श्वेत और अश्वेत नागरिकों के भेदभाव किया जाता है। ज्यादातर मामलों में अश्वेतों का कोरोना टेस्ट ही नहीं कराया जा रहा।

अमेरिका में भेदभाव कोई नया नहीं है

ऐसा नहीं है कि अमेरिका में यह भेदभाव कोई नया है। नहीं तो 1968 में अपनी हत्या से पहले रॉबर्ट केनेडी को यह नहीं कहना पड़ता कि एक दूसरी तरह की हिंसा है, जो धीमी पर अधिक खतरनाक है। केनेडी अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं।

लोग अश्वेतों के साथ भेदभाव करते हैं और अनजान भी बने रहते हैं

जाने माने विद्वान एडुआर्डो बोनिला-सिल्वा अमेरिका में व्याप्त इस व्यवस्था के बारे में कहते हैं कि यह ऐसे ही जैसे नस्लवाद के बिना नस्लवाद। यानी लोग जानते हुए अश्वेतों के साथ भेदभाव करते हैं और इसके प्रति अनजान भी बने रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक श्वेत डॉक्टर अश्वेत नागरिकों की जांच नहीं करते। अश्वेतों की बस्ती में जांच भी कम किया जाता है। चाहें डॉक्टर हों या अधिकारी वे जरूरत जानते होंगे कि उनका यह बर्ताव भेदभाव ही है और इस तरह का नस्लवाद तेजी से बढ़ भी रहा है।


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